महान समाधिपुरुष थे आचार्यश्री महाप्रज्ञ
सिकंदराबाद
टेक्स्ट बुक कॉलोनी में तेरापंथी सभा सिकंदराबाद के तत्त्वावधान में युग प्रधान आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का 104वां जन्मोत्सव साध्वी डॉ. मंगलप्रज्ञाजी के पावन सान्निध्य में मनाया गया। श्अभिवंदना-प्रज्ञा के महासूर्य कीश् विषयक इस समारोह में उपस्थित विशाल धर्म परिषद को सम्बोधित करते हुए साध्वीश्रीजी ने कहा-आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की अज्ञ से महाप्रज्ञ तक की यात्रा अद्भुत, प्रेरक और प्रणम्य है। वे महान् समाधिपुरुष और समाधि प्रदाता विशिष्ट पुरुष थे। उनका व्यक्तित्व पुरुषार्थ, समर्पण, विवेक, प्रबुद्धता और शांति की गाथाओं से संपृक्त है। गुरुर्मुखी और अन्तर्मुखी व्यक्तित्व ने जीवन पर्यन्त उन्हें लोकप्रिय बनाए रखा। गुरुर्मुखी व्यक्तित्व ने उन्हें सदैव अन्तर्मुखी पद पर प्रतिष्ठित किया। वे समर्पण के पुरोधा पुरुष थे।
अष्टमाचार्य कालूगणी ने उन्हें संयम जीवन प्रदान कर उनकी डोर सन्त तुलसी के हाथों सौंप दी। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का मानसिक संकल्प था कि मैं ऐसा कोई कार्य नहीं करूंगा जिससे गुरु मुझसे नाराज हो। आचार्यश्री महाप्रज्ञ प्रज्ञा के क्षेत्र में प्रतिष्ठित होने के बावजूद भी विनम्रता के शिखर पर विराजमान रहे। आज वे सदेह भले ही हमारे मध्य नहीं है पर उनका यशः शरीर सम्पूर्ण मानवता के लिए आदर्श है। उनकी प्रज्ञा की सौरभ दिगदिगन्त में फैली हुई है। उन्होंने हर मन को अपने करुणा रस से आप्लावित किया। लाखों-लाखों व्यक्तियों की समस्याओं को समाहित कर सुख, शांति और आनंद की सौगात दी।
साध्वीश्री जी ने महाप्रज्ञजी के नैकट्य से प्राप्त कृपाभाव का उल्लेख करते हुए कहा-‘साधना, शिक्षा, व्यवस्था हेतु गुरुदेव का मुझे सदैव मार्गदर्शन मिलता रहा। समणश्रेणी के दौरान राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में मुझे आचार्यवर के प्रतिनिधि बनकर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।’ साध्वी डॉ. मंगलप्रज्ञाजी ने आगे कहा- ‘आवश्यकता है उस विराट व्यक्तित्व के गुणों को हम जीने का प्रयास करें। विनम्रता के भावों को पुष्ट करके परिवार और समाज मे शान्त सहवास बनाने का प्रयास करें। आचार्यवर की विद्वता ने भाषाविद्, विद्वानों, चिंतकों, लेखकों को प्रभावित किया है। आचार्यश्री के अवदान विश्वव्यापी बने हैं।’ सम्पूर्ण परिषद को आह्वान करते हुए उन्होंने कहा- ‘यदि हम आचार्य महाप्रज्ञजी को आराध्य मानते हैं तो उनके निरहंकारी रूप का ध्यान करें। जीवन की दिशा को बदलें। समता और सहिष्णुता की साधना करें ।’
साध्वी चौतन्यप्रभाजी ने कहा कि आचार्यश्री महाप्रज्ञजी एक ऐसे साधक पुरुष एवं योगी थे, जिन्होंने हमेशा अध्यात्म का अजस्र स्रोत बहाया । आज के कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विकास परिषद के सदस्य पदमचन्द पटावरी ने श्रद्धासिक्त विचारों में कहा- आचार्य महाप्रज्ञजी की शासना उच्च कोटि की थी । उन्होंने कई कीर्तिमान रचे हैं।ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों के }ारा महाप्रज्ञ अष्टकम की प्रस्तुति से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाओं ने महाप्रज्ञ जीवन दर्शन की मनभावन प्रस्तुति दी। तेरापंथी सभा के अध्यक्ष बाबुलाल बैद, तेयुप के अध्यक्ष वीरेन्द्र घोषल, महिला मंडल अध्यक्ष अनिता गिड़िया, अणुव्रत समिति के अध्यक्ष प्रकाश भंडारी ने अभिव्यक्तियां दी।
तेरापंथ महिला मंडल द्वारा सास-बहु ग्रुप संगान प्रस्तुत किया गया। तेरापंथी सभा पूर्व अध्यक्ष करणीसिंह बरड़िया ने सभी का स्वागत किया। राजकुमार सुराना ने अभिवंदना स्वरूप भावों की प्रस्तुति दी। साध्वी सुदर्शनप्रभाजी, साध्वी सिद्धि यशाजी, साध्वी राजुलप्रभाजी, साध्वी चौतन्यप्रभाजी एवं साध्वी शौर्यप्रभाजी ने समूह गीत का संगान किया। संचालन साध्वी सुदर्शनप्रभाजी ने किया।