‘प्रथम’ विशेषण से विभूषित साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा

‘प्रथम’ विशेषण से विभूषित साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा

साध्वी तन्मयप्रभा
विक्रम संवत् 2079, रविवार 15 मई, 2022 वैशाख शुक्ला चतुर्दशी के दिन आचार्यश्री महाश्रमण जी ने तेरापंथ धर्मसंघ की नवम साध्वीप्रमुखा के पद पर साध्वी विश्रुतविभाजी को मनोनीत किया। आचार्यवर ने फरमाया-साढ़े पाँच सौ से अधिक साध्वियाँ हैं, उनमें सर्वोच्च स्थान पर, सर्वोच्च अधिकार से युक्त, सर्वोच्च दायित्व-संपन्न साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा जी हैं। इस प्रकार साध्वी समुदाय में प्रथम नंबर पर साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा जी हैं। आचार्यवर के मुख से मैंने जैसे ही ‘प्रथम’ शब्द सुना, साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी की जीवनपोथी के अनेक पृष्ठ उभरकर मेरी आँखों के सामने आ गए। मुझे लगा यह ‘प्रथम’ शब्द कितनी बार आपके नाम के साथ जुड़ चुका है।
- प्रथम समणी दीक्षा में दीक्षित समणी
- प्रथम समणी नियोजिका
- प्रथम मुमुक्षु निर्देशिका
- प्रथम विदेश यात्रा
- अंग्रेजी भाषा की विज्ञ प्रथम साध्वीप्रमुखा
- स्नातकोत्तर में गोल्ड मेडल प्राप्त प्रथम साध्वीप्रमुखा
- प्रथम साध्वीप्रमुखा जिनका श्रेणी आरोहण युवाचार्य द्वारा घोषित
- प्रथम मुख्यनियोजिका
- साध्वीप्रमुखाश्री जी की प्रथम अनंतर सहयोगी
- अद्वितीय मनोनयन
प्रथम समणी दीक्षा में दीक्षित समणी: आचार्य तुलसी ने सन् 1980 में समण श्रेणी की शुरुआत की। उस श्रेणी में पहली बार दीक्षित होने वालों के सामने अनेक प्रश्न थे, अनेक चुनौतियाँ थीं। छः बहनों ने हर तरह की चुनौती को स्वीकार किया और गुरु चरणों में अपने आपको पूर्णतया समर्पित कर दिया। समणी दीक्षा के उस इतिहास दुर्लभ क्षण से जुड़ने वाली उन छह बहनों में एक नाम था मुमुक्षु सविता का, दीक्षित होने के बाद जिनका नाम रखा गया समण स्मितप्रज्ञा, जो आज हमारे संघ में साध्वीप्रमुखा के महनीय पद पर आसीन हैं।

प्रथम समणी नियोजिका : इस श्रेणी में प्रथम बार दीक्षित होने वाली उन छः समणीजी में समणी स्मितप्रज्ञाजी को समणी नियोजिका बनाया गया। नई श्रेणी के नए सदस्य होने पर भी आचार्यवर ने समणीजी की देख-रेख का दायित्व आपको सौंपा। दीक्षा के मात्र दो सप्ताह बाद ही प्रशासनिक क्षेत्र में आपका प्रवेश हो गया। श्रेणी में प्रथम सदस्य न होते हुए भी प्रथम समणी नियोजिका बनाया गया। इसमें गुरु कृपा के साथ-साथ निश्चित रूप से आपकी अर्हताएँ भी निमित्त बनी। उल्लेखनीय है कि साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने लगातार छः वर्षों तक नियोजिका के पद पर कार्य करते हुए श्रेणी की सार-संभाल की और संघ में विशेष पहचान बनाई।

प्रथम मुमुक्षु निर्देशिका : पारमार्थिक शिक्षण संस्था का प्रारंभ सन् 1948 में हुआ। उसकी देख-रेख का दायित्व संघ के वरिष्ठ श्रावकों पर था। आचार्य तुलसी ने सन् 1987 में एक नया क्रम प्रारंभ किया और संस्था की अंतरंग व्यवस्था का दायित्व समणीजी को सौंपा। आचार्य तुलसी ने प्रथम बार निर्देशिका के रूप में समणी स्मितप्रज्ञाजी को नियुक्त किया। निर्देशिका के रूप में आप लगभग चार वर्षों तक पारमार्थिक शिक्षण संस्था में रहे और मुमुक्षु बहनों के व्यक्तित्व विकास में योगभूत बने।

प्रथम विदेश यात्रा : समण श्रेणी में विदेश यात्रा का क्रम वर्षों से चल रहा है। प्रतिवर्ष अनेक ग्रुप विदेशों में जाते हैं और संघीय प्रभावना के उपक्रम चलाते हैं। वर्तमान में विदेश यात्रा सामान्य बात है। ज्ञातव्य है समण श्रेणी में जब प्रथम बार विदेश यात्रा का प्रसंग आया, अनेक आशंकाएँ और अनेक प्रश्न थे। उस माहौल में सर्वप्रथम विदेश यात्रा करने वाली समणियों में प्रथम नाम समणी स्थितप्रज्ञा (साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी) का था। आपकी उस यात्रा ने अनेक देशों की एवं अनेक समणीजी की विदेश यात्रा का द्वार उद्घाटित कर दिया। आचार्य तुलसी के वर्षों से संजोए सपने को साकार करने का प्रथम श्रेय समणी स्मितप्रज्ञा को मिला। स्मितप्रज्ञाजी ने समण श्रेणी में रहकर अनेक देशों की यात्रा की, जिनमें बेल्जियम, हॉलेंड, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, ईटली, अमेरिका, कनाड़ा आदि प्रमुख हैं।
अंग्रेजी भाषा की वेत्ता प्रथम साध्वीप्रमुखा: साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी अंग्रेजी भाषा की विज्ञ प्रथम साध्वीप्रमुखा है। हिंदी, संस्कृत आदि की भाँति अंग्रेजी भाषा पर भी आपका अच्छा अधिकार है। आपने देश-विदेशों की यात्रा के दौरान अंग्रेजी भाषा में अनेक वक्तव्य दिए हैं। परमपूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की अनेक कृतियों का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया है। इतना ही नहीं अंग्रेजी भाषा में आपने स्वतंत्र रूप में पुस्तकों का लेखन भी किया है। उदाहरणार्थ-
- An Introduction to Jainism
- An Introduction to Terapanth
- Basics of Jainism
- Acharya Shri Tulsi - Legend of Humanity
आपको अंग्रेजी भाषा की प्रथम वक्ता, प्रथम लेखिका और प्रथम अनुवादिका साध्वीप्रमुखा के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
स्नातकोत्तर में गोल्ड मेडल प्राप्त प्रथम साध्वीप्रमुखा: शिक्षा के क्षेत्र में भी आपकी अलग पहचान है। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी प्रथम साध्वीप्रमुखा हैं, जिन्होंने स्नातकोत्तर की परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की। आपश्री ने जैन विश्व भारती संस्थान से जैनोलॉजी में गोल्ड मेडल प्राप्त किया। शिक्षा के क्षेत्र में गोल्ड मेडल प्राप्त करने वाली आप प्रथम साध्वीप्रमुखा हैं।

प्रथम साध्वीप्रमुखा जिनका श्रेणी आरोहण युवाचार्य द्वारा घोषित : तेरापंथ धर्मसंघ में प्रायः साधु-साध्वियों की दीक्षा या श्रेणी आरोहण का आदेश आचार्य स्वयं देते हैं। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा जी को श्रेणी आरोहण का आदेश युवाचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने दिया। सन् 1992, लाडनूं चातुर्मास के दीक्षा समारोह में दीक्षित होने वाले 20 मुमुक्षुओं के नाम घोषित हो गए। दीक्षा में मात्र छः दिन अवशेष थे। तब आचार्य तुलसी ने इक्कीसवीं दीक्षा की घोषणा का दायित्व युवाचार्य महाप्रज्ञ को सौंपा। युवाचार्यश्री ने इक्कीसवाँ नाम समणी स्मितप्रज्ञाजी का घोषित किया। अतः आप प्रथम समणी हैं जिनके श्रेणी आरोहण की घोषणा युवाचार्यश्री के द्वारा की गई।

प्रथम मुख्यनियोजिका : आचार्य महाप्रज्ञजी ने अपने युग में दो नए पदों का सृजन किया-मुख्यनियोजक और मुख्यनियोजिका। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने अपने शासनकाल में ही मुख्यनियोजिका पद पर साध्वी विश्रुतविभा जी को प्रतिष्ठित किया। आप प्रथम साध्वी हैं, जिनको मुख्यनियोजिका बनाकर अधिकृत रूप से समण श्रेणी की व्यवस्थाओं के संचालन का दायित्व सौंपा गया। आपने 12 वर्षों तक मुख्य नियोजिका के रूप में आचार्यों के निर्देशानुसार समणश्रेणी की देख-रेख की और संघ सेवा में अपनी शक्ति का नियोजन किया।


प्रथम अनंतर सहयोगी : तेरापंथ धर्मसंघ में आचार्य सर्वेसर्वा होते हैं। नेतृत्व की बागड़ोर एकमात्र आचार्य के हाथ में होती है, अपेक्षा होने पर आचार्य अपने कार्यों में दूसरों का सहयोग लेते हैं। आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सन् 2017, भागलपुर में अक्षय तृतीया के अवसर पर आपको साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी के अनंतर सहयोगी बनाकर मुख्यनियोजिका पद पर प्रतिष्ठित किया। किसी भी साध्वी को साध्वीप्रमुखा की अनंतर सहयोगी नियुक्त करने का यह प्रथम अवसर था। यह अवसर भी साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी को प्राप्त हुआ।

अद्वितीय मनोनयन : तेरापंथ धर्मसंघ में साध्वीप्रमुखा का मनोनयन आचार्य स्वयं करते हैं। आचार्य तुलसी ने अपने शासनकाल में तीन बार साध्वीप्रमुखा का मनोनयन किया। आचार्यश्री महाश्रमण जी ने सरदारशहर में साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा जी का मनोनयन किया। यह उनके शासनकाल का पहला अवसर था। लेकिन आपने जिस ढंग से साध्वीप्रमुखा का मनोनयन किया, वह अद्वितीय एवं भव्यता लिए हुए था। आचार्यवर ने साध्वीप्रमुखाश्री का मनोनयन कर तत्काल अपने पावन करकमलों से आपको अपनी निश्रा के रजोहरण और प्रमार्जनी प्रदान किए। सभा के मध्य ग्रास प्रदान किया। ऐसा कोई भी उपक्रम अतीत में नहीं हुआ। यह इतिहास का दुर्लभ अवसर सर्वप्रथम आपको प्राप्त हुआ।
इस प्रकार साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी के जीवन में ‘प्रथम’ का साहचर्य अनेक बार पुनरावृत्त हुआ है। आपने उस प्रथम की चाह कभी नहीं की किंतु कभी पुरुषार्थ के योग से तो कभी भग्य के योग से प्रथम का नैकट्य बना रहा। प्रथम चयन दिवस के अवसर पर आपके प्रति यही मंगलकामना है कि आप आचार्य महाश्रमण के युग में सुदीर्घकाल तक अपनी सेवाएँ प्रदान करने वाली प्रथम साध्वीप्रमुखा के रूप में प्रतिष्ठित हों। आपके प्रेरक पथदर्शन में अनेक साध्वियाँ विभिन्न क्षेत्रों में अपनी उपयोगिता सिद्ध करें।