अंतर्मुखी चेतना के धनी आचार्य भिक्षु

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अंतर्मुखी चेतना के धनी आचार्य भिक्षु

सुनाम।
साध्वी कनकरेखा जी के सानिनध्य में तेरापंथ सभा, सुनाम के तत्त्वावधान में आद्य-प्रणेता आचार्य भिक्षु का 298वाँ जन्म दिवस मनाया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ जप की मधुर स्वर-लहरी के साथ प्रारंभ हुआ। साध्वी कनकरेखा जी ने कहा कि विलक्षण प्रज्ञा के धनी आचार्य भिक्षु की चेतना अंतुर्मखी थी। वे साधना के पथ पर निरंतर गतिशील रहे। शुद्ध साधना के लिए बनी हुई लकीरों पर चलने का दृढ़-संकल्प उनकी मंजिल का सफल चरण बना। वे सत्य के खोजी थे।
आचार्य भिक्षु का जन्म दिन, तेरापंथ के इतिहास का स्वर्णिम दिन है। भिक्षु के अतुल पुरुषार्थ की अकथ कहानी है। उसी की बदौलत तेरापंथ धर्मसंघ एक आचार, एक विचार और एक आचार्य की अनुशासना में विश्व-क्षितिज पर अध्यात्म का परचम फैला रहा है। यह त्रिदिवसीय कार्यक्रम अखंड जप के साथ प्रारंभ हुआ। उत्साह सराहनीय है। साध्वीवृंद ने संगीत प्रस्तुत किया। पंजाब प्रांतीय सभाध्यक्ष केवलचंद जैन व महिला मंडल मंत्री सुनीता जैन ने अपने विचार रखे। साध्वी संवरविभा जी ने कार्यक्रम का संचालन किया। श्रद्धालुओं की सराहनीय उपस्थिति रही।
चातुर्मासिक चतुर्दशी
साध्वी कनकरेखा जी ने कहा कि चातुर्मास का समय आत्माराधना का समय है। अंतर्यात्रा का समय है। हम आलस्य, प्रमाद, निद्रा को दूर कर आध्यात्मिक यात्रा प्रारंभ करें। अहिंसा, संयम, तप, जप के द्वारा ज्ञान का दीपक प्रज्ज्वलित करें, उस दीपक की रोशनी से मन-मंदिर को पवित्र करें। इसके पश्चात हाजरी का वाचन करते हुए मूल धाराओं के महत्त्व को साध्वीश्री जी ने उजागर किया। साध्वी गुणप्रेक्षाजी, साध्वी संवरविभा जी, साध्वी केवलप्रभा जी, साध्वी हेमंतप्रभा जी, सह-लेख पत्र का उच्चारण हुआ। रवींद्र जैन ने श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन किया। चातुर्मासिक पक्खी प्रतिक्रमण के साथ सामुहिक क्षमायाचना की।