आप्तज्ञानी अमृतपुरुष आचार्यश्री महाश्रमण

आप्तज्ञानी अमृतपुरुष आचार्यश्री महाश्रमण

साध्वी स्वर्णरेखा

तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी मध्यकालीन सामंतशाही का इतिहास लिखने वाले केवल प्रतापी आचार्य नहीं सबके विश्वास स्तंभ हैं। आघात-प्रतिघात से काँपने वाले चिर-अर्जित हस्तकौशल, भाग्यकौशल से सबके मन को लहराने वाले, भावों को जगाने वाले प्रकाश स्तंभ हैं। धीरता, वीरता, गंभीरता को समाहित करने वाली निर्मल चेतना है। सोच में मोच नहीं है, सधी हुई-निखरी हुई सोच से हिताहित का निर्णय करने वाले समाधायक भी हैं। वे बुद्धि के घुमावदार मार्ग पर चलने वाले राही नहीं, दर्शन के ऋजुमार्ग पर चलने वाले सांईं हैं। जो व्यक्ति के दुःख को अपने भावात्मक तल पर महसूस करते हैं तथा हर किसी की व्यथा की कथा सुनकर द्रवित दिल से दूर करने का प्रयत्न करते हैं। धरती के तीर्थस्थल बनकर पतितों को पावन बना रहे हैं, मझधारों में डूबते हुए को भव्य नाव बनकर भवसिंधु पार लगा रहे हैं। जिनके जीवन में सिद्धपुरुष का सिद्धत्व मुखर है, देह में विदेह सम वीतराग साधना से गहन एवं रहस्यमय दिखने वाले शांत और अंतर में अपार करुणा के मालिक हैं। ज्ञान-दर्शन-चारित्र से सभी दिशाओं में त्वरित गति से लंबे-लंबे डग भरने वाले ज्ञान ज्योति से समृद्ध आप्तज्ञानी संत के रूप में समादृत हैं। ऐसे आप्तज्ञानी, अंतर्दर्शी, अमृतपुरुष अपनी क्रांतदृष्टि से हमें कमनीय बना दें, अमृतवृष्टि से अंतर्लीन बना दें। अमृत महोत्सव पर मिला यह वरदान हमें अणु से पूर्णता की राह दिखा पाएगा।