सबके प्रति विनय भाव रखें: आचार्यश्री महाश्रमण
अध्यात्म जगत के भास्कर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र के 8वें शतक के 8वें उद्देशक में कहा गया है कि गौतम स्वामी ने प्रश्न किया कि गुरु की अपेक्षा कितने प्रत्यनीक बताए गए हैं। उत्तर दिया गया कि गुरु की अपेक्षा तीन प्रत्यनीक हैं-आचार्य प्रत्यनीक, उपाध्याय प्रत्यनीक व स्थविर प्रत्यनीक। प्रत्यनीक यानी प्रतिकूल, विरुद्ध, अविनीत। गुरु का अर्थ बड़ा भारी होता है। जो गुणों से बड़ा-भारी हो गया है। गुरु के तीन प्रकार हो जाते हैं-आचार्य, उपाध्याय और स्थविर। जैन शासन में तो आचार्य बहुत ऊँचे पद पर होते
हैं। तेरापंथ में तो आचार्य सर्वेसर्वा होते हैं। उपाध्याय पद भी अलग नहीं है। आचार्य में ही उपाध्याय पद समाहित है। कई आचार्य या साधु भी स्थविर हो जाते हैं। जो साधु आचार्य की सेवा से कतराता है वह आचार्य का प्रत्यनीक होता है। वह दुर्भावना से आचार्य का छिद्र देख गलत बात प्रवाहित करता है। सम्मान नहीं करता, उद्दंडता का भाव
होता है। इसी तरह जहाँ उपाध्याय होते हैं, उनका अविनय करने वाला, सेवा न करने वाला उपाध्याय प्रत्यनीक हो जाता है। स्थविर तीन प्रकार के होते हैं-जाति स्थविर, श्रुत स्थविर, पर्याय स्थविर। उनकी अवहेलना और सेवा न करने वाला स्थविर प्रत्यनीक हो जाता है। भगवती सूत्र में अनेक प्रकार के प्रत्यनीक के वर्ग बताए गए हैं। प्रत्यनीक से हम प्रेरणा लें कि हम प्रत्यनीक न बन जाएँ। साधु-साध्वी व श्रावक-श्राविका कोई भी हो, हमारे से अविनय न हो जाए। गुरुदेव तुलसी तो 22 वर्ष के आचार्य बन गए थे, पर मगन मुनि जैसे वरिष्ठ संत उनको बहुत मान-सम्मान देते थे।
बड़े संतों द्वारा विगय होता तो गुरुदेव तुलसी रत्नाधिक साधुओं को मान-सम्मान देते थे। हमारे धर्मसंघ में गुरु की गरिमापूर्ण मान-सम्मान की परंपरा रही है। शासन समुंद्र है, कई तरह की चीजें मिल सकती हैं। हम अच्छा बनने का प्रयास करें। महामनीषी ने कालू यशोविलास का सुंदर विवेचन करते हुए मुनि तुलसी के बड़ा गुड़ा में पूज्य कालूगणी के साथ हुए संवाद को समझाया। बढ़ रही बहु विस्तार धार सीख धीरज मने। मुनि तुलसी ने मगन मुनि के कहने पर वापस दोहा सुनाया-महर रखो महाराज, नरव चाकर पद कमल लो। सीख अपो सुखदाय, जिस जलदी शिव गति लहूं।। इसी तरह चतराजी के गुड़ा में भी सोरठिया से संवाद हुआ। पूज्यप्रवर ने 21 रंगी तपस्या के तपस्वियों को प्रत्याख्यान करवाए। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने सम्यक् दर्शन को विस्तार से समझाया।