मनुष्य सुगति प्राप्त करने का प्रयास करे: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मनुष्य सुगति प्राप्त करने का प्रयास करे: आचार्यश्री महाश्रमण

27 जून 23 जेपी गार्डन घोड़बंदर
जन-जन को कल्याण मार्ग की ओर अग्रसर करने वाले आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ अणुव्रत यात्रा संग घोड़बंदर के जेपी गार्डन पधारे। अर्हत् वाणी की अमृत वर्षा कराते हुए शान्तिदूत ने फरमाया कि मृत्यु के बाद मनुष्य दुर्गति या सुगति में जा सकता है। कोई-कोई मनुष्य मोक्ष को भी प्राप्त कर सकते हैं। आदमी कामनाओं से प्रतिबद्ध रह सकता है। आसक्ति, हिंसा, महापरिग्रह, महाआरम्भ, पंचेन्द्रिय प्राणियों का वध इत्यादि कारणों से आदमी दुर्गति में पैदा हो सकता है। चार गतियां- नरक गति, तिर्यन्च गति, मनुष्य गति और देव गति बतायी गयी है। हिंसा आदि कारणों से मनुष्य आयुष्य बांधकर नरक गति में जा सकता है। छल-कपट आदि ज्यादा करने वाले इन परिणामों में आयुष्य बांधकर तिर्यन्च गति-पशु आदि की योनि में पैदा हो सकते हैं।
जो मनुष्य सरल, विनीत, भद्र, दयालु है, ऐसे लोग मरकर वापस मनुष्य रूप में पैदा हो सकते हैं। जो मनुष्य त्याग और तपस्या ज्यादा करते हैं, वे मर कर देव गति में पैदा हो सकते हैं। कुछ-कुछ मनुष्य गहरी और पूर्ण साधना करके जन्म-मरण की परम्परा से मुक्त होकर सिद्धावस्था अर्थात मोक्ष को भी प्राप्त कर सकते हैं। चार गतियां संसार की हैं और पांचवी गति मोक्ष की है। एक मनुष्य ही मोक्ष में सीधा जा सकता है। हम चिंतन करें कि हम दुर्गति में न जाएं। जन्म हुआ है तो मृत्यु तो अवश्य ही होगी। विज्ञान ने बहुत विकास किया है, पर महाविदेह क्षेत्र में तो विज्ञान भी नहीं ले जा सकता। अध्यात्म की दुनिया में एक केवलज्ञानी सारी दुनिया को जानता है। विज्ञान में ऐसी शक्ति नहीं है।
हमारे शास्त्रों की बातों के आधार पर विज्ञान कुछ प्रयास और करता है तो कुछ तथ्यों को जान सकता है। अध्यात्म और विज्ञान का मार्ग अलग हो सकता है। अध्यात्म का लक्ष्य है- वीतरागता, मोक्ष को प्राप्त करना। बाह्य शब्द, रूप, गंध, रस, स्पर्श के प्रति जो कामना है, वह भीतर से नहीं छूटती है। बाहर से छोड़ना त्याग हो सकता है। हमारे में भीतर से भी आसक्ति न हो। आदमी बहिर्मुखी से अन्तर्मुखी बन जाये। आसक्ति न रहे तो वीतरागता आ जाती है। मोक्षश्री उसका वरण करने को तैयार रहती है।भीतर को विकृतियां कमजोर पड़े, आदमी स्वभाव में आ जाए। कामना को जीतकर संतोष का जीवन जीए तो आदमी सुखी बन सकता है। संतोष बड़ा धन होता है। भीतर में निराकामता हो। नाम की भी कामना न रहे। पूज्यवर के स्वागत में जेपी गार्डन के मालिक रवि पाटिल ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। व्यवस्था समिति द्वारा पाटिल परिवार का सम्मान किया गया।