आत्मार्थी व निर्जरार्थी संत थे मुनि अजय प्रकाश
गंगाशहर।
तेरापंथ भवन गंगाशहर में मुनि अजय प्रकाशजी का गुणानुवाद करते हुए मुनि चैतन्य कुमारजी ‘अमन’ ने कहा- मुनि अजय प्रकाशजी प्रोढ़ावस्था मंे सहपरिवार दीक्षित हुए। दीक्षा लेने के बाद उन्होंने अपने जीवन को तपस्या में झोंक दिया। एकांतर तप, बेले-बेले और तपस्या की लड़ी करते हुए कई मासखमण एवं बड़ी तपस्या करके मानों मनुष्य जीवन का पूरा सार निकाल लिया। तपस्या के साथ मौन, ध्यान, स्वाध्याय में भी पूरा समय लगाते थे। ऐसा लगता है कि वे निर्जरार्थी, आत्मार्थी साधु थे। अंतिम समय में एक महीने के तप के उपरांत संथारा स्वीकार कर अपना आत्मकल्याण किया। ऐसे संतों की तप साधना से संघ की महान प्रभावना होती है।
मुनि अमन ने बताया- मुनि अजयप्रकाश की संसारपक्षीया धर्मपत्नी साध्वी नीतिप्रभा एवं पुत्री साध्वी तन्मयप्रभा ने भी वर्तमान में आचार्य महाश्रमण की अनुशासना में साधनारत हैं। 20 वर्ष के साधुत्व जीवन में उन्होंने अनेक यात्राएं की। सेवाकेन्द्र में लगातार तीन वर्ष सेवा चाकरी का कार्य किया। पिपाड़ सिटी निवासी एवं चेन्नई प्रवासी होकर गृहस्थ जीवन में अनेक साधु-साध्वियों की सेवा की है। अंतिम समय में शारीरिक वेदना को समभाव से सहन करते हुए संथारा-संलेखना करते हुए अपना आत्म कल्याण किया। उनके प्रति अपनी आध्यात्मिक मंगलकामना करता हूं। इस अवसर पर मुनि श्रेयांस कुमारजी, मुनि विमल बिहारीजी, मुनि प्रबोध कुमारजी ने भी मुनि अजय प्रकाश के प्रति आध्यात्मिक मंगल भावना अभिव्यक्त की।