अपने शरीर के माध्यम से करें आत्मा का उद्धार: आचार्यश्री महाश्रमण
शरीर के माध्यम से इस संसार को तरा जा सकता है, कारण शरीर नौका है, आत्मा नाविक है।
29 अगस्त, 2023 नन्दनवन-मुम्बई
महामनीषी युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगलदेशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में शरीर के सन्दर्भ में प्रश्न किया गया है। आत्मा और शरीर का गहरा संबंध है। शरीर विहीन आत्मा को हम देख नहीं सकते। आत्मा युक्त स्थूल शरीर को देखा जा सकता है। भगवती सूत्र में अनेक प्रश्न किए गए हैं। शरीर के संदर्भ में भी अनेक प्रश्न किये गये हैं। शरीर के संदर्भ में प्रश्न किया गया कि काय आत्मा है अथवा आत्मा से भिन्न है। उत्तर दिया गया- काय आत्मा भी है और आत्मा से भिन्न भी है। शरीर में आत्मा है तभी उसमें हलन-चलन होता है। किसी का प्रयाण हो गया है। शरीर पड़ा है तो शरीर आत्मा से भिन्न भी हो गया। यह भेदाभेद की बात है। आत्मा शरीर से सर्वथा भिन्न भी नहीं है और सर्वथा नहीं अभिन्न है। जैसे दूध और पानी, लोहा और अग्नि या सोना और मिट्टी।
कायरूपी भी है, अरुपी भी है। शरीर दिख रहा है। कार्मण शरीर आंखों से दिखाई नहीं देता है। इस संदर्भ में शरीर अरूपी है। काय सचित भी है और अचित भी है। जीवित आदमी है तो काय सचित्त है। मृत्यु होने पर काय अचित्त है। काय जीव भी है, काय अजीव भी है। शरीर में आत्मा है तो काय जीव है। आत्मा मुक्त शरीर है तो काय अजीव है। काय जीवों के भी होता है और अजीवों के भी होता है, जैसे मूर्ति। शरीर के पांच प्रकार बताये गये हैं। भगवती सूत्र में यहां शरीर के सात प्रकार बताये गये हैं- औदारिक, औदारिक मिश्र, वैक्रिय, वैकियमिश्र, आहारक, आहारक- मिश्र और कार्मण काय। कुछ शरीर आत्मा के साथ जाने वाले होते हैं और यहां रहने वाले भी होते हैं। हम चिन्तन करें कि साथ में क्या जायेगा? सांसारिक अवस्था में तेजस और कार्मण शरीर आत्मा के साथ जाता है। कर्म और धर्म साथ में जायेगा।
साधु का साधुपन साथ में नहीं जाता पर जो संवर-निर्जरा की साधना की है, वो साथ में जायेगी। उज्ज्वलता साथ में जायेगी। शरीर और आत्मा का संबन्ध भी है तो भिन्नता भी है। अभिन्नता भी है। इस शरीर से आत्मा का कल्याण हो, हम ऐसा प्रयास करें। मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ें। शरीर के माध्यम से इस संसार को तरा जा सकता है, कारण शरीर नौका है, आत्मा नाविक है। इससे महर्षि तर जाते हैं।
इस शरीर से त्याग-तपस्या और धर्म करें। सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चारित्र की आराधना करें। एक श्रमणोपासक भी तीसरे भव में मोक्ष जा सकता है। हमें धर्म और अध्यात्म का मार्ग मिला है। हम इस शरीर से आत्मा का उद्धार करने का प्रयास करें, ऐसा हमारे लिए श्रेयस्कर हो सकता है। पूज्यवर ने कालूयशोविलास का वाचन करते हुए मुनि तुलसी को युवाचार्य बनने के बाद साध्वियों द्वारा वन्दना के प्रसंग को समझाया। मुनिवृन्द को भी क्या सम्मान युवाचार्य का करना चाहिये? वह प्रसंग भी समझाया।
जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित साध्वी कमलप्रभाजी की जीवनी ‘संयम का खिलता कमल’ पूज्यवर के सम्मत लोकार्पित की गयी। पूज्यवर ने आशीर्वचन फरमाया। नेहा चपलोत ने 28 की तपस्या के प्रत्याख्यान पूज्यवर से ग्रहण किए। अणुविभा द्वारा आयोजित अणुव्रत गीत महासंगम की प्रतियोगिता के बैनर का अनावरण पूज्यवर के सान्निध्य में किया गया। पूज्यवर ने अणुव्रत गीत के एक पद्य का सुमधुर संगान करवाया। अनोपचन्द बोथरा ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।