ऋतंभरा प्रज्ञा के नायक आचार्य महाश्रमण

ऋतंभरा प्रज्ञा के नायक आचार्य महाश्रमण

दीप्त ज्योति तुम संघ दिवाकर, भक्ति सुमन करती उपहार।
कल्पवृक्ष की छाँह शुभंकर, मिलती रहे प्रभु वर्ष हजार।।

विश्व के समस्त शुभ एवं पवित्र तत्त्वों का समावेश जिनमें होता है वे ही गुरु बनने में समर्थ होते हैं। जैन धर्म की रत्नत्रयी में देव, गुरु और धर्म का प्रतिपादन है। इस त्रिपदी में केंद्र स्थान में गुरु विराजमान हैं, क्योंकि देव और धर्म की पहचान गुरु ही करवाते हैं। अध्यात्म जगत में गुरु की महिमा सर्वोत्कृष्ट है। संबोध सत्तरी में उल्लेख आता है कि अरिहंत की अनुपस्थिति में गुरु (आचार्य) ही तीर्थंकर का प्रतिनिधित्व करते हैं। तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी वर्तमान के जैनाचार्यों में सर्वाधिक प्रतिष्ठित हस्ताक्षर हैं। आचार्य तुलसी एवं आचार्य महाप्रज्ञ के कुशल नेतृत्व में तराशी गई इस प्रतिमा में गुण पुष्पों की अनुपम बगिया महक रही है। अनुत्तर संयम, अनुत्तर ज्ञान व अनुत्तर साधना से अलंकृत पूज्यप्रवर का जीवन संतता के शिखर पर विराजमान है।
प्रखर संयम साधक! आप शांत-प्रशांत, उपशांत साधक हैं। आत्मरिपुओं को पराजित करने वाले वीर सिकंदर हैं। निर्विकारता, निर्लिप्तता, निर्मलता, निस्पृहता व निश्छलता के सशक्त बॉडीगार्ड हमेशा आपकी सेवा में हाजिर रहते हैं। जाति, धर्म, संप्रदाय, वर्ण आदि की संकीर्णता की दीवारों से मुक्त करने में आप अहर्निश प्रयत्नशील रहते हैं। अज्ञानरात्रि में सोये मानव को ज्ञान का अलार्म बजाकर आप संपूर्ण भारत में जागरण का शंखनाद कर रहे हैं। ऋतंभरा प्रज्ञा के नायक! ‘गुरु कृपा हि केवलं, शिष्यं परं मंगलं’ अर्थात् गुरु की कृपा से बढ़कर शिष्य के लिए कोई मंगल महल नहीं होता। गुरु कृपा से प्रज्ञाचक्षु नयनसुख बन जाता है। विकलांग व्यक्ति मैराथन विजेता बन जाता है। पंगु पर्वत पर आरोहण कर लेता है। परम श्रद्धेय ने भगीरथ पुरुषार्थ करके जैनत्व को जन-जन के जीवन में जोड़ा है। अज्ञ-प्राज्ञ, साक्षर-निरक्षर, नेता-प्रजा, दर्शक-श्रोता सभी श्रेणी के लोग आपकी आगमवाणी से लाभान्वित हो रहे हैं।
प्रशांत चेता! आर्षवाणी में कहा गया हैµ‘पुठवी समे मुणी ह्वेज्जा’ पृथ्वी की तरह आपश्री की क्षमा अनुल्लंघनीय है। सहनशीलता बेजोड़ है। परीषहों से अपराजित आपका व्यक्तित्व करिश्माई है। थर्मामीटर से सूर्य की गर्मी को मापना, फुटपट्टी से समुद्र की गहराई को नापना और आकाश के तारों को गिनना किसी के लिए भले संभव हो पर अध्यात्म योगी आचार्य महाश्रमण श्री के गुणों की गणना असंभव नहीं अति असंभव है। अस्तु! पट्टोत्सव, जन्मोत्सव तथा दीक्षोत्सव के सुपावन अवसर पर तेरापंथ अधिनायक को सहस्त्रों बार भावभीनी वंदना! अभिवंदना!! अभ्यर्थना---!!! जीवन की हर साँस’ में तेरी ही तस्वीर है। ज्योत जली अंतर में अनुपम जगी सुप्त तकदीर है।।