अध्यात्म की साधना राग-द्वेष को छोड़ने की साधना है: आचार्यश्री महाश्रमण
30 जून 2023, नंदनवन
परम समत्व के साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि आत्मा के भीतर अनंतकाल से राग-द्वेष के संस्कार भी होते हैं। राग और द्वेष ये दो भाव कर्म के बीज होते हैं। जितना भी पाप कर्म का बंध होता है, उसका कारण राग-द्वेष का भाव होता है। राग जब तक रहेगा उसमें द्वेष का भाव थोड़ा पहले क्षीण हो जाता है पर राग का भाव द्वेष के जाने के बाद भी रहता है। अध्यात्म की साधना राग-द्वेष को छोड़ने की साधना है। राग-द्वेष को एक शब्द में मोह या कषाय कह सकते हैं। चार शब्दों में कहना हो तो क्रोध, मान, माया और लोभ। आदमी को मोह को कम करने का प्रयास करना चाहिये। मोह को त्याग कर समता में रहने की साधना की जाए। सारे धार्मिक तत्वों का केन्द्रीय तत्व समता है। समता से वीतरागता आती है। अनंतकाल से जो राग-द्वेष के भाव आ रहे हैं, उन्हें दूर करने का प्रयास हो।
अर्हत एवं तीर्थंकर अध्यात्म जगत के जैन शासन में प्रमुखतम व्यक्ति हैं। वे राग-द्वेष के विजेता हैं। सारे वीतराग पुरुष तीर्थंकर नहीं बन सकते। कोई-कोई अति पुण्यवान व्यक्ति ही तीर्थंकर बनता है। भरत-ऐरावत क्षेत्र में एक अवसर्पिणी या उत्सर्पिणीकाल में 24-24 तीर्थंकर ही होते हैं। ये काल की व्यवस्था है। अनेक जन्मों में साधना करते-करते वह स्थिति आती है और वे पूर्ण वीतराग बन जाते हैं। भगवान महावीर ने तो अंतिम भव में ही विशेष साधना की थी। तीर्थंकर नाम कर्म का बंध पहले ही हो जाता है। सामान्यतया पुरुष ही तीर्थंकर बनते हैं। प्रथम और अंतिम तीर्थंकर के साधु अलग होते हैं, बीच के 22 तीर्थंकर के साधु थोड़े अलग होते हैं। प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभ के साधु ऋजु जड़ और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर के साधु वक्र जड़ होते हैं। बीच के 22 तीर्थंकरों के साधु ऋजु प्राग्य होते हैं।
हर तीर्थंकर अध्यात्म की देशना देकर तीर्थ की स्थापना करते हैं। प्रवचन करना तीर्थंकरों का काम होता है। जैन जगत में सर्वे-सर्वा व्यक्ति तीर्थंकर ही होते हैं। उनकी साधना के साथ उनकी पुण्यवत्ता होती है। हम भी राग-द्वेष को जीतने की दिशा में आगे बढ़ें। चातुर्मास के संदर्भ में पूज्यवर ने फरमाया कि 2 जुलाई को चातुर्मास प्रारंभ होने वाला है। चातुर्मास का समय साधना का समय है, जिसमें तप आदि अनेक आध्यात्मिक प्रयोग चलते हैं। अनेक आध्यात्मिक प्रसंग चातुर्मास में आ जाते हैं। संसारपक्ष में मुंबई से संबद्ध मुनि अनुशासनकुमारजी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। रंजना महेन्द्र सिंघवी ने पूज्यवर से 29 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। जैन विश्व भारती के मंत्री सलिल लोढ़ा एवं सरला भूतोड़िया ने पूज्यवर के स्वागत में अपने भाव व्यक्त किये। तेरापंथ महिला मंडल, ठाणे एवं मुंबई जैन संस्कारकों ने अलग-अलग स्वागत गीत प्रस्तुत किये। तेरापंथ महिला मंडल, मंुबई ने आगमोत्सव की जानकारी दी एवं गीत के माध्यम से अपनी भावनाएं व्यक्त की। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।