दूषित विचारों से मुक्ति का पर्व है पर्युषण पर्व

दूषित विचारों से मुक्ति का पर्व है पर्युषण पर्व

भारतीय संस्कृति में पर्वों एवं त्यौंहारों की समृद्ध परम्परा रही है। इसी परंपरा में जैन धर्म का महापर्व पर्युषण आता है, जो जैन धर्म के अनुयाइयों के अद्भुत आत्मशुद्धि व उत्थान का पर्व है। यह पर्व पूर्ण आत्मशुद्धि के लिए मनाया जाता है। हर व्यक्ति अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार इस समय में व्रत, तप, जप, संयम व साधना द्वारा पूर्ण करता है। जैन धर्म हमेशा सादगीपूर्ण व अहिंसावादी जीवन जीने के लिये प्रेरित करता है। आध्यात्मिक पर्व आत्मकेन्द्रित होते हैं, इसलिए आत्मसुख की सामग्री जुटाते हैं। कुछ पर्व तात्कालिक होते हैं, वे किसी पात्र या घटना के साथ जुड़े होते हैं। शाश्वत धार्मिक पर्व प्रतिवर्ष मानव-मन को नया दिशा-बोध देकर चले जाते हैं। फिर संभाल के लिये लोट आते हैं।
पर्युषण का शाब्दिक अर्थ है- परि चारों ओर से सिमटकर, वसन एक स्थान पर निवास करना था या स्वयं में वास करना। इस शब्द के मुख्य तीन रूप मिलते है- अपने अंतर में रहे कषायों का उपशमन करना। राग-द्वेष रूपी गांठ की शल्य-चिकित्सा करना, यह पर्व भव-भ्रमण के रोग को मिटाने वाला है। टूटे दिलों को जोड़ने वाला है।
एक घटना है- भाई-भाई के प्रेम को देखकर भातृ प्रेम के प्रति गहरी भक्ति उत्पन्न होती है। आज के युग में ऐसा प्रेम देखने को मिल सकता है। कई बार भाई-भाई में विवाद की स्थिति हो सकती है, पर यह मन मुटाव स्थाई नहीं होता। आपसी संबंध मधुर होने में ज्यादा समय नहीं लगता। एक तरफ से राग-द्वेष कम होने से एक-दूसरे का हृदय भी निश्चित ही बदल जाता है।
पंजाब का एक छोटा-सा गांव। एक परिवार में दो भाई बड़े प्रेम से रहते थे। एक बार 144 वर्ग फीट के छोटे से आंगन के लिए दोनों भाईयों में विवाद छिड़ गया। कलह इतना हो गया कि केस कोर्ट तक पहुंच गया। दोनों भाईयों में बातचीत बंद हो गई। यहां तक एक-दूसरे के सुख-दुःख में भी आना-जाना बंद हो गया। दीर्घकाल तक केस चलता रहता है। एक दिन दोनों भाई अपनी-अपनी बैल-गाड़ी में न्यायालय पहुंचते हैं फिर से सुनवाई की एक और तारीख तय होती है।
उस दिन दोनों भाई वापिस बैल गाड़ियां लेकर कोर्ट के लिये चल पड़े। बड़ा भाई आगे, छोटा भाई पीछे। अचानक बड़े भाई के धोती की लांग खुलकर बैल गाड़ी के चक्के में फंस गई। छोटा भाई यह सब देख रहा था। जब व्यक्ति में राग-द्वेष की गांठ खुलती है तब ज्ञात होता है। छोटा भाई समझ जाता है कि अगर धोती चक्कर में फंस गई तो भाई गिर जायेगा और गहरी चोट आ सकती है। वह पीछे से आवाज देता है- भाई! भाई, थोड़ा रूकिए। बहुत समय के अंतराल के बाद छोटे भाई के मुंह से भाई शब्द सुनकर बड़ा भाई चौंक जाता है और पूछता है क्या हुआ? छोटा भाई कहता है- आप की धोती की लांग खुलकर गाड़ी के चक्के में फंस गई है, उसे संभालिए वरना आप गिर जायेंगे। बड़ा भाई नीचे उतर कर धोती को ठीक करता है। छोटे भाई के पास आकर कहता है- जो मुझे गिरते हुए नहीं देख सकता उसके विरोध में कैसा केस कैसी सनुवाई?
बड़ा भाई कोर्ट जाकर वह 144 वर्गफीट के आंगन के साथ-साथ अपना सब कुछ छोटे भाई के नाम लिख देता है। छोटा भाई यह देखकर रोते-रोते बड़े भाई के चरणों में गिर जाता है। दीर्घकाल का वह केस कुछ मिनटों में खत्म हो जाता है, क्योंकि जब तक राग-द्वेष होेते हैं तब तक ये दूषित विचार पनपते रहतेे हैं।
यह राग-द्वेष व कटु विचारों से मुक्त होने का पर्व है। पर्युषण पर्व की आराधना भाद्रव महीने में होती है और पूर्ण वैज्ञानिक दृष्टि से भी व्यक्ति का शुद्धि प्रदान करता है। जो बच्चे माता-पिता से चॉकलेट आईस्क्रीम और होटल के लिये आग्रह करते हैं, वे बच्चों भी इस पर्व पर खाने में द्रव्यों की सीमा, रात्रि भोजन का परित्याग, जमीकन्द नहीं खाने का संकल्प लेने को तत्पर हो जाते हैं। दूषित मन को शुद्ध कर धर्म, ध्यान, ज्ञान, भय बना कर सकारात्मक ऊर्जा का विकास करते हैं।
जिंदगी की भाग दौड़ में न्याय अन्याय का सामना कर व्यक्ति अपने मूल आचरण को भूल जाता है। इस पर्युषण पर्व के दौरान वह पुनः अपने मूल संस्कारों का जान पाता है। आत्म विश्लेषण व शोधन करता है। मंत्र-जाप व तप से मस्तिष्क के रसायनों की शुद्धि होती है। रात्रि भोजन निषेध का प्रयोजन भी वैज्ञानिक है। देर रात तक भोजन करने से हमारा पांचन तंत्र कमजोर हो जाता है। अनेक बीमारियों का शिकार हो जाता है। अतः इस पर्व में मानव मानसिक रूप से मजबूत होकर नीतिपूर्वक जीवन जीने के लिए प्रेरित हो जाता है। दूषित विचारों से मुक्ति मिलती है।