नवकार करे : भव पार 

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नवकार करे : भव पार 

साउथ कोलकाता 
जैनधर्म का सुप्रसिद्ध महामंत्र है- नमस्कार महामंत्र। नमस्कार महामंत्र चैतन्य जागरण और चित्त की निर्मलता को विकसित करने वाला अलौकिक मंत्र है। यह बोधि, समाधि और सिद्धि दाता है। यह सब पापों को नाश करने वाला महामंत्र है। हिन्दु धर्म में गायत्री मंत्र, बौद्ध धर्म में त्रिशरण मंत्र व जैन धर्म में नमस्कार महामंत्र विश्रुत‌ है। चौदह पूर्वाे के सार स्वरूप इस मंत्र को जैन धर्म में महामंत्र माना गया है। महानिशीथ में इसको महाश्रुत स्कन्ध कहा गया है। जिन भद्रगणी क्षमा श्रमण ने इस महामंत्र को सर्व श्रुतान्तर्गत बतलाया है। इस मंत्र को दिगम्बर, श्वेताम्बर, परम्पराओं ने समान रूप से माना है। इसकी महिमा अचिन्त्य एवं अकथनीय है। प्रवाह की दृष्टि से यह मंत्र अनादि है। वर्तमान में तीर्थकर भगवान इसकी रचना करते हैं। एक परम्परा के अनुसार इस मंत्र की रचना गणधर करते हैं। यह मंत्र भरपूर ऊर्जा से भरा हुआ है। इस मंत्र के कोई व्यक्ति विशेष अधिष्ठाता नहीं होते हैं। इस मंत्र में व्यक्ति विशेष की नहीं गुणों की पूजा होती है। यह जैनों का सर्वमान्य, महाप्रभावक, कल्याणक, उन्नायक, विघ्नविनाशक संकटमोचक मंत्र है। उपरोक्त विचार मुनि जिनेशकुमारजी ने ‘नवकार करे: भव पार’ विषय पर तेरापंथ भवन में व्यक्त किए। मुनि परमानंदजी ने कहा कि नवकार मंत्र एक सहारा है। नवकार मंत्र से व्यक्ति भव से मुक्त हो जाता है। मुनि कुणालकुमारजी ने गीत का संगान किया। इस अवसर पर उषा धाड़ेवा ने विचार रखे । तेरापंथ भवन में 13 घंटे का नमस्कार महामंत्र जप हुआ।