शासनश्री साध्वी करुणाश्री सुजानगढ़ की स्मृति सभा
पूज्यप्रवर ने साध्वीश्री जी का परिचय देते हुए फरमाया कि उनकी दीक्षा 2020 में पोष शुक्ला दशमी को हुई थी। उन्हें लंबे काल तक ‘शासन गौरव’ साध्वी राजीमती के साथ रहने का मौका मिला। अनेक प्रांतों की यात्रा की थी। सिलीगुड़ी मर्यादा महोत्सव पर मैंने उन्हें शासनश्री अलंकरण से विभूषित किया था। वे नोखा मंडी में थी। स्वास्थ्य अनुकूलता नहीं रही थी वि0सं0 2078 जेष्ठ शुक्ला पंचमी 16 जून, 2021 को वे कालधर्म को प्राप्त हो गई थी। चौविहार अनशन भी कराया गया।
साध्वी करुणाश्री जी हमारे धर्मसंघ की अच्छी साध्वी थी। एक सिंघाड़े में जमकर रहना भी बहुत अच्छी बात होती है। हम उनके प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना करते हैं। साध्वी राजीमती जी आदि साध्वियाँ खूब चित्त समाधि में रहें। चार लोगस्स का मध्यस्थ और मंगलभावना से ध्यान करवाया।
मुख्य मुनिप्रवर, मुख्य नियोजिका जी ने भी उनके प्रति आध्यात्मिक भावना स्वरूप श्रद्धांजलि अर्पित की।
गृहस्थ दिनचर्या में ध्यान दें योग साधना, धर्म साधना के लिए समय कितना निकाल पाते हैं। एक सामायिक रोज हो जाए तो मान लें जीवन में योग भी चल रहा है। योग साधना में संयम, तपस्या, ज्ञान-स्वाध्याय भी आ गए। योग व्यापक चीज है।
योग यानी जोड़ने वाला। मोक्ष से जोड़ने वाला सारा व्यापार, सारी प्रवृत्ति, धर्म की साधना योग है। आसन-प्राणायाम के साथ यम-नियम भी योग है। जीवन की दिनचर्या में योग साधना के लिए भी समय निकालें। ध्यान का प्रयोग करवाए। श्वास के साथ णमो सिद्धाणं को जोड़ दें। हम जीवन में योग की साधना करें तो मोक्ष से जुड़ सकते हैं।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि सत्कार्य में व्यस्त आदमी को दु:खी होने का समय ही नहीं मिलता है।