सम्यक दर्शन कार्यशाला का आयोजन

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सम्यक दर्शन कार्यशाला का आयोजन

चेन्नई
साध्वी लावण्यश्रीजी के सान्निध्य में सम्यक दर्शन कार्यशाला का शुभारंभ अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद़ के निर्देशन में तेयुप चेन्नई के तत्वावधान में हुआ। साध्वीश्रीजी ने सम्यक दर्शन का महत्व समझाते हुए कहा कि जैन धर्म आत्मवादी धर्म है। भगवान पार्श्व के शिष्य कुमारश्रमण केशी 700 मील का विहार कर के नास्तिक राजा प्रदेशी को आस्तिक बनाने के लिए पधारे। प्रस्तुत आगम कथानक में मुख्य पात्र है- कुमारश्रमण केशी, राजा प्रदेशी, रानी सूर्यकान्ता और मंत्री। शरीर और आत्मा का भेद बताने के लिए विशेष रूप से इस कार्यशाला का आयोजन किया गया है। देव, गुरु, धर्म का महत्व समझाते हुए साध्वी श्री ने फरमाया कि अरहंत मेरे देव, यावज्जीवन शुद्ध साधुपन पालने वाले मेरे गुरु हैं। जिन भगवान ने जो धर्म का प्रतिपादन किया है, मैं ऐसे सम्यक्त्व को स्वीकार करता हूं।
साध्वी दर्शितप्रभाजी ने कहा- ‘हम आत्मा को मानते हैं, किन्तु शरीर की सारसंभाल ज्यादा करते हैं। हमारे शरीर को कोई आंच न आए, शरीर से सुन्दर दिखे। शरीर की सारसंभाल करें किन्तु हमारा जैन दर्शन इस बात को स्वीकार करता है कि हम अपनी आत्मा का ख्याल रखंे, उसे भारी न बनने दें।’ 15 दिन तक चलने वाली इस कार्यशाला में अनेकों श्रावक-श्राविकाओं ने भाग लिया।