बाह्य तप के साथ आंतरिक तप की आराधना भी महत्त्वपूर्ण

संस्थाएं

बाह्य तप के साथ आंतरिक तप की आराधना भी महत्त्वपूर्ण

सिकन्दराबाद
साध्वी डॉ. मंगलप्रज्ञाजी की प्रेरणा से तप की पावनधारा सतत प्रवाहित है। इस क्रम में श्रीडूंगरगढ़ निवासी धनराज पुगलिया का तप अभिनन्दन कार्यक्रम आयोजित हुआ। साध्वीश्रीजी ने अपने प्रेरक उद्‌बोधन में कहा-' जैन आगम साहित्य में तप का विशद वर्णन मिलता है। तपस्या के द्वारा आठ प्रकार की कर्म ग्रन्थियों को तोड़ा जा सकता है। जैन परम्परा में बाह्य तप के साथ आंतरिक तप की आराधना भी महत्वपूर्ण होती है। तप के साथ ध्यान, जप, स्वाध्याय आदि आध्यात्मिक उपक्रम तप की तेजस्विता बढ़ाते हैं। तपसाधना के साथ कषाय का अल्पीकरण होना चाहिए।
तेरापंथी सभा के अध्यक्ष बाबुलाल बैद ने शुभकामनाएं देते हुए अभिनन्दन पत्र समर्पित किया। तेरापंथी सभा के मंत्री सुशील संचेती ने साध्वी प्रमुखाश्रीजी द्वारा प्रदत्त संदेश का वाचन कर तपस्वी भाई को समर्पित किया। तेरापंथ महिला मंडल की अध्यक्षा कविता आच्छा, टीपीएफ अध्यक्ष पंकज संचेती, तेरापंथ युवक परिषद् अध्यक्ष निर्मल दूगड़ ने तपअभिनन्दन स्वर प्रस्तुत किए। बोयनपल्ली परिवार एवं पारिवारिकजनों ने सुमधुर तप-अभिनन्दन संगान कर वातावरण की सुरम्य बना दिया। तप साधक के पुत्र रोशन पुगलिया और पौत्र-पौत्रियों ने अपने दादा को शुभकामनाएं दी।
मासखमण तपस्वी धनराज पुगलिया ने कहा- 'मुझे प्रेरणा देने वाले और भावना बढ़ाने वाले साध्वी मंगलप्रज्ञाजी के प्रति मैं सदैव कृतज्ञ रहूंगा। साध्वीवृन्द ने तप अनुमोदन गीत प्रस्तुत किया। वीणा नाहटा, प्रेम संचेती, गीतिका नाहटा एवं अंजु गोलछा ने तप के माहात्म्य को दर्शाने वाली आकर्षक लघु नाटिका प्रस्तुत कर सभा को रोमांचित किया। तेरापंथी सभा, तेरापंथ महिला मंडल, तेरापंथ युवक परिषद एवं टीपीएफ द्वारा तपस्वी का सम्मान किया गया। मासखमण के उपलक्ष में अनेक भाई-बहिनों ने अठाई, पांच एवं तेले करने का संकल्प स्वीकार किया| कार्यक्रम का संचालन साध्वी सुदर्शनप्रभाजी ने किया|