जिज्ञासा समाधान होने से मानसिक शांति होती है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जिज्ञासा समाधान होने से मानसिक शांति होती है : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 25 अगस्त, 2021
महामनीषी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने ठाणं आगम के दसवें अध्याय के तेरहवें सूत्र की व्याख्या करते हुए फरमाया कि एक शब्द हैसमाधि-समाधान, शांति। समाधान कैसे मिले? किसी प्रश्‍न का सम्यक् उत्तर मिल जाता है, तो समाधान मिल जाता है। जिज्ञासा को शांति मिल जाती है।
जैसे काँटा चुभता रहता है, काँटा निकल जाता है, तो आराम मिल जाता है। मन का प्रश्‍न भी कुछ अंश में मानो एक काँटे जैसा है। यह बात कैसे है, बार-बार चिंतन में आता है। ज्योंहि उसका ठीक उत्तर मिल गया, बार-बार प्रश्‍न मन में आ रहा था, उसको समाधान मिल गया। शांति मिल गई। इसलिए उत्तर मिलना एक बात है। समाधान मिलना कुछ दूसरी बात हो सकती है। कभी-कभी उत्तर तो मिल जाता है, पर समाधान नहीं मिलता है।
प्रश्‍न करने वाला स्वतंत्र है, पर उत्तरदाता तो परतंत्र है। उत्तरदान की बात एक महत्त्वपूर्ण चीज है। उत्तर देने वाला व्यक्‍ति ध्यान दे कि मैं कितना सटीक समाधान दे सकता हूँ। सटीक जबाव देना उत्तरदाता की सफलता होती है। उत्तर देने वाले के पास उस विषय का पर्याप्त ज्ञान होता है, तो वह ठीक उत्तर देने में कामयाब हो सकता है। प्रश्‍नकर्ता भी ध्यान दे कि किस व्यक्‍ति से कौन सा प्रश्‍न पूछूँ जो पर्याप्त उत्तर दे सके?
ऐसा उत्तरदाता चाहिए जिसके उत्तर में समाधान भी निहित हो। ठाणं में समाधि के दस प्रकार बताए हैं। जिनसे आत्मा को समाधान मिल सके, कर्मों की समस्या को समाधान मिल सके, दु:खों को समाधान मिल सके। पहला प्रकार हैप्राणातिपात विरमण-हिंसा से मुक्‍त हो जाओ तो आंतरिक सुख में समाधि मिल सकती है।
दूसरा प्रकार हैमृषावाद विरमण-झूठ बोलने से विरत हो जाओ। अदतादान विरमण चोरी करने से असमाधि। इसी तरह मैथुन विरमण और परिग्रह विरमण में भी समाधि मिल सकती है। पाँच समितियों के पालन से समाधि रह सकती है। साधु पाँच महाव्रत और पाँच समिति की अखंड आराधना करे तो चित्त समाधि रह सकती है।
समाधि और असमाधि हमारे हाथ में ही है, दूसरे के हाथ में तो निमित्त रूप में हो सकती है। हर किसी बात को ग्रहण मत करो। असमाधि से मुक्‍त रहोगे। बात को जानों-सुनो और छोड़ो। शास्त्रकार ने दस प्रकार समाधि के बताए हैं, हम इनका प्रयोग करके समाधिस्त बनाने का प्रयास करें।
माणक महिमा की विवेचना करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि माणकगणी विराजमान है, मुनि मगनलाल जी आदि संत उनके उपपात में स्थित हैं। गुरुदेव को बहुत गंभीर बात निवेदन करी है। उस समय के वार्तालाप को विस्तार से समझाया। अनेक तरीको से गुरुदेव को मुनि मगनलाल जी सुझाव दे रहे हैं।
भीलवाड़ा संभाग के अनेक पत्रकारगण ने पूज्यप्रवर की सन्‍निधि में उपस्थित होकर आशीर्वाद प्राप्त किया। आचार्यप्रवर ने प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि पत्रकार हवा का काम करते हैं जिस प्रकार पुष्प की सुगंध हवा से फैलती है उसी प्रकार पत्रकार समाज में अच्छी बातें फैलाने का कार्य करते हैं। पत्रकारिता में यथासंभव नैतिकता और ईमानदारी रखनी चाहिए।
पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। सम्यक् दीक्षा ग्रहण करवाई।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि जिसका सम्यक्त्व और सम्यक् दर्शन पुष्ट होता है, वो मोक्ष प्राप्ति की ओर अग्रसर हो सकता है। मुनि मेघकुमार के प्रसंग को समझाया।
साध्वी विधिप्रभा जी ने सुमधुर गीत का संगान किया।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में अक्षय छाजेड़, शांतिलाल चोरड़िया (प्रज्ञा चक्षु) ऐश्‍वर्या जैन, अर्जुनलाल मेड़तवाल ने अपने भावों की अभिव्यक्‍ति दी।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि हम पूज्यप्रवर के प्रवचन दर्पण की तरह यथार्थ रूप में सुने।