धर्मसंघ व संगठन के प्रति सेवा भाव हो: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

धर्मसंघ व संगठन के प्रति सेवा भाव हो: आचार्यश्री महाश्रमण

इक्कीस रंगी तपोमहायज्ञ के तपस्वियों को वृहद मंगलपाठ

नंदनवन (मुंबई), 22 जुलाई, 2023
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने प्रातः लगभग 7 बजकर 10 मिनट पर इक्कीस रंगी के अंगभूत तपस्वियों को पारणे से पूर्व वृहद् मंगलपाठ की कृपा तीर्थंकर समवसरण में कराई। पूज्यप्रवर ने तप की महिमा को समझाते हुए फरमाया कि कुछ समय पहले 21 रंगी तप करवाने का चिंतन चला था। तब श्रावक समाज ने 21 रंगी
तप की क्रियान्विति भी कर दी। आज वह संपूर्णता की ओर है। अब आगे बढ़ने वाले और आगे बढ़ सकते हैं। परम पावन ने आगे तपस्या में बढ़ने वालों को प्रत्याख्यान करवाए। साधु-साध्वी समाज में भी बड़ी तपस्याएँ चल रही हैं।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी, साध्वीवर्या समबुद्धयशा जी एवं मुख्य मुनि महावीर कुमार जी ने भी तप की महिमा को समझाया। साध्वीवृंद ने समूह रूप में मुंबई में हुई 21 रंगी तपस्या पर गीत की प्रस्तुति दी। अमृत पुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी ने तीर्थंकर समवसरण में भगवती सूत्र के 8वें शतक की व्याख्या करते हुए फरमाया कि प्रत्यनीक अनेक रूप में हो सकता है। संगठन के लिए भी आदमी प्रतिकूल व्यवहार करने वाला हो सकता है। गण एक संगठन होता है। संगठन में विघटन करने का प्रयास, बाधा डालने का प्रयास करता है, वह संगठन का प्रत्यनीक बन जाता है। ऐसा करना उसकी आत्मा के लिए एवं व्यवहार में भी अहितकर हो सकता है।
समूह के रूप में कुल प्रत्यनीक, गण प्रत्यनीक व संगठन प्रत्यनीक होते हैं। हम संगठन की सेवा कर उसे मजबूती देने में अपना प्रयास करें। अनुकंपनीय के संदर्भ में प्रत्यनीक हो सकते हैं। तेजस्वी, वृहद या बीमार व शैक्ष सेवा लेने वाले अनुकंपनीय होते हैं। इनकी सेवा न करने वाला अनुकंपनीय प्रत्यनीक हो जाता है। संगठन में सेवा का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। इससे संगठन की मजबूती होती है।
प्राणियों में परस्पर सहयोग की भावना हो। छः द्रव्य सबको सहयोग देते हैं। कोई सहयोग न करे तो वह प्रत्यनीक हो सकता है। नए शैक्ष साधु की संभाल तरीके से हो। इन प्रसंगों से हमें दो प्रेरणा मिलती है। एक तो हम संघ की सेवा करने का प्रयास करें। संगठन में दरार न डालें। सेवा करने से डरें नहीं उचित अपेक्षा अनुसार साधुओं की सेवा करें। हमारे पूर्वाचार्यों ने धर्मसंघ की बहुत सेवा की है, हमारे में भी सेवा करने का विकास हो।
कालूयशोविलास का विवेचन करते हुए पूज्यप्रवर ने मेवाड़ के विषय मार्ग से पूज्य कालूगणी के उदयपुर की ओर विहार के प्रसंग को समझाया। मेवाड़ के लोग पूज्यप्रवर के दर्शन करने आ रहे हैं। जेठ माह में गर्मी का भी प्रकोप है। वीणा मेहता ने 30 की एवं मीठालाल बरलोटा ने 22 की तपस्या के पूज्यप्रवर से प्रत्याख्यान ग्रहण किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।