जीवन में मोह, माया व अहंकार से बचें: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जीवन में मोह, माया व अहंकार से बचें: आचार्यश्री महाश्रमण

नंदनवन (मुंबई), 23 जुलाई, 2023
तीर्थंकर के प्रतिनिधि, धर्मगुरु आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती आगम में कहा गया है कि जैन दर्शन में आत्मवाद एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है। आत्मवाद से जुड़ा दूसरा सिद्धांत है-कर्मवाद। ये जैन दर्शन के दो महास्तंभ है। आत्मा के बारे में अच्छी जानकारी इनसे प्राप्त हो सकती है। कर्मवाद का एक सिद्धांत है कि कर्म बंध दो प्रकार का होता है-ऐर्यापथिक बंध और सांप्रदायिक बंध। ऐर्यापथिक बंध केवल योग से होता है। कषाय रहित योग से बंधने वाला यह कर्म होता है। यह वीतराग के ही होता है। वीतराग दो प्रकार के होते हैं-उपशांत मोह वीतराग और क्षीण मोह वीतराग।
क्षीण मोह वीतराग बारहवें गुणस्थान से शुरू होता है। तीन प्रकार के वीतराग उपशांत मोह सहित वीतराग, क्षीण मोह वीतराग और सयोगी केवली वीतराग। पथिक बंध 11-12-13वें गुणस्थान में ही होते हैं। 14वाँ गुणस्थान तो अवबंध है। इससे केवल सात वेदनीय कर्म का ही बंध होगा। पहले समय बंधा, दूसरे समय में उदय में आया और भोगा, बस इतना सा हल्का-फुल्का होता है।
सांप्रदायिक बंध पहले से दसवें गुणस्थान तक सकषाय अवस्था में होता हो। सकषायी अवस्था में आठों कर्मों का बंध होता है। 11-12-13वें गुणस्थान के मनुष्य को छोड़कर सभी संसारी जीवों के होता है। प्रकृति और प्रदेश का संबंध योग से और अनुभाग व स्थिति कषाय से संबंधित है। संसार भ्रमण का कारण सांप्रदायिक बंध ही होता है। हमारा कषाय शांत रहे, पतला पड़े तो सांप्रदायिक बंध भी हल्का होता है। कषायों को प्रतनू या उनका अल्पीकरण करने का प्रयास हो। सांप्रदायिक बंध को कम करने का प्रयास करें।
गृहस्थ हिंसा, चोरी, झूठ बोलने, झूठे आरोप लगाने से बचें। माया-अहंकार से बचें। 18 पापों से बचने का प्रयास करें तो पाप के रूप में सांप्रदायिक बंध से बच सकते हैं। धर्म की साधना करें। सदाचार, सादा विचार मन में रहें। हम अबंध अवस्था को प्राप्त करें, ऐसा प्रयास हो। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि हम मोह को कैसे कम करें। कर्म के चार कार्य होते हैं-आवारक, विकारक, प्रतिघात और अशुभ व संयोग के निमित्त। मोहकर्म कर्मों का सेनापति है। मोह कर्म का विनाश होने पर ही हम आगे प्रगति कर सकते हैं। मोह के कारण ही आसक्ति व ममत्व है, अवैराग्य भाव है। जगत को अंधा कराने वाला मोह कर्म है। मोह कर्म से ही सावद्य प्रवृत्तियाँ होती हैं।
संजयराज सेमलानी एवं विजया देवी धाकड़ ने 23 की तपस्या के पूज्यप्रवर से प्रत्याख्यान ग्रहण किए।
‘उत्थान’ आध्यात्मिक क्रार्यक्रम के मंचीय कार्यक्रम में मदनलाल तातेड़ तथा रतनलाल सियाल ने इसकी जानकारी दी।अनेक जैन-अजैन परिवार इससे जुड़े हैं। मुनि अभिजीत कुमार जी एवं मुनि जागृत कुमार जी ने विशेष श्रम करके उत्थान के माध्यम से जागृति लाने का प्रयास किया है। मुनि जागृत कुमार जी ने इसके उद्देश्य के बारे में जानकारी दी। अनेक प्रयोगों से लोगों को जोड़ने का प्रयास किया गया। विशेषकर युवाओं, बच्चों को धर्मसंघ की जानकारी दी गई। चिराग देसाई ने वीडियो से इसकी जानकारी दी। उत्थान टीम ने संवाद से इसकी प्रस्तुति दी। मुनि अभिजीत कुमार जी ने बताया कि बहुश्रुत परिषद के संयोजक प्रो0 मुनिश्री महेंद्र कुमार जी ने समाज में जागृति लाने का प्रयास किया। उत्थान शब्द के महत्त्व को समझाया। हर समाज के लोगों को इसके माध्यम से समझाने का प्रयास किया गया। हर क्षेत्र के लोगों से इसके माध्यम से संपर्क किया गया। 
पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि उत्कर्ष और उत्थान किस दिशा में हो यह महत्त्वपूर्ण है। किसी भी काम को शुरू करने के लिए उत्थान होता है, तो उसमें गति आ सकती है। अनेक लोग इससे जुड़े हैं। जीवन में जब तक वीतराग न बन जाए, उत्थान होता रहे। प्रवचन के दौरान आचार्य महाप्रज्ञ जी की कृति के अंग्रेजी संस्करण छमू कंल दमू जीवनहीज का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।