सामूहिक एकाशन तप का आयोजन
पुर
तेरापंथ भवन में तेरापंथ महिला मंडल द्वारा आयोजित ‘सामूहिक एकाशन तप’ के अवसर पर तपस्वी मुनि प्रतीककुमारजी ने कहा- ‘जैन धर्म में तप का विशेष महत्व है। तप का असली अर्थ है- त्याग। कई लोग अपनी मांगें मनवाने के लिए अनशन या भूख हड़ताल करते हैं, वे सभी सांसारिक आकांक्षाओं को लेकर कार्य करते हैं। उनका उद्देश्य कर्म-निर्जरा का नहीं होता है, लेकिन जैन धर्म में सांसारिक आंकाक्षाओं रहित कर्म निर्जरा के लिए तपस्या की जाती है। बिना किसी लाभ-हानि की कामना के लिए, केवल अपने उत्थान के लिए तपस्या करते हैं। तपस्या शरीर बल से नहीं आत्म बल से की जाती है। तपस्या में स्वयं से लड़ना पड़ता है। तपस्या हमारे मन को पवित्र बनाती है। तप मानव का असली आभूषण है।’ उन्होंने कहा कि परीक्षा सच्चे व्यक्ति की होती है। परीक्षा भगवान महावीर की भी हुई पर उन्होंने समता और धैर्य से काम लिया। तपस्या में भी कुछ तकलीफ आ सकती है पर जिसका आत्म बल मजबूत होता है वही तपस्या करता है। तपस्या अकेले भी की जा सकती और सामूहिक भी की जा सकती है। अनेक प्रकार के सामूहिक तप करवाए जाते हैं, जिसमे एक है- ‘एकाशन’।
मुनिश्री ने सामूहिक एकाशन प्रारंभ कराने से पूर्व मंत्र अनुष्ठान करवाया, फिर सभी एकाशन करने वाले तपस्वियों को सामूहिक प्रत्याख्यान करवाया। पुर समाज के इतिहास में पहली बार ‘आठ वर्ष से लेकर अठ्यासी वर्ष’ तक के 175 व्यक्तियों ने ‘सामूहिक एकाशन तप’ किया।
मुनि पदमकुमारजी एवं मुनि मोक्षकुमारजी के निर्देशन में सभी ने इस सामूहिक एकाशन तप में प्रसन्न भाव से लाभ लिया एवं तेरापंथ युवक परिषद् की संपूर्ण टीम ने मुनिद्वय की विशेष प्रेरणा से इस आयोजन को सफल बनाने में पूर्ण श्रम किया। तेरापंथ महिला मंडल की ओर से सामूहिक एकाशन तप के निर्जरार्थियों के प्रति तथा सभी एकाशन तपस्वियों के प्रति मंगलकामना व आभार ज्ञापित किया गया।