मुनि महेंद्र कुमार जी के प्रति उद्गार
श्रद्धेय मुनि अजित कुमार जी, मुनि जम्बूकुमारजी (मिंजूर), मुनि अभिजीत कुमार जी, मुनि जागृत कुमार जी, मुनि सिद्धकुमार जी! सादर सविधि वंदना। तेरापंथ धर्मसंघ के बहुप्रतिष्ठित, बौद्धिक सोच के धनी, आगम मर्मज्ञ, वर्तमान में बहुश्रुत परिषद् के संयोजन श्रद्धेय मुनिश्री महेंद्र कुमार जी द्वितीय के स्वर्गारोहण का संवाद डॉ0 शांता जैन ने फोन पर प्राप्त हुआ। दो मिनट के लिए ठहर जाना पड़ा।
इतिहास का झरोखा खुला पड़ा है। यद्यपि मैं उस समय मात्र 14 वर्ष का किशोर था पर मुझे स्मरण है कि वि0सं0 2014 के सुजानगढ़ में आपश्री की जैन भगवती दीक्षा परम प्रतापी आचार्यश्री तुलसी के करकमलों से हुई थी तब पूरे धर्मसंघ में अपूर्व हर्ष, उल्लास और उत्सुकता का वातावरण निर्मित हो गया था। उस समय बाहरी शिक्षा की विशिष्ट डिग्री के साथ-साथ आपका अंतर्यात्रा की ओर अग्रसर होना एक अजूबा-सा लग रहा था। इन सबके साथ-साथ समादरणीय जेठाभाई झवेरी जैसे सुश्रावक का सुुपुत्र होना भी आपकी विशेष पहचान थी। गौर वर्ग, चमकीली आँखें, शरीर सौष्ठव आपका बाहरी व्यक्तित्व भी सबको भा रहा था।
समय की सूई सरकती चली गई। प्रतापी आचार्यों की पीढ़ियाँ बदलती गईं पर धनु के धनी इस मुंबईया बाबू ने अपने कर्तृत्व के अनेकों आलेख गढ़ दिए। अवधान विद्या के शुरुआती दौर में महेंद्र मुनि का नाम सिरमोड़ था। आचार्यों के साथ यात्राओं का प्रभावी लंबा दौर भी चला। ध्यान, योग एवं बौद्धिक गोष्ठियों में महेंद्र मुनि का रहना सबको आश्वस्त करता था। आचार्यों ने भी उन्हें मान-सम्मान देने एवं अनुग्रह की वर्षा करने में कोई कमी नहीं रखी। स्वास्थ्य संबंधी कारणों से कुछ वर्षों से मुंबई प्रवास करना पड़ा। आप हर समय आगम ग्रंथों से एक तरह से घिरे रहते थे। कुछ नया करना खोजी मानसिकता बनाए रखना आपका स्वभाव था। आपकी विशेषताओं की लंबी लिस्ट है। आप संतों को अंत तक उनकी छाया बनकर सेवा करने एवं उनके उपपात में रहने का सौभाग्य मिला। हर श्रावक की तरह मुनिश्री की मेरे पर, मेरी बेटी प्रभा एवं जशराजजी मालू पर अतिशय कृपा रही। जीवन और मृत्यु की प्रवाह में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। यह यकायक आकस्मिक हो गया। दिवंगत आत्मा को प्रणाम।