अप्रतिम व्यक्तित्व के धनी

अप्रतिम व्यक्तित्व के धनी

आगम मनीषी मुनिश्री महेंद्र कुमार जी स्वामी तेरापंथ धर्मसंघ के अति विशिष्ट संतों की श्रेणी में से एक महान संत थे। धर्मसंघ में उनकी अमूल्य सेवाएँ रही हैं। उनका सरल व मृदु व्यवहार सबके लिए प्रेरक था। वे बहुत ही गंभीर व सूझबूझ के धनी थे। उनका वैदुष्य अपने आपमें गौरवान्वित था। वे मोहमयी नगरी मुंबई के प्रतिष्ठित जवेरी परिवार में प्रेक्षा प्राध्यापक श्री जेठाभाई जवेरी के सुपुत्र थे। मुनिश्री अनेक भाषाओं के पारंगत विद्वान थे। इंग्लिश व गुजराती तो मानो उनकी पैतृक भाषा थी। हमने अनेक बार देखा जब कोई विदेशी या कोई विशिष्ट व्यक्ति आता तो उस समय श्रद्धास्पद गुरुदेव के सान्निध्य में अंग्रेजी में वार्ता प्रसंग में वे सफल माध्यम बनते।
अध्यात्म और विज्ञान की दृष्टि से धर्म को इतने अच्छे ढंग से व्याख्यायित करते कि विद्वत्जन भी अचंभित हो जाते। हर विषय में उनकी पारदर्शी मेधा गहराई से अन्वेषण कर नए तथ्यों को उद्घाटित करती। आगमों का भी उन्होंने तलस्पर्शी अध्ययन किया। प्रेक्षाध्यान के विषय में गहराई से उतरकर, स्वयं आत्मसात कर उसकी विधि का सबको प्रशिक्षण दिया। अतः श्रद्धेय प्रवर ने उन्हें प्रेक्षा प्राध्यापक के महनीय विशेषण से नवाजा। मुनिश्री पुरुषार्थ के पुरोधा थे। श्रम का दीप अंतिम क्षण तक प्रज्ज्वलित रहा। पूज्यप्रवर जिस कार्य को करने का संकेत दिराते वे जी-जान से जुट जाते। वर्तमान में भी वे भगवती सूत्र का कार्य करवा रहे थे। हमने देखा एवं सुना कि घोर वेदना में भी उनकी लेखनी अनवरत चलती रही, यहाँ तक कि हॉस्पिटल में भी उनकी लेखनी चलती रहती। उनके इर्द-गिर्द पुस्तकें ही पुस्तकें दिखाई देती मानो पूजयप्रवर का हर एक वाक्य उनके रोम-रोम में रम गया थाµ‘कार्य पूरा किए बिना नहीं जाना’ उनका कार्य लगभग संपन्नता पर है।
परंतु नियति को कौन टाल सकता है। गुरुदेव साक्षात् उन्हें दर्शन देने पधार रहे थे पर भावी को मान्य नहीं था। उनके सहवर्ती संत मुनि अजित कुमार जी जो अंतिम क्षण तक तन की पछेवड़ी बनकर, छाया बनकर उनके हर कार्य में कदम से कदम मिलाकर उनके सहयोगी बने रहे, अहर्निश सेवा में तत्पर रहते। अपने सहवर्ती संतों को अनेक विषयों में निष्णात किया, मुनि अभिजीत कुमार जी, सिद्धकुमार जी, जागृत कुमार जी की अर्हताओं को जागृत किया। सौभागी मुनिश्री जम्बू कुमार जी को भी उनके पुनीत साए में रहने का महनीय अवसर प्राप्त हुआ।
मुनिश्री गत कई वर्षों से मुंबई में प्रवासित थे। उनका जहाँ भी प्रवास रहा, अत्यंत प्रभावशाली रहा। श्रद्धेय गुरुदेव की अगवानी में आपने पूरी मुंबई में एक-एक सदस्य में संघनिष्ठा, गुरुनिष्ठा के संस्कार भरने का भरसक प्रयास किया। उत्कर्ष, उत्थान एवं जागो मुंबई जन अभियान आदि अनेक कार्यक्रमों के माध्यम से जन-जन में जागृति का शंृखनाद किया। आपकी छवि प्रत्येक मुंबईवासी के दिल में अंकित है।
गुरुदेव की अगवानी से पहले इस प्रकार आपका अलविदा हो जाना सबके दिलों को मायूस बना रहा है। मेरे पर भी असीम कृपा थी एक बार मैं प्ण् ज्ण् ैबीववस में थी तब आप स्वयं मुझे दर्शन देने ऊपर पधारे। मैं गद्गद् हूँ उनके निश्छल व्यवहार तथा अनुपम औदार्य के प्रति- उस पवित्र आत्मा को अंतहीन प्रणति अनंत-अनंत मंगलकामना। आप अतिशीघ्र अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करें।