उपासना
(भाग - एक)
जैन जीवनशैली
तेरापंथ
आचार्य भिक्षु किसी नए संघ को चलाने के उद्देश्य से अलग नहीं हुए थे। इसलिए उन्होंने नामकरण की कल्पना ही नहीं की। पर जोधपुर में अनायास ही उनका संघ तेरापंथी नाम से प्रसिद्ध हो गया। यह संवाद उनको बिलाड़ा के आसपास ही मिला होगा। इस संवाद ने एक बार उनको चौंका दिया। पर सारी घटना की जानकारी होने पर उन्होंने उसे स्वीकार कर लिया। वे आसन से नीचे उतरे। अर्हम् भगवान् को वंदन किया और तेरापंथ शब्द का भाष्य करते हुए बोले-‘हे प्रभो! यह तेरा पथ है। हम तो इस पर चलने वाले पथिक हैं। संख्यापरक नाम को इतना गंभीर अर्थ देना, आचार्य भिक्षु की मौलिक सूझ-बूझ का प्रतीक है।
तेरापंथ शब्द का अर्थ यह भी किया जाता है-पाँच महाव्रत, पाँच समिति तथा तीन गुप्ति, इन तेरह नियमों का पालन करने वाला तेरापंथी कहलाता है।
आचारनिष्ठा, अनुशासन और संगठन तेरापंथ धर्मसंघ के मूलभूत आधार हैं। एक आचार्य का नेतृत्व, मौलिक आचार की एकरूपता और तत्त्व-निरूपण की एक शैली-यह एकत्व का अनुपम उदाहरण है।
तेरापंथ धर्मसंघ के संचालन में वर्तमान आचार्य का कर्तृत्व तो मुख्य निमित्त है ही, आचार्य भिक्षु द्वारा निर्मित मर्यादाओं की भी अहम भूमिका है। कुछ मर्यादाएँ इस प्रकार हैं-
- सब साधु-साध्वियाँ एक आचार्य की आज्ञा में रहें।
- विहार, चातुर्मास आचार्य की आज्ञा से करें।
- अपना-अपना शिष्य-शिष्या न बनाएँ।
- आचार्य भी योग्य व्यक्ति को दीक्षित करें। दीक्षित करने पर कोई अयोग्य निकले तो उसे गण से अलग कर दें।
- आचार्य अपने गुरुभाई या शिष्य को अपना उत्तराधिकारी चुनें, उसे सब साधु-साध्वियाँ सहर्ष स्वीकार करें।
तेरापंथ धर्मसंघ की मर्यादाएँ प्राणवान् हैं, संगठन सुदृढ़ है और व्यवस्थापक्ष मजबूत है। इनके साथ-साथ आचार्य भिक्षु ने धर्म के संबंध में सर्वथा नई अवधारणा दी। उन्होंने कहा-‘धर्म सावैभौम तत्त्व है। वह किसी संप्रदाय की सीमा में बंधा हुआ नहीं लहै। एक अजैन व्यक्ति अहिंसा, ब्रह्मचर्य, संयम आदि की साधना करता है, वह भी धर्म है, मोक्ष-साधना का अंग है।’
- त्याग धर्म है, भोग धर्म नहीं है।
- दया धर्म है, हिंसा धर्म नहीं है।
- आज्ञा धर्म है, आज्ञा से बाहर धर्म नहीं है।
- धर्म अनमोल है। मूल्य से खरीदा जाए वह धर्म नहीं है।
- हृदय-परिवर्तन धर्म है, बल-प्रयोग धर्म नहीं है।
आचार्य भिक्षु ने दुनियादारी और मोक्ष धर्म को सर्वथा अलग-अलग बताया। उनके अनुसार दुनियादारी का कोई भी काम धर्म की सीमा में नहीं आ सकता। इस प्रस्थापना के कारण उनका बहुत विरोध हुआ। विरोध का यह सिलसिला लगभग दो शताब्दियों तक काफी तीव्र रहा। उसके बाद जैसे-जैसे तत्त्वों को समझा गया, विरोध का स्वर क्षीण होता गया। गुरुदेव तुलसी ने तेरापंथ के शाश्वत सिद्धांतों को सामायिक संदर्भों में नई शैली में प्रस्तुति दी। इससे तेरापंथ के सिद्धांत विरोधी लोगां के गले उतरने लगे। यही कारण है कि आज तेरापंथ जैन धर्म की पहचान बन गया है। अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान और जीवन विज्ञान तेरापंथ के व्यापक कार्यक्रम हैं। इनके कारण तेरापंथ युगधर्म के रूप में प्रतिष्ठित हो रहा है। तेरापंथ के वर्तमान अधिशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाप्रज्ञ अपने धर्मसंघ को अध्यात्म की नई ऊँचाइयाँ देने के लिए अहर्निश प्रयत्न कर रहे हैं। आपके नेतृत्व में तेरापंथ का जो स्वरूप उजागर हो रहा है, वह प्रत्येक तेरापंथी के लिए गौरव का विषय है। (क्रमशः)