एकव्रती-श्रमणोपासक होना, विशेष व्यक्ति की पहचान: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

एकव्रती-श्रमणोपासक होना, विशेष व्यक्ति की पहचान: आचार्यश्री महाश्रमण

13 अगस्त 2023 नन्दनवन-मुम्बई
तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में शिष्य गौतम ने भगवान महावीर से पूछा- भन्ते! एक श्रमणोपासक है, उसका नाम है- ऋषिभद्र पुत्र। वह कभी मुंड होकर, गृहस्थ को छोड़कर अणगार बनेगा क्या?
आगमों के आधार पर कहा जा सकता है कि गौतम स्वामी आदर्श प्रश्नकर्ता थे। वे बार-बार भगवान से प्रश्न कर लिया करते थे। वे भगवान के अन्तेवासी निकट के शिष्य थे। भगवान महावीर ने उट्ठार देते हुए फरमाया कि ऋषिभद्र पुत्र के बारे में यह संभव नहीं है, वह मेरे पास दीक्षा तो नहीं लेगा पर वह श्रावक बनेगा। शीलव्रत गुण विरमण प्रत्याख्यान, पौषधोपवास और तपःकर्म द्वारा आत्मा को भावित करता हुआ वह बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक पर्याय का पालन करेगा।
गृृहस्थ तो संसार में बहुत है, पर एकव्रती-श्रमणोपासक होना, वह मानो विशेष व्यक्ति की पहचान होती है। बाद में वह श्रमणोपासक एक महीने की संलेखना से अपने शरीर को कृश बनाकर अनशन के साथ आलोचना-प्रतिक्रमण कर समाधिपूर्ण काल में कालधर्म को प्राप्त कर सौधर्म कल्प में उत्पन्न होगा। प्रथम देवलोक अरुणाभ विमान में उत्पन्न होकर चार पल्योपम की आयु वाला देव बनेगा। बाद में वह देवलोक का आयुष्य पूर्ण कर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न हो सिद्ध हो जायेगा।
इस प्रसंग से हम यह जान सकते हैं कि श्रावकपन सामान्य जीवन नहीं है। श्रमणोपासक साधुओं के आस-पास रहने वाला, साधुओं का सत्संग करने वाला होता है। कुछ देर का सत्संग भी कल्याण में सहायक बन सकता है। संगति का भी जीवन पर प्रभाव पड़ सकता है। अच्छे लोगों के पास रहने पर अच्छी बातें ग्रहण की जा सकती है। सत्संगत के दो साधन हैं- कान और आंख। अच्छी वाणी सुनना और अच्छी बात को देखना। अच्छी बात बोलने से अच्छी बात दूसरों को सुनने को मिल सकती है।
प्रवचन में तीन बातों का समन्वय होता है- अच्छा सुनना, अच्छा देखना और अच्छा बोलना। तीर्थंकरों की देशना से कितने लोगों का कल्याण होता है। इसी कारण गौतम स्वामी जानते हुए भी भगवान से प्रश्न पूछ लेते थे ताकि औरों को भी जानकारी मिले। भगवान द्वारा दिया गया उत्तर प्रामाणिक होता है। आज आगमों से कितना ज्ञान हजारों वर्ष बाद भी हमें प्राप्त हो रहा है।
उतरवर्ती आचार्य का कार्य होता है कि उसका पूर्ववर्ती आचार्य के प्रति सम्मान विनय का भाव हो। वह उनके गुणों को औरों को भी बताये। पूर्ववर्ती आचार्यों ने जो शिक्षाएं फरमायी थी, उनको औरों को भी बताये। प्रश्नोत्तर से अनेक जानकारियां हमें प्राप्त हो जाती है। आगमों से पाठक को काफी जानकारी मिल सकती है।
पूज्य गुरुदेव तुलसी के मुख्य संपादकत्व में 32 आगम मूल पाठ तो आ गये थे। अब हिन्दी और संस्कृत भाषा में संपादन का कार्य चल रहा है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी जैसे सहयोगी मिले। अनेक चारित्रात्माओं का भी सहयोग मिला होगा। श्रावक समाज व संस्थाओं का भी सहयोग रहा था।
पूज्यवर ने प्रेमलता पोखरणा, जगदीश मादरेचा एवं रेखा खांटेड़ तथा अन्य तपस्वियों को तपस्या के प्रत्याख्यान करवाये।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समागत प्रतिनिधियो को उद्बोधन प्रदान करवाया।
महासभा अध्यक्ष मनसुखलाल सेठिया, मुख्य न्यासी सुरेशचंद गोयल एवं महामंत्री विनोद बैद के वक्तव्य हुए।
कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।