मजबूत मनोबल का होना है जीवन की एक उपलब्धि: आचार्यश्री महाश्रमण
28 अगस्त, 2023 नन्दनवन-मुम्बई
निष्काम योगी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र की विवेचना कराते हुए फरमाया कि प्रवृृत्ति के तीन साधनों में एक भाषा है। दूसरा साधन है- मन। प्रश्न किया गया कि मन आत्मा है या मन आत्मा से अन्य है? उत्तर दिया गया कि गौतम! मन आत्मा नहीं है, मन आत्मा से अन्य है। मन रूपी होता है, अरूपी नहीं होता। मनसचित् नहीं होता- अचित है। मन जीव नहीं है, मन अजीव है। मन जीवों के होता है। अजीवों के मन नहीं होता। मन पौद्गलिक होता है।
मन के चार प्रकार बताये गये हैं- सत्य, मृषा, सत्य-मृषा और असत्यामृषा मन। मनुष्य भी दो प्रकार के होते हैं- संज्ञी और असंज्ञी। असंज्ञी मनुष्यों के मन नहीं होता और वे बहुत सूक्ष्म होते हैं, दिखाई नहीं देते। ये संज्ञी मनुष्य के मल, मूत्र इत्यादि में उत्पन्न होते हैं। उनके भी पांच इंद्रियां होती हैं पर मन नहीं होता। आयुष्य भी थोड़ा होता है।
संज्ञी मनुष्यों में मन और भाषा होती है। हम मन का बढ़िया उपयोग कर, सुमन बन सकते हैं। बुरे विचारों से मन दुर्मन बन जाता है। मन में चंचलता होती है। मन विचारों में उलझ जाता है तो दुःखी या सुखी बन जाता है। प्रसन्नता या विशाद की अनुभूति हो सकती है। काय बल का महत्व है तो मनोबल का भी महत्व होता है।
मनोबल अच्छा होना जीवन की एक उपलब्धि है। असफलता से भी हम सबक सीखें तो जीवन में आगे बढ़ सकते हैं। मन हमारे साथ जुड़ा हुआ है। मन हमारा मालिक न बन जाये, कर्मचारी बना रहे। मन की हर बात मानने से पहले सोचें। हम मन के गुलाम न बनें। मन की चंचलता से डरना नहीं चाहिये। मन की स्थिरता के लिए तन को स्थिर कर लेवें।
पूज्यवर ने कालूयशोविलास का सुमधुर विवेचन कराते हुए पूज्य कालूगणी द्वारा मुनि तुलसी को युवाचार्य पद पर स्थापित करने के प्रसंग को समझाया।
पूज्यवर ने धैर्य प्रदीप छाजेड़ ने (8), कविता राजेश सियाल ने (31) की तपस्या, दीपिका सिंघवी ने (9) की तपस्या को प्रत्याख्यान करवाया। अन्य तपस्याओं के भी प्रत्याख्यान करवाये।
सतीश जैन, पवन जैन ने अपनी माताजी के संथारे के बारे में बताया। पूज्यवर ने आशीर्वचन फरमाया।
कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनिश्री दिनेश कुमारजी ने करते हुए सम्यक्त्व के महत्व को समझाया।