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ध्यान का प्रयोग नियमित करें: आचार्यश्री महाश्रमण
पारगाँव, (महाराष्ट्र) 5 जून, 2013
ज्योतिर्मय ज्योतिचरण आचार्यश्री महाश्रमणजी अणुव्रत यात्रा के साथ पार गाँव की आमची शाला में पधारे। जगतारक ने अमृत देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि आदमी झूठ बोलता है, उसके पीछे दो कारण हो सकते हैं-एक तो किसके लिए झूठ बोलता है, आत्मार्थ या परार्थ या तो खुद के लिए आदमी झूठ बोलता है या दूसरों के लिए झूठ बोलता है।
दूसरा भावात्मक कारण है। दो भावात्मक कारण हैं-गुस्सा या भय। और भी कारण हो सकते हैं। झूठ बोलना एक प्रवृत्ति है। उसकी वृत्ति अंदर होती है। कार्य को समाप्त करने के लिए कारण को मिटाना होगा। संवर और निर्जरा मुक्ति के कारण हैं। मोक्ष मुक्ति है। आश्रव दुःख का कारण है। प्रेक्षाध्यान से हम राग-द्वेष मुक्त बन सकते हैं।उपयोग आत्मा चेतना का व्यापार है, यह प्रखर बने। ध्यान का प्रयोग हो सके, तो रोजाना करें। अहिंसा, सत्य, ध्यान आदि अध्यात्म का परिवार है। इनकी साधना से ऊर्ध्वारोहण हो सकता है। अपने भीतर के घर में रहने का प्रयास करें। बाहर का शरीर तो अस्थायी है। रहो भीतर, जीयो बाहर। पद्म पत्र की तरह घर में रहते हुए भी निर्लिप्त रहे। धर्म की साधना चलती रहे।
कुछ समय निकालकर साधना में अपने आपसे नियोजित करने का प्रयास करें। आधि, व्याधि, उपाधि दूर हो सकती है। समाधि को प्राप्त कर सकते हैं। हम ध्यान के द्वारा भीतर की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करें, तो हमारे लिए कल्याणकारी बात हो सकती है। पूज्यप्रवर ने प्रेक्षाध्यान का प्रयोग करवाया। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में मुंबई से समागत प्रेक्षा प्रशिक्षक पारसमल दुगड़ ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। प्रेक्षा प्रशिक्षिकाओं ने गीत की प्रस्तुति दी। स्थानीय सरपंच अंकुशली झाबक ने पूज्यप्रवर का स्वागत किया। व्यवस्था समिति व अणुव्रत समिति द्वारा सरपंच का सम्मान किया गया। पूज्यप्रवर ने प्रेक्षा प्रशिक्षकों को आशीर्वचन फरमाया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।