
सदात्मा बनकर मानव जीवन को सुफल बनाएं - आचार्यश्री महाश्रमण
भायन्दर 25 जून 2023
भारतीय ॠषि परम्परा के महान साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ दो दिवसीय प्रवास हेतु भायन्दर पधारे। अणुव्रत अनुशास्ता ने अमृत देशना प्रदान कराते हुए परमाया कि चार शब्द हैa- परमात्मा, महात्मा, सदात्मा और दुरात्मा। मोक्ष में स्थित सिद्ध भगवान सब परमात्मा हैa, जन्म-मरण से मुक्त शाश्वत स्थिति को प्राप्त हैa। उनको बार-बार नमन करें। जो महान आत्मा होती है, वे महात्मा होती है। साधु-योगी, अणगार, पंचमहाव्रतधारी, संयम को धारण किये हुए हैं, वे महात्मा हैa। उनमें सरलता, साधुता और त्याग प्रधानता है।
सदात्मा जो साधु तो नहीं हैं। x`gLFk thou में रहने वाले हैं, फिर भी सज्जन हैं, भले और ईमानदार श्रावक है, वे सदात्मा हैं। जो पापात्मक आचरण करने वाली आत्माएं हैं, वे दुरात्मा हैa। दुरात्मा दुुर्जन और सदात्मा सज्जन होते हैं। दुर्जन विद्या का उपयोग विवाद में कर लेता है, तो सज्जन विद्या से संवाद करता है, ज्ञान को बढ़ाता है, दूसरों को ज्ञान बांटता है। दुर्जन के पास धन है, तो वह धन का अहंकार करता है। सज्जन धन का अहंकार नहीं, परन्तु दान करता है। दुर्जन के पास शक्ति है, तो वह दूसरों को कष्ट पहुंचाता है। सज्जन शक्ति का उपयोग दूसरों की रक्षा करने में करता है। इस तरह दुर्जन और सज्जन में अन्तर होता है।
शास्त्रकार ने कहा है कि एक आदमी अपने शत्रु का गला काट दे, वह शत्रु इतना नुकसान नहीं करता जितना नुकसान हमारी ही दुरात्मा बनी हुई आत्मा करती है। गला काटने वाला तो एक जीवन का नुकसान कर सकता है, पर दुरात्मा बनी हमारी आत्मा तो हमारा जन्मों-जन्मों का नुकसान कर सकती है। हम दुरात्मा न बनें। जब मृत्यु आती है तब दुरात्माएं पश्चाताप कर सकती है।
हम सदात्मा बने रहें। गृहस्थों के जीवन में अणुव्रत के नियम, बारह व्रत या सुमंगल साधना है, तो सदात्मा की स्थिति आती है। हमारे विचार और आचार अच्छे हों। सदात्मा बने रहने से मानव जीवन सफल बन सकता है। इस मानव जीवन का जो बढ़िया उपयोग करते हैं, वे धन्य हो जाते हैं। पूज्यवर ने चातुर्मास के संदर्भ में फरमाया कि हमारा चातुर्मास प्रवेश निकट है। इक्कीस रंगी तपस्या में श्रावक आगे कदम बढ़ाएं, मनोबल बढ़ाएं। चातुर्मास में सम्यक् ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की आराधना का प्रयास होना चाहिये। इस बार पांच माह का चातुर्मास है। इसलिए धर्माराधना का सवाया लाभ उठाएं। मीरां रोड-भायंदर में खूब धार्मिक भावना रहे।
साध्वी राकेशकुमारीजी ने पूज्यवर के दर्शन किये। आचार्यवर ने उनको फरमाया कि साध्वी राकेशकुमारीजी आज पहुंची है। धर्मसंघ की खूब सेवा करती रहेa। पूज्यवर की अभिवंदना में साध्वी राकेशकुमारीजी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। सहवर्ती साध्वियों ने गीत से अभिवंदना की। पूज्यवर के स्वागत में भायंदर सभाध्यक्ष उपासक भगवतीलालजी, भूतपूर्व नामदार नंदनवन स्थल के मालिक नरेन्द्र मेहता ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। ज्ञानशाला की सुन्दर प्रस्तुति हुई। ज्ञानार्थियों ने पूज्यवर से संकल्प स्वीकार किये। पूज्यवर नेे ज्ञानशाला के लिए आशीर्वचन फरमाया। साध्वी सुषमाकुमारीजी ने भी इक्कीस रंगी तपस्या की प्रेरणा दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।