हम राग-द्वेष से मुक्त आत्मा के परिणमन में रहें : आचार्यश्री महाश्रमण
भीलवाड़ा, 1 सितंबर, 2021
अध्यात्म साधना के सजग प्रहरी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में दो ही तत्त्व हैंजीव और अजीव। जो कुछ हैं, इस दुनिया में वह सब कुछ इन दो तत्त्वों में समाविष्ट हो जाता है। जीव में भी परिणमन-अवस्थांतरण होता है और अजीव में भी परिणमन होता है।
चार भाव औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक ये तो वैसे जीव से संबंध हैं। परंतु पारिणामिक भाव यानी परिणमन वह जीव और अजीव दोनों से संबंध होता है। अजीव परिणाम के दस प्रकार बताए गए हैं। अजीवों में भी बंधन होता है। परमाणु-परमाणु मिल जाते हैं, स्कंध रूप में परिणमन हो जाता है। बंधन होता है, तो इसके विपरीत भेद भी होता है। पदार्थ में टूटन भी होती है।
गति का परिणमन भी होता है। पुद्गल गति भी करता है। अस्पृश गति भी करता है। संस्थान परिणमन-पुद्गलों में भी संस्थान होता है। कोई गोल है, कोई चौड़ा-संकरा है। वर्ण परिणमन, रस परिणमन, गंध परिणमन और स्पर्श परिणमन भी होता है। ये चार परिणमन पुद्गल में अनिवार्य रूप में होते हैं। अगुरुलघु और शब्द परिणमन भी होता है। ये दस परिणमन पुद्गल में प्रतीक हो रहे हैं।
वर्ण, गंध, रस और स्पर्श के बिना पुद्गल नहीं होता। परमाणु में भी ये अवश्य होते हैं। शब्द का होना जरूरी नहीं है। ये परिणमन अजीवों में होते हैं। अतीन्द्रिय ज्ञानी तो जानते ही हैं। जो अतीन्द्रिय ज्ञानी नहीं हैं, वो भी गहरी बातें जान लेते हैं। अध्यात्म और विज्ञान का संयोग है। पर एक आसन पर दोनों को बिठाना ठीक नहीं है। दोनों का उद्देश्य अलग है।
भगवान महावीर तो वैज्ञानिक नहीं सर्वज्ञानी थे। वे तो सर्वज्ञ थे। ज्ञान-ज्ञान का भी स्तर होता है। अध्यात्म और विज्ञान की समानता को जानें तो असमानता को भी जानें। आत्मा और पुद्गल में समानता भी है, पर सबसे बड़ी असमानता चैतन्य की है।
विभिन्न धर्म आज दुनिया में है, उनमें कई बातों में समानता मिल सकती है, पर असमानता भी मिल सकती है। दोनों को हम जान लें। जो जैसा है, वैसा जानने का प्रयास करें तो हम ठीक पथ पर रह
सकते हैं।
हमारे जो आगम हैं, इनमें इतनी बातें हैं। कितने प्रकार के निर्देश-सूत्र हैं। कितने प्रकार के विषय हमें आगमों में प्राप्त हो जाते हैं। धर्मास्तिकाय व अधर्मास्तिकाय है, उनमें भी अपने स्तर का परिणमन हो सकता है। यों अरूपी में भी अपने ढंग का परिणमन प्रतीत हो रहा है।
हमें यह ध्यान देना है कि ये पुद्गलों में विभिन्न प्रकार के परिणमन होते हैं। हम उन परिणमनों में कैसे अपने भाव में रह सकें। पुद्गलों के परिणमन हमारे राग-द्वेष के निमित्त न बन जाएँ। हमारा राग-द्वेष मुक्ति का भाव रहे। हम आत्मा के परिणमन में रहें। हम राग-द्वेष से मुक्त रह सकें
यह चिंतन का भाव हमारे लिए ग्रहणीय हो सकता है।
आज से चार दिन बाद भाद्रव कृष्णा द्वादशी है, पर्युषण का प्रारंभ होना है। पर्युषण के दिवस हमारे श्वेतांबर जैन परंपरा में बहुत महत्त्वपूर्ण दिवस होते हैं। अष्टाह्निक यह साधना है। संवत्सरी का विशेष विधान है। गृहस्थों के लिए भी यह पर्युषण का समय बहुत महत्त्वपूर्ण है।
गुरुकुल में तो पर्युषण एक विशिष्ट महाशिविर जैसा होता है। पर्युषण में गृहस्थों में अखंड जप भी चलता है। प्रवचन-श्रवण के साथ सामुहिक प्रतिक्रमण भी हो। संवत्सरी को तो उपवास के साथ पौषध भी करना होता है। समय-समय पर यथासंभव जानकारी बताई जा सकेगी।
पूज्यप्रवर ने तपस्वियों को तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि अदर्शनी होता है, जिसे सम्यक् दर्शन नहीं प्राप्त होता है। उसका ज्ञान भी सम्यक् नहीं होता। चारित्र भी प्राप्त नहीं होता। जो गुणों से रहित व्यक्ति है, वह मोक्ष को, निर्वाण को प्राप्त नहीं होता। हम हमारे सम्यक्त्व को दूषित न करें। हमारी देव, गुरु और धर्म के प्रति अटूट आस्था और समर्पण का भाव हो।
साध्वी सुषमा कुमारी जी ने बहनों को नवरंगी तप, जो 3 तारीख से शुरू हो रहा है, उससे जुड़ने की प्रेरणा दी। साध्वी मननयशा जी ने सुमधुर गीत की प्रस्तुति दी।
हस्तीमल हिरण जो आरएसएस से जुड़े हुए हैं, अपनी भावना श्रीचरणों में अभिव्यक्त की। आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केंद्र ट्रस्ट जिन्होंने ‘संकल्प’ पुस्तक तैयार की है, सुरेश दक ने श्रीचरणों में प्रस्तुत की।
पूज्यप्रवर ने इस विषय में फरमाया कि 2019 का चतुर्मास बैंगलोर में हमने वहाँ किया था। वहाँ अच्छी आध्यात्मिक-धार्मिक गतिविधियाँ चलती रहें। ऐसा प्रयास रहे। मुनि मुकुल कुमार जी ने सुमधुर गीत की प्रस्तुति दी।
नरेंद्र रांका, सहमंत्री किशोर मंडल ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।