उपासना (भाग - एक)
जैन जीवनशैली
अणुव्रत
किसी भी राष्ट्र की सबसे बड़ी शक्ति है उसका चरित्र। राष्ट्र का चरित्र राष्ट्र की जनता पर निर्भर है। जनता का चरित्र-बल जितना मजबूत होता है, राष्ट्र उतना ही ऊँचा उठता है। सैन्यबल, संख्याबल और अर्थबल भी राष्ट्र के विकास में निमित्त बनते हैं। पर मूल तत्त्व है चरित्र-बल। चरित्र-बल के अभाव में दूसरे-दूसरे बल अपने आप क्षीण होने लगते हैं। इस सत्य को समझने वाला व्यक्ति चरित्र का मूल्यांकन कर सकता है।
बीसवीं सदी आधी पूरी होने को थी। उस समय भारत सदियों से राजनीतिक दासता से मुक्त हुआ। देश की जनता प्रसन्न हुई। पर स्वतंत्रता आंदोलन के समय उसमें देशप्रेम की जो जीवंत लहर आई थी, वह नीचे दबने लगी। स्वार्थों की पूर्ति की आकांक्षा और सुविधाभोगी मानसिकता बढ़ी। पर राष्ट्रीय चरित्र निर्माण की बात दिमाग से निकलती गई। उस समय आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन काप्रवर्तन किया। अंधकार में प्रकाश की एम नई किरण का आविर्भाव हुआ।
अणु का अर्थ है छोटा और व्रत का अर्थ है नियम। अणुव्रत अर्थात् छोटे-छोटे नियम। मानव जीवन की न्यूनतम आचार-संहिता। मनुष्यता का व्यावहारिक मानदंड। धर्म का असांप्रदायिक रूप। मनुष्य मात्र को संयम, सादगी, नैतिकता और मानवता की ओर बढ़ने की प्रेरणा। जाति, धर्म, रंग, लिंग, वर्ण, भाषा, प्रांत आदि सभी भेदभावों से ऊपर एक व्यापक दृष्टिकोण। भ्रष्टाचार के तीखे तीरों से बचाने वाला सुरक्षा कवच। अणुबम से होने वाले ध्वंस के बीच आत्मनिर्माण का अमाघ मंत्र। 2 मार्च, 1949, सरदारशहर में अणुव्रत की आवाज उठी। आज वह इस छोर से उर छोर तक प्रतिध्वनित होती हुई देश की सीमाओं को पार कर विश्वमानव का ध्यान खींचने में सफल हो रही है।
धर्म के दो रूप हैंµउपासना और चरित्र। उपासना के अनेक रूप हैं जबकि चरित्र का एक ही रूप है। भिन्न-भिन्न संप्रदायों में आस्था रखने वाले व्यक्ति अपनी-अपनी आस्था के अनुसार उपासना करते हैं। कोई मंदिर में जाकर पूजा करते हैं। कोई मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ते हैं। कोई चर्च में प्रार्थना करते हैं। कोई गुरुद्वारा में ग्रंथ साहब का पाठ करते हैं। उपासना के और भी अनेक रूप हैं। अणुव्रत का किसी भी उपासना विधि में कोई हस्तक्षेत्र नहीं है। उसे इस बात से भी कोई सरोकार नहीं है कि व्यक्ति किस धर्म को मानता है और किस व्यक्ति को अपना गुरु या मार्गदर्शक मानता है। वह इतनी ही अपेक्षा रखता है कि उस व्यक्ति का जीवन प्रामाणिक हो, पवित्र हो और समस्या पैदा करने वाला न हो।
अणुव्रत की अपनी आचार-संहिता है। उसका पालन करने वाला व्यक्ति अणुव्रती कहलाता है।
अणुव्रत हृदय-परिवर्तन का सिद्धांत है। दूसरे शब्दों में यह अपने पर अपना अनुशासन है। इसे धर्म के रूप में व्याख्यायित किया जाए तो वह वर्ण, जाति और संप्रदाय के कटघरे से मुक्त धर्म है। छोटे-छोटे संकल्प और जीवन-परिवर्तन का छोटा-सा उद्देश्य। इसके मूलभूत संकल्प ग्यारह हैं। इसके साथ प्रत्येक वर्ग से संबंधित कुछ नियम और है। वे नियम विद्यार्थी, अध्यापक, व्यापारी, राज्यकर्मचारी, डॉक्टर आदि सभी व्यक्तियों के लिए है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि अणुव्रत मानव धर्म है। मानवीय मूल्यों का संरक्षक और परिवर्धक है। इसके द्वारा मनुष्य के जीवन में चरित्र और अनुशासन का विकास हो सकता है। मुख्य रूप से यह जीवन-निर्माण का उपक्रम है। प्रासंगिक रूप से सामाजिक और राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान है।
(क्रमशः)