संयम से अहिंसा की दिशा में करें प्रस्थान: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

संयम से अहिंसा की दिशा में करें प्रस्थान: आचार्यश्री महाश्रमण

10 अगस्त 2023 नन्दनवन, मुम्बई
महान मनोवैज्ञानिक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए फरमाया कि गौतम स्वामी ने भगवान से प्रश्न पूछा- भन्ते! एक पुरुष दूसरे पुरुष की हत्या करता है। क्या वह पुरुष हनन करता हुआ दूसरे पुरुष का भी हनन करता है? उस पुरुष के सिवाय और किसी को भी मारता है क्या?
उत्तर दिया कि गौतम! जो पुरुष को मारने वाला है, वह उस पुरुष के साथ उसके शरीर में विधमान अन्य जीवों की भी हिंसा कर देता है। आदमी के शरीर में अन्य कई जीव-कृमियां आदि हो सकते हैं। उसके शरीर, मल-मूत्र अथवा खून आदि में रहने वाले कृमि आदि का भी नाश हो जाता है, इसलिए उस एक शरीर के आश्रित अन्य अनेक जीवों की हिंसा और उसके परिपार्श्व में भी अन्य कोई जीव हिंसा हो सकती है। इसलिए वह एक आदमी के साथ अन्य जीवों का हंता होता है। इसी प्रकार आदमी कोई अन्य पशुओं को मारता है तो दूसरे जीवों की भी हिंसा हो सकती है।
एक आदमी किसी ऋषि-साधु की हत्या कर देता है, उसके साथ अनन्त जीवों की हिंसा और कर देता है। साधु व्रत में रहता है, पर उसकी हिंसा कर दी तो उसका वह भव तो पूरा हो गया, वह आत्मा अव्रत में चली गयी। उसे हिंसा के लिए खुला कर दिया तो अप्रत्यक्ष रूप में वह अनन्त जीवों की हिंसा करने का भागीदार बन गया है। साधु उपदेश देते हैं, तो कितने लोग हिंसा का त्याग कर देते हैं। अब वह साधु नहीं रहा। कितने लोग उसके उपदेश से समझ सकते थे पर अब वे उससे वंचित रह गये। वे उस साधु के उपदेश से अहिंसा के मार्ग पर जाने से वंचित रह गये।
इस तरह एक जीव की हिंसा करने से अप्रत्यक्ष रूप में कितने जीवों की हिंसा हो सकती है। आदमी का भाव हिंसा का है, संयोग से वह प्राणी न भी मरे, तो भी वह भावों से पापी बन जाता है। हिंसा के चार अंग हो जाते हैं। (1) द्रव्यतः हिंसा है, भावतः हिंसा नहीं है। (2) भावतः हिंसा है, द्रव्यतः हिंसा नहीं है। (3) द्रव्यतः भी हिंसा है और भावतः भी हिंसा है। (4) न द्रव्यतः हिंसा है, न भावतः हिंसा है।
पूज्यवर ने अहिंसा के संदर्भ में प्रेरणा प्रदान कराते हुए फरमाया कि श्रावण मास चल रहा है, कम से कम जमीकंद- अनन्तकाय चीजों का तो प्रयोग न करें, संभव हो तो रात्रि भोजन न करें, प्रत्येक चीज में संयम रखें तो हिंसा से बचा जा सकता है।
पूज्यवर ने कालूयशोविलास का सुमधुर स्वर में विवेचना कराते हुए पूज्य कालूगणी के जावरा प्रवास में उनके हाथ में हुई वेदना के प्रसंग को फरमाया।
पूज्यवर ने राजुल सांखला, मंजू बोहरा, संजय बोहरा, श्वेता बागरेचा व ममता सिंघवी को तपस्या के प्रत्याख्यान करवाये।
हिंगवाला घाटकोपर संघ से अनेक श्रावक पूज्यवर के श्रीचरणों में उपस्थित हुए। विपीन भाई, मुकेश भाई ने घाटकोपर में ज्यादा से ज्यादा विराजने की प्रार्थना हेतु निवेदन किया।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमारजी ने किया।