जीवन में सदा अच्छे कर्म करें: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जीवन में सदा अच्छे कर्म करें: आचार्यश्री महाश्रमण

वापी, 21 मई, 2023
अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः अपनी धवल सेना के साथ लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर वापी शहर में पधारे। वापी श्रद्धा का अच्छा क्षेत्र है। यहाँ परम पावन ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में अनेक धर्म-संप्रदाय हैं। दार्शनिक जगत में अनेक दर्शन हैं और सबके अपने-अपने मंतव्य हैं, सिद्धांत हैं। अनेक दर्शनों व धर्मों में समानता भी देखने को मिल सकती है। जैन दर्शन के अनेक वाद-सिद्धांत हैं, उनमें एक हैµकर्मवाद। आत्मवाद भी महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है कि आत्मा शाश्वत है, आत्मा का कभी विनाश नहीं होता, शरीर नष्ट हो जाता है। अनंत जन्मों पहले भी हमारी आत्मा थी, आज भी है और अनंत-अनंत काल बीत जाए तो भी आत्मा आत्मा ही रहेगी। यह आत्मा का स्थायित्व है। आत्मा अजर-अमर है।
जैन दर्शन में नित्यानित्य का सिद्धांत सम्मत है कि हर पदार्थ अपने आपमें नित्य भी है और अनित्य भी है। आत्मा एक द्रव्य है, इसलिए वह स्थायी है। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आदि पाँच अस्तिकाय हैं, इनके मूल द्रव्य ध्रुव-शाश्वत है। परंतु पर्याय परिवर्तन हो सकता है। कर्मवाद में जैसा कर्म प्राणी करता है, उसके अनुसार उसे फल भी भोगना पड़ता है। आठ कर्म बताए गए हैं, इनके आधार पर हम आदमी के व्यक्तित्व का विश्लेषण कर सकते हैं। गृहस्थों के जीवन में ऐसे पाप आचरण न हों ताकि गाढ़ कर्म का बंध न हो। अच्छा जीवन जीएँ। हम जीवन में असद् आचरण करने का प्रयास न करें। अच्छे आचरण करें ताकि पाप कर्म से बचें। आज वापी आए हैं। वापी की जनता में खूब धार्मिक चेतना जागृत रहे। आध्यात्मिक साधना की बगिया लहलहाती रहे। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने भी उपस्थित जनसमुदाय को संबोधित किया।
पूज्यप्रवर के स्वागत में स्थानीय सभाध्यक्ष महेंद्र मेहता, पूज्यप्रवर की संसारपक्षीय बहन रतनीबाई एवं भाई श्रीचंद दुगड़ तथा स्थानीय नगरपालिकाध्यक्ष कश्मीरा शाह ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। तेरापंथ समाज एवं दुगड़ परिवार द्वारा गीत प्रस्तुत किया गया। ज्ञानशाला द्वारा जैन जीवन शैली पर सुंदर प्रस्तुति हुई। पूज्यप्रवर ने ज्ञानशाला को आशीर्वचन एवं प्रेरणाएँ दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।