नेतृत्व का सुखद सफर
कर्तृत्व की धुरा पर निखरा नेतृत्व सफलता का सकुन दे रहा है। एक वर्ष का सुनहरा सफर उपलब्धियों के आँकड़ों से सजा है। जिसका उत्स है महासतिवरा का संघ-संघपति के प्रति अविकल समर्पण। साध्वीप्रमुखा समर्पण की स्याही से स्वर्णिम आलेख लिख रही हैं। वो सकल साध्वी समाज के लिए प्रेरणा प्रदीप हैं। मुख्य नियोजिका साध्वी विश्रुतविभा जी का साध्वीप्रमुखा पद पर चयन धर्मसंघ में खुशियों की बहार लेकर आया। तीन युगप्रधान आचार्यों की सूझबूझ का प्रतीक बना यह चयन। पूर्व साध्वीप्रमुखाओं का कौशल वर्तमान साध्वीप्रमुखा में मूर्तिमान देखकर सकल समाज प्रमुदित है।
प्रमुखा पद के नेतृत्व सफर को किसी एवरेस्ट की चढ़ाई से कम नहीं आँक सकते। हिलेरी ने एवरेस्ट पर परचम फहराया, उससे पहले उसने पुनः-पुनः आल्पस की पहाड़ियों पर चढ़ने का भरपूर अभ्यास किया था। इस तुला पर देखें तो आज साध्वीप्रमुखा विश्रुविभाजी नेतृत्व के जिस ओहदे पर आरूढ़ हैं उसकी पृष्ठभूमि में उन्होंने नेतृत्व के अनेक शिखर पार किए हैं। उसमें एक निर्मापक मनोरम पायदान रहा समण श्रेणी। समण श्रेणी की प्रथम समणी नियोजिका बनने का आपको सौभाग्य मिला। हमउम्र सदस्यों के बीच नेतृत्व का जो पहाड़ा सीखना शुरू किया वो पूर्णता से प्राप्त हो गया। इस बात की संपूर्ण समणी एवं साध्वी समाज को प्रसन्नता है।
अप्रमत्त साधिका: मैंने हमेशा आपको ‘समयं गोयम! मा पमायए’ सूक्त की समुपासिका के रूप में देखा है। न केवल स्वयं अप्रमत्त रहते हैं अपितु अपने इर्द-गिर्द रहने वालों में भी सदैव अप्रमत्त रहने की प्रेरणा भरते रहते हैं। प्रातः देरी से उठने वालों को आप ‘उठ जाग रे मुसाफिर---/यह है जगने की बेला’ आदि स्वर लहरी से उठाते। मेरा अपना अनुभव है समणी पर्याय में जब प्रातः दसवें कालिक सूत्र से स्वाध्याय में उत्तराध्ययन की गाथाएँ बोलने लगती तब आप मुझे सहज करने का प्रयत्न करते।
प्रबंधन कुशल: सह-दीक्षित समणियों, साध्वियों ने प्रारंभ से ही जीवन प्रबंधन के मौलिक गुर जैसे-खाना-पीना, सोना-उठना, वार्ता-व्यवहार, कार्य के प्रति सतर्कता का अनुभव किया है। प्रबंधन कौशल से आपने अनेक समणियों का निर्माण किया। नेतृत्व कौशल नयनों में बसता है। भले शब्दों से समय पर कुछ न भी कहते हैं पर सामने वाला शख्स स्वयं समझ जाता है कि आप क्या चाहते हैं? प्रबंधन कौशल की मिसाल है व्यस्त दिनचर्या में भी निरंतर सृजन कार्य संपादित करना।
सरस्वती मेधा संपन्न: साध्वीप्रमुखाश्री में सरस्वती के बुद्धि वैभव को देखा जा सकता है। इस मंतव्य को एक वाकये से जान सकते हैं-एकदा मर्त्यलोक में लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती तीनों सैर करने आई। निर्जन कानन में विश्राम किया। लक्ष्मी सौंदर्यप्रिय होने से कचनार के फूलों को चुनती है, पार्वती पलास और सरस्वती आम्रनिकुंज के नीचे डेरा डालती है। लक्ष्मी और पार्वती ने बसंत ऋतु में फूल खिलने का आनंद लिया। कुछ दिन बाद फूल समाप्त हो गए। समय आगे बढ़ा, अब सरस्वती ने आम खाने शुरू किए। सरस्वती ने दोनों सहेलियों को बुलाया। दोनों ने मीठे आम खाए। मन तृप्त हो उठा। दोनों ने सोचा सच्चा सुख फूलने में नहीं फलने में है। पद-प्रतिष्ठा, मान-सम्मान में मुख्य नियोजिकाजी कहीं फूले नहीं बस स्वयं को फलवान बनाने का प्रयत्न जारी रखा। उसी प्रयत्न की निष्पत्ति है प्रमुखा पद का वरण।
समय पारखी: ‘वक्त को वक्त पर वक्त से बदलते देर नहीं लगती।’ इस उक्ति को आपने बखूबी पहचाना है। बदलते वक्त के साथ समझौता करने वाला व्यक्ति अपने भाग्य की इबादत को सफलता के आइने में मढ़ सकता है। बशर्ते तीन गुणों का अधिष्ठाता हो-जागरूकता, पुरुषार्थ परायणता और आत्मविश्वास। आपकी सफलता में तीनों गुणों की अहम् भूमिका देखी जा सकती है। समय की नब्ज को पहचानते हुए सफलता को हासिल किया जा सकता है। इस आदर्श का प्रतिमान है वर्तमान साध्वीप्रमुखाश्री जी का जीवन-वृत्त।
नेतृत्व की सुखद वार्षिक परि-संपन्नता पर ढेर सारी शुभकामनाओं की सौगात समर्पित करती हूँ। आपने अल्प समय में ही गुरुदृष्टि की सर्वात्मना आराधना एवं अपने कार्य कौशल से नए सफर को आनंदमय बनाया है। आपसी कुशल अनुशासना में संपूर्ण साध्वी समाज युगों-युगों गौरव वृद्धि करता रहे। आपके चिरायु होने की मंगलकामना। दो पंक्तियों में समर्पित करती हूँ-
तुम जीओं हजारों साल,
साल के दिन हो कई हजार।
दिवस का उत्तरार्ध, पूर्वाध,
अंतहीन पाएँ विस्तार।।