अर्हम्

अर्हम्

प्रोफेसर महेंद्र कुमार जी स्वामी हमारे धर्मसंघ के विशिष्ट विशेषज्ञ विज्ञान के धनी थे। वह तेरापंथ के नील गगन का ज्ञान सितारा था उनको अस्त हो जाना मानो धर्मसंघ में बहुत बड़ी क्षति हुई है। मुनिश्री जी का जीवन अनेक विशेषताओं का गुलशन था, उनकी मेधा प्रखर थी। पूरे विश्व में अपनी मेधा से जिनशासन, तेरापंथ शासन एवं विज्ञान का तुलनात्मक अध्ययन कराने में अग्रणी रहे। प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में मुनिश्री जी के उद्बोधनों ने खूब धूम मचाई और संघ की प्रभावना में चार चाँद लगाए। आप पर गुरु तुलसी की अनंत कृपा रही। महायोगी आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के साए में रहकर आपको आगम भाष्य एवं संपादन करने का स्वर्णिम अवसर उपलब्ध हुआ।
तेरापंथ धर्मसंघ के प्रथम पहले बी0एस0सी0 करके दीक्षा लेने वाले मात्र एक ही संत थे। मुनिश्री जी अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे। जर्मन भाषा को जानने वाले आप पहले ही संत थे। मुनिश्री जी ने जीवन-भर मोक्ष मार्ग पर चलने का अटूट संकल्प निभाया, उनके जीवन में मुझे आर्षवाणी परिलक्षित होती हुई दिखाई दी। सम्यग् दर्शन, ज्ञान चारित्रµतपांसि मोक्ष मार्गµइस सूत्र में भगवान महावीर ने चार मार्ग बताए हैं। ज्ञान, दर्शन, चारित्र व तप। मुनिश्री जी ने यौवन के तपते सूरज को रोशनी में मात्र बीस वर्ष की अवस्था में चारित्र ग्रहण किया। संयम के पायदान पर चरण न्यास किया। इन संकरी राहों को पुरुषार्थ से राजमार्ग बनाया। गुरु निष्ठा, संघ निष्ठा, आगम पर अथाह आस्था में आपके विशुद्ध दर्शन के दर्शन होते रहे। अनवरत अंतिम समय तक चलती रही आपकी लेखनी। यह ज्ञान की आराधना मुनिश्री जी के आंतरिक तप का नूर था। ज्ञान सरोवर के परमहंस बनकर ज्ञान मोती चुगते रहे। आप एक शब्द की अनेक प्रकार से व्याख्या करने में प्रख्यात थे। इस प्रकार मुनिश्री जी ने मोक्ष मार्ग के चारों ही द्वारों से सिद्धपुरी में प्रवेश करने का अथक् प्रयास किया। मुनिश्री ने जीवन-भर आचार्यों की दृष्टि की आराधना की। उसका ही श्रीफल है कि प्रो0 महेंद्र कुमार जी आगम मनीषी एवं बहुश्रुत परिषद् के संयोजक कहलाए। बहुधा आचार्यश्री महाश्रमण के श्रीमुख से मुनिश्री को विद्वता के प्रसग सुनने को मिले।
मुंबई नगरी में दो बार हमें मुनिश्री का सान्निध्य प्राप्त हुआ। मैंने देखा आपका जीवन पावन पवित्र था, उजला-उजला चारित्र मुनिश्री की सहजता और सरलता का प्रमाण पत्र था। भरूंड पक्षी की तरह अप्रमत्तता आपके जीवन की रोशनी थी। साधु-साध्वियों के प्रति प्रमोद भावना सबको प्रभावित करती थी। सौभाग्य की बात है कि हमारे धर्मसंघ के विशिष्ट संत की सेवा करने का सेवाभावी तपस्वी मुनिश्री अजित कुमार जी स्वामी को मौका मिला। तन की पछेवड़ी बनकर मुनिश्रीजी के मनोनुकूल सेवा की। मुनि जम्बू कुमार जी स्वामी को भी सौभाग्य से यह स्वर्णिम अवसर मिल गया। डॉ0 मुनि अभिजीत कुमारजी स्वामी, सिद्धकुमार जी स्वामी, मुनि जागृत कुमार जी स्वामी ने उनकी विद्वता का खूब लाभ उठाया। ऐसा लगता है सभी संतों की सेवा कृतार्थ हो गई। प्रो0 मुनि महेंद्र कुमार जी स्वामी की आत्मा उत्तरोत्तर मोक्ष मंजिल के लिए पहुँचे। मंगलकामना। क्षेत्र की दूरी होने के कारण हम साध्वियाँ पहुँच नहीं पाईं यहीं से श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं।