जीवन में अहिंसा धर्म का पालन करें: आचार्यश्री महाश्रमण
भूतसर, वलसाड, 16 मई, 2023
परम यशस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भूतसर में मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि ज्ञानी होने का ज्ञानी आदमी को लाभ मिलना चाहिए। उसका सार सामने आना चाहिए। ज्ञानी आदमी के ज्ञान का सार है कि वह किसी के प्रति हिंसा नहीं करता। अहिंसा धर्म से उसकी आत्मा प्रभावित हो जाती है। अहिंसा के लिए समता की साधना आवश्यक है। आत्मा ही अहिंसा है, आत्मा ही हिंसा है। जो अप्रमत्त है, वह अहिंसक है। जो प्रमत्त है वह हिंसक हो सकता है। जीव जीता है या मरता है, वह उसके आयुष्य बल से है। हिंसा तीन प्रकार की होती है, आरम्भजा, प्रतिरोधजा और संकल्पजा। आरम्भजा व प्रतिरोधजा हिंसा तो अपेक्षित है, पर संकल्पजा हिंसा न हो। संकल्पपूर्वक किसी प्राणी की हिंसा नहीं की जानी चाहिए।
साधु तो महाव्रती होते हैं। वे अहिंसा मूर्ति, दयामूर्ति होते हैं। गृहस्थ भी एक सीमा तक हिंसा से बचने का प्रयास करें। साधु तो क्षमामूर्ति है, सहन करें। कोई गालियाँ भी दे तो शांति में रहें, यह एक प्रसंग से समझाया कि गणियों से गुमड़े नहीं होते हैं। गुस्सा न करें। साधु अहिंसा को न छोड़ें, जुबान पर लगाम रखें। हम जीवन में अहिंसा-धर्म पालन का प्रयास करते रहें। पूज्यप्रवर के स्वागत में गंगावत परिवार से रमेश कुमार जी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।