विद्वता-गंभीरता से सम्पन्न थे जयाचार्य

विद्वता-गंभीरता से सम्पन्न थे जयाचार्य

तेरापंथ धर्मसंघ एक गुरु एक विधान के नाम से विख्यात है। इस धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमद् जयाचार्य हुए। जिन्होंने बाल्यावस्था में दीक्षा ग्रहण की। वे कुशाग्र बुद्धि संपन्न थे। दीक्षित होने के पश्चात् उन्हें मुनि हेमराजजी स्वामी सिरियारी वालों के साथ अनुगामी रूप में रखा गया। मुनि हेमराजजी स्वामी आगमज्ञ, तत्वज्ञ, समयज्ञ संत थे। जयाचार्य मुनि जीतमलजी के नाम से जाने जाते थे।
आचार्यश्री भारमलजी से प्रतिबोध पाकर घर के चारों सदस्य अर्थात् तीन भाई और मां मात्र डेढ़ महीने में दीक्षित हो गये। बड़े भाई स्वरूपचंदजी और भीमराजजी के नाम से जाने जाते थे। तीनों ही भाई आत्मार्थी, ज्ञानार्थी थे। तीनों का आचार-विचार गंगा जलवत निर्मल था। भीमराजजी बड़े तपस्वी थे। उनका नाम अभीराशिको नमः मंत्र के साथ शोभायमान हुआ।
स्वरूपचंदजी और जीतमलजी दोनों को हेमराजजी स्वामी का लंबे समय तक सान्निध्य प्राप्त हुआ। जीतमलजी ने अपनी क्षमता के अनुसार विनय-विवेक पूर्वक हेमराजजी स्वामी से गहरा ज्ञान अर्जित किया। मात्र 18 वर्ष की अवस्था में संत गुणमाला पन्नवणा जैसे आगम की जोड़ की। आपने अग्रगण्य बनकर भी अपना अध्ययन व्यवस्थित रखा और जहां भी आपका विहरण होता, वहां धर्मज्ञान का ठाठ लग जाता। आपकी संघनिष्ठा, आचारनिष्ठा, आज्ञानिष्ठा प्रसंशनीय ही नहीं, सबके लिए अनुकरणीय कही जा सकती है।
एक बार आपका चातुर्मास बीदासर निर्णित था, परंतु बीकानेर के प्रमुख श्रावक मदनचंद राखेचा ने गुरुदेव से बीकानेर चातुर्मास की अर्ज की। उस समय आचार्यश्री रायचंदजी स्वामी ने सोचा अगर बीकानेर चातुर्मास करवायें तो उपकार की संभावना ज्यादा है, परंतु तब तक सब चातुर्मास घोषित हो चुके थे। मदनचंदजी को रायचंदजी स्वामी ने फरमाया कि जीतमल बीदासर है, अगर वह बीकानेर जा सके तो चातुर्मास बीकानेर हो सकता है। मदनचंदजी ने बीदासर दर्शन कर ज्योंही रायचंदजी स्वामी का संवाद बताया, इस संवाद के साथ ही जीतमलजी ने बीकानेर की घोषणा कर दी।
बीदासर के श्रद्धालु श्रावकों को कुछ अटपटा लगा। उन्होंने जीतमलजी स्वामी को काफी निवेदन किया कि गर्मी काफी है आप कोई गली निकाल लो, ताकि यह चातुर्मास बीदासर हो जाए। जीतमलजी स्वामी ने आचार्य की दृष्टि को महत्व देते हुए कहा गली कोई गँवार निकाल सकता है, मुझे गुरु आज्ञा का पालन कर बीकानेर की तरफ विहार करना है। गर्मी में पानी का भयंकर परिषह रहा, परंतु बीकानेर जाकर ही चातुर्मास किया।
उस समय आप चार संत थे। बीकानेर में एक स्थानकवासी संत आपके पास दीक्षित हो गये, गुरु आज्ञा को महत्व देने से संघ और संत की वृद्धि हुई। जयाचार्य ने मुनि अवस्था में दिल्ली चातुर्मास किया, वहां भी कृष्णचंद महेश्वरी दीक्षित हुए। आपकी यात्राएं हर दृष्टि से प्रभावशाली होती। हरियाणा और थली में आपका काफी श्रम लगा। आपकी प्रवचन कला सरल और सरस होने से आगंतुक आपके बनते गये और जगह-जगह तेरापंथ का मानो बीजारोपण होता गया।
आज उनके बोये गए बीजों ने जगह-जगह वट वृक्ष का रूप धारण किया है, ऐसा प्रतीत होता है। रायचंदजी स्वामी ने आपकी अनेक विशेषताओं को देखकर अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। जिस समय आपको उत्तराधिकारी बनाया, किसी को पता नहीं चला। उत्तराधिकारी पत्र लिखकर खाम में बंद कर दिया। उस समय जीतमलजी का चातुर्मास पाली था और रायचंदजी स्वामी का नाथद्वारा था। चातुर्मास के बाद जब आपने दर्शन किये और नाथद्वारा में युवाचार्य पद की घोषणा हो गई। जीतमलजी स्वामी का लेखन स्वाध्याय ध्यान का क्रम काफी व्यवस्थित था। वे लंबे-लंबे विहारों में भी इन्हें गौण नहीं करते। उत्तराध्ययन सूत्र का खड़े-खड़े स्वाध्याय करते थे।
आप बीदासर में प्रवासित थे और रायचंदजी स्वामी मेवाड़ में रावलिया प्रवास कर रहे थे। अंत समय में आपको रायचंदजी स्वामी की सेवा का योग नहीं मिल सका और रायचंदजी स्वामी का रावलिया (मेवाड़) में स्वर्गवास हो गया। आप बीदासर में आचार्य पद पर आसीन हुए। आपकी विद्वता, गंभीरता, स्वच्छता, साधना सबको आकृष्ट करने वाली थी। आचार्य बनने के बाद भी आपने काफी यात्राएं कर धर्मसंघ की प्रभावना की।
आपका अंतिम प्रवास जयपुर में हुआ और जयपुर में ही तिथि भाद्रव बदी द्वादशी को स्वर्गवास हो गया। आपने लगभग साढ़े तीन लाख पद्य प्रमाण साहित्य लिखकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया। भगवती जैसे आगम की जोड़ करना मानो भुजाओं से समुद्र तैरना जैसा कहा जा सकता है।
आपकी अमूल्य कृतियां हजारों लोगों को आज भी कंठस्थ हैं। चौबीसी आराधना का काफी लोग नियमित स्वाध्याय करते मिलते हैं। हम अपना परम सौभाग्य मानते हैं कि भिक्षु स्वामी की इस मनमोहक बगिया को सुंदर और सुरक्षित रखने के लिए समय-समय पर युगानुकूल आचार्यों का आगमन होता है, जिससे इस धर्मसंघ की ख्याति द्वितीया के चंद्रमा के समान निरंतर वर्धमानता को प्राप्त करती है।