महान अध्यात्म योगी थे आचार्यश्री महाप्रज्ञ

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महान अध्यात्म योगी थे आचार्यश्री महाप्रज्ञ

सिलीगुड़ी 
अध्यात्म योगी प्रेक्षा प्रणेता आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का जन्मदिवस मुनि प्रशांतकुमारजी के सान्निध्य में प्रणामी मंदिर में मनाया गया। जनसभा को सम्बोधित करते हुए मुनि प्रशांतकुमारजी ने कहा-  आचार्यश्री महाप्रज्ञजी एक महान अध्यात्म योगी संत थे। वर्षों-वर्षों की उनकी योगसाधना अत्यंत गहन थी। उनकी अन्त: प्रज्ञा जागृत थी। वर्षों तक अपने शरीर पर साधना के विभिन्न प्रयोग करते हुए अनुभवों के पश्चात्‌‍ प्रेक्षाध्यान नामक ध्यान की प्राचीन पद्धति को नए स्वरूप में प्रस्तुत किया। अध्यात्म योग की गहराई में पहुंच कर जो अनमोल रत्न उन्होंने प्राप्त किए, उन्हें ध्यान के विविध प्रयोगों के रुप में जनता के सामने प्रस्तुत किया। भगवद्गीता में बताया गया कि स्थितप्रज्ञता का स्वरूप उनके जीवन में साकार दिखाई देता था। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के भीतर में ज्ञान के स्रोत संभवतः खुल चुके थे। 
आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने विभिन्न विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। उनके साहित्य का एक विशाल पाठक संसार है, जो देश के हर भूभाग में फैला हुआ है। उनका साहित्य पढ़ने वाले चाहे साहित्यकार हो , राजनितिज्ञ हो, वैज्ञानिक हो या अन्य कोई भी, हर किसी को ऐसा महसूस होता है कि यह पुस्तक जैसे मेरे लिए ही लिखी गई है। हर किसी को अपनी निजी समस्या का सटीक समाधान आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के साहित्य में मिल जाता है। उनके साहित्य ने हजारों हजारों लोगों की जीवनधारा को बदला है। 
मुनि कुमुदकुमारजी ने कहा-खुले आकाश में जन्म लेने वाले बालक नत्थु ने खुले आकाश जैसी ही विराटता को प्राप्त किया। विनय और गुरु के प्रति समर्पण के तो वे मूर्तिमान स्वरूप थे। ज्ञान की इतनी गहराई, व्यक्तित्व की इतनी ऊंचाई, इतनी प्रतिष्ठा और संघ के सर्वोच्च आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किए जाने के बाद भी अहंकार उन्हें छू तक नहीं पाया। उनका विनय भाव निरन्तर बढ़ता ही रहा। गुरु के प्रति समर्पण, विनय और सम्यक्‌‍ पुरुषार्थ के बल पर आगे बढ़ते गए। उनकी निश्छलता और सरलता अनुकरणीय थी। 
मुनिश्री के मंगल मंत्रोच्चार से कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। तेरापंथ सभा अध्यक्ष रुपचंद कोठारी, तेरापंथ युवक परिषद्‌‍ से मोहित सेठिया, तेरापंथ महिला मण्डल से लीला बोथरा, तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम से महावीर बैद, अणुव्रत समिति, ज्ञानशाला की ज्ञानार्थी काव्या भंसाली ने वक्तव्य एवं गीत के द्वारा अपनी भावाभिव्यक्तियां प्रस्तुत की।  आभार  ज्ञापन नरेन्द्र सिंघी ने किया।  कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि कुमुदकुमारजी ने किया।