मोक्ष मार्ग की विशेष आराधना का पर्व है पर्वाधिराज पर्युषण : आचार्यश्री महाश्रमण
भीलवाड़ा, 4 सितंबर, 2021
जैन धर्म श्वेतांबर परंपरा का पावन पर्वाधिराज पर्वपर्युषण। आत्म साधना का विशेष पर्व। लौकिक पर्वों में तो खाने-पीने का आनंद लिया जाता है। संसार में सिर्फ पर्युषण पर्व ऐसा है, जिसमें सिर्फ त्याग की प्रवृत्ति होती है, छोड़ने का आनंद लिया जाता है। तेरापंथ धर्मसंघ में इसका आयोजन विधिवत अलग-अलग प्रकार के धार्मिक अनुष्ठानों से किया जाता है। आज का दिन खाद्य संयम दिवस के रूप में प्रतिष्ठित है।
तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पर्युषण के प्रथम दिवस मंगल देषणा प्रदान करते हुए फरमाया कि आज जैन शासन की श्वेतांबर परंपरा के तेरापंथ संप्रदाय का पर्युषण पर्व प्रारंभ हो रहा है और भी अन्य संप्रदायों में आज से पर्युषण का प्रारंभ हुआ हो सकता है।
पर्युषण एक महत्त्वपूर्ण समय हमारे लिए होता है। पूरे वर्ष भर में एक अपेक्षा से चतुर्मास काल का बड़ा महत्त्व होता है। हम चारित्रात्माएँ चातुर्मास में विहार-यात्रा से विरत रहते हैं। एक सीमित क्षेत्र में अपना प्रवास-आवास करते हैं। आध्यात्मिक संदर्भ में भी शेषकाल का अपना महत्त्व है। चतुर्मास काल में आख्यान-व्याख्यान का लंबा क्रम चल सकता है। तपस्या-आराधना, स्वाध्याय, लेखन-पठन इनके लिए भी चारित्रात्माओं को एक अच्छा समय प्राप्त हो सकता है।
चतुर्मास में भी श्रावण और भाद्रव का महीना और ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। इन महीनों में दिन बड़े होने से स्वाध्याय-पाठ आसानी से हो सकते हैं। इन महीनों में तपस्या का क्रम भी आमतौर से ज्यादा चलता है। लोगों की धार्मिक भावना भी अच्छी रहती है। इन दो महीनों में भाद्रव का महीना ज्यादा धर्माराधना का होता है। पर्युषण पर्वाधिराज का समागमन इसी महीने में होता है। दिगंबर परंपरा में भी दस लक्षण पर्व का समागमन इस भाद्रव महीने में होता है।
भाद्रव मास में हमारे धर्मसंघ के कई महत्त्वपूर्ण दिन भी आ जाते हैं। आज भाद्रव कृष्णा द्वादशी परमपूज्य जयाचार्य का महाप्रयाण दिवस है। भाद्रवा शुक्ला षष्ठी परमपूज्य श्री कालूगणी का महाप्रयाण दिवस है। भाद्रव शुक्ला द्वादशी परमपूज्य डालगणी का महाप्रयाण दिवस है। भाद्रव शुक्ला त्रयोदशी परमपूज्य महामना आचार्य भिक्षु का महाप्रयाण दिवस है। भाद्र शुक्ला नवमी हमारा विकास महोत्सव का दिन है, जो परमपूज्य गुरुदेव तुलसी का पट्टोत्सव बहुत वर्षों तक मनाया जाता रहा है। भाद्रवा शुक्ला तीज परमपूज्य गुरुदेव तुलसी का युवाचार्य मनोनयन का दिवस आ जाता है।
पर्युषण पर्व वर्ष में एक बार आता है। पूरे वर्ष में सबसे ज्यादा धर्माराधना का समय पूरे जैन शासन में भाद्रव मास होता है। सात दिन पर्युषण पर्व फिर आठवें दिन संवत्सरी महापर्व आ जाता है। सात दिन के पर्युषण की शुरुआत किस महापुरुष आचार्य ने की, यह शोध का विषय है। जिन्होंने भी यह प्रारंभ किया है, मैं उनका समर्थन-अनुमोदन करता हूँ कि व्यवस्था बड़ी सुंदर की है। धर्माराधना का अच्छा क्रम है।
श्रावक-श्राविकाओं में भी कितना आकर्षण एक पर्युषण के प्रति देखने को मिलता है। इतनी तपस्या की साधना होती है। नौवाँ दिन तो फिर प्रेक्टिकल रूप में खमतखामणा का उपक्रम भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। हमारे यहाँ सात दिनों के अलग-अलग विषय भी हैं।
पर्युषण के दिनों में हमारा प्रवचन भी कुछ विशेष होता है। इसमें हम भगवान महावीर का भी कुछ श्रद्धार्पण का प्रयास करते हैं। हमारे धर्मसंघ में भगवान महावीर के पूर्व भवों का वर्णन भी कई वर्षों से होता है। परमपूज्य गुरुओं की कृपा से भगवान महावीर के बारे में कुछ बताने का मुझे कई वर्षों से अवसर मिलता रहा है।
जैन दर्शन में आत्मवाद का सिद्धांत सम्मत है। अध्यात्म का एक आधारभूत सिद्धांत आत्मवाद है। आत्मवाद न हो
तो अध्यात्म का, साधना का मूल्य कम हो जाता है। हम आत्मवाद के बारे में कुछ तार्किक वर्गणा कर सकते हैं। मति-श्रुत
ज्ञान के आधार पर हम ज्ञानाराधना कर सकते हैं।
आत्मवाद में आत्मा एक ऐसा तत्त्व है जो शाश्वत है। आत्मा के कभी आत्मा संतान के रूप में पैदा नहीं होती। सब अपनी-अपनी स्वतंत्र आत्माएँ हैं। यह आत्मवाद का सिद्धांत है। अनंत-अनंत आत्माएँ संसार में हैं। एक भी आत्मा न बढ़ती है, न घटती है। आत्मा कभी मरती नहीं है। इस रूप में आत्मा है, तब पूर्वजन्म, पुनर्जन्म की बात सिद्ध हो सकती है। पर्याय रूप में परिवर्तन हो सकता है।
भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी के प्रस्तुत भरत क्षेत्र में चौबीसवें और अंतिम तीर्थंकर हुए हैं। आज से अढ़ाई हजार वर्ष पूर्व इस क्षेत्र में विराजमान थे। वे महावीर एक भव में ही नहीं बनें, पृष्ठभूमि में उनकी कितनी तप: साधना आराधना रही है।
आत्मा है, आत्मवाद है, तो आत्मवाद से जुड़ा हुआ है, कर्मवाद। जो जैन दर्शन का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है, जो आत्मा के साथ जुड़ा हुआ है। आदमी के व्यक्तित्व की व्याख्या आठ कर्मों के आधार पर की जा सकती है। तीसरा सिद्धांत हैलोकवाद। क्रियावाद की बात भी आती है। जैन दर्शन मनन और मीमांसा, भगवती, पन्नवणा और तत्त्वार्थ सूत्र को विस्तार व्याख्यान से पढ़ लें तो जैन दर्शन का अच्छा ज्ञान हो सकता है।
पूज्यप्रवर ने परमपूज्य जयाचार्य के महाप्रयाण दिवस पर फरमाया कि जयाचार्य तेरापंथ धर्मसंघ के विशिष्ट आचार्य हुए हैं। तेरापंथ की प्रथम शताब्दी में आचार्य भिक्षु, द्वितीय शताब्दी में श्रीमद्जयाचार्य और तृतीय शताब्दी में आचार्य तुलसी को मुख्य रूप से देख सकते हैं। जयाचार्य ने धर्मसंघ को कई नए अवदान दिए हैं।
साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी ने अपने उद्बोधन में हित-मित और सात्त्विक भोजन करने के रूप में खाद्य संयम दिवस पर विशेष प्रेरणा दी। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि जो व्यक्ति गहराई में जाता है वही कुछ पाने के योग्य होता है। संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।
कार्यक्रम में मीना गोखरू ने 9, ॠतु चौरड़िया ने 15, जसोदा देवी चोपड़ा ने 45 सहित अनेक तपस्यिों ने प्रत्याख्यान किए।