स्वाध्याय से चलता रहे ज्ञान वृद्धि का क्रम : आचार्यश्री महाश्रमण
18 सितम्बर 2023 नन्दनवन, मुम्बई
पर्वाधिराज पर्युषण के सातवें दिन ध्यान दिवस पर ध्यान योगी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा के अंतर्गत फरमाया कि जैन जगत एवं अध्यात्म जगत में तीर्थंकर का स्थान सर्वोच्च होता है। भौतिक दुनिया में सबसे बड़ा पद चक्रवर्ती का होता है। उनके बाद वासुदेव का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है।
वीर प्रभु की आत्मा वासुदेव के रूप में त्रिपृष्ठ नाम वाले व्यक्तित्व के रूप में अभी मनुष्य का जीवन जी रही है। एक बार वासुदेव त्रिपृष्ठ रात्रि में संगीत सुन रहे होते हैं। वे अपने सेवक को उनके सो जाने के पश्चात् उन्हें नींद आने पर संगीत को बंद करने का आदेश देते हैं, किन्तु सेवक द्वारा ऐसा नहीं किए जाने पर आक्रोशित त्रिपृष्ठ ने अपने सेवक के कानों में गर्म शीशा डलवा दिया और वह सेवक तड़पकर मृत्यु को प्राप्त हो गया। उस समय पोतनपुर में तीर्थंकर श्रेयांसनाथ पधारते हैं। उनका प्रवचन होता है। एक दिन त्रिपृष्ठ और अचल ने भगवान की देशना सुनी। प्रवचन के प्रवाह में श्रोता बह जाता है। वह प्रवचन भीतर को छू जाता है, जिससे प्रेरणा प्राप्त हो जाये तो जीवन में उत्थान हो जाये। देशना सुनने से त्रिपृष्ठ को सम्यक्त्व प्राप्त हुआ। कुछ समय बाद वह सम्यक्त्व चला भी गया।
अनेक हिंसक कार्य करते हुए त्रिपृष्ठ अपना आयुष्य पूर्ण कर सातवें नरक में पैदा हुए। कर्म किये हैं तो उनका फल तो भोगना ही होता है। तीर्थंकरों को भी कर्म का फल भोगना पड़ता है। क्रूर कर्म से प्रभु की आत्मा सातवें नरक में उत्पन्न हुई। प्रभु की आत्मा उसके बाद तिर्थन्च गति में उत्पन्न होती है। वहां से आयुष्य पूर्ण कर बीसवें भव में सिंह के रूप में पैदा हुई। उसके बाद प्रभु की आत्मा चौथे नरक में पहुंच गई। 22वें भव में नयसार की आत्मा मनुष्य रूप में जन्म लेकर राजकुमार विमल के रूप में राजा प्रियमित्र के यहां उत्पन्न होती है। विमल कुमार बड़े नीति-निपुण और करूणाशील होते हैं। उन्होंने एक बार शिकारी को धर्म की बात समझाते हुए हिरणों को मारने से बचा दिया और शिकारी को भी हत्या के पाप से बचा लिया। धर्म की प्रेरणा देना, किसी को हत्या का त्याग करा देना कितना कल्याणकारी होता है।
23वें भव में भगवान की आत्मा पश्चिमी महाविदेह में मुकानगरी में चक्रवर्ती के रूप में राजा धनंजय के घर प्रिय मित्र के रूप में जन्म लेती है। इस भव में प्रभु की आत्मा चक्रवर्ती का सम्मान प्राप्त कर 24वें भव में सातवें देवलोक में उत्पन्न होती है। वहां से आयुष्य पूर्ण कर फिर वह आत्मा 25वें भव में राजकुमार नंदन के रूप में राजा जीतशत्रु के यहां जन्म लेती है। नंदन राज्य सत्ता भोगकर संयम ग्रहण करते हैं। लंबी तपस्याएं करते हुए एक लाख वर्ष के संयम पर्याय में निरंतर 11 लाख 60 हजार लगभग मासखमण कर तीर्थंकर नाम गौत्र का उपार्जन कर लेते हैं।राजर्षि नंदन ने दो मास का अनशन कर दसवें देवलोक में देवगति का आयुष्य बंध किया और वहां से वह आत्मा 26वें भव में प्राणत देवलोक में उत्पन्न हो जाती है। वहां बीस सागरोपम का आयुष्य पूर्णता के निकट है।
परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी के युवाचार्य मनोनयन दिवस के संदर्भ में पूज्यवर ने फरमाया कि आज भाद्रव शुक्ला तृतीया है। परम पूज्य कालूगणी ने आज ही के दिन मुनि तुलसी को युवाचार्य पद प्रदान किया था। दायित्व की चद्दर ओढ़ाई गई थी। आचार्य के लिए युवाचार्य मनोयन दिवस महत्वपूर्ण होता है। मैं आचार्यश्री तुलसी का श्रद्धा के साथ स्मरण करता हूं।
ध्यान दिवस पर पाथेय प्रदान कराते हुए ध्यान योगी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने फरमाया कि साधु संयम जीवन में स्वाध्याय करे, सेवा करे और तपस्या करे। महाप्रज्ञ श्रुताराधना तत्व ज्ञान का बढ़िया पाठ्यक्रम है और भी पाठ्यक्रम चलते हैं। स्वाध्याय से ज्ञान वृद्धि का क्रम चलता रहे। बाल मुनि-साध्वियां धर्मसंघ की पौध है, खूब विकास करे। अपना समय स्वाध्याय, अध्ययन में लगाने का प्रयास करे। इसके साथ-साथ अच्छे संस्कारों का विकास हो। सेवा में भी संकोच न हो। तपस्या करके भी आत्म-कल्याण किया जा सकता है। ध्यान करना भी अच्छा है।
पूज्यवर ने संवत्सरी महापर्व के संदर्भ में प्रेरणा प्रदान कराते हुए फरमाया कि इस पर्युषण पर्व का उच्चतम दिवस संवत्सरी महापर्व आ रहा है। इस दिन साधु- साध्वियां, समणियां तो उपवास करती ही हैं। गृहस्थ भी यथासंभव उपवास करने का प्रयास करें। बच्चों को भी उपवास कराने या जितनी देर संभव हो, उतना त्याग कराने का प्रयास करना चाहिए।
साध्वी प्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी, मुख्य मुनिश्री महावीरकुमारजी, साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने ध्यान दिवस पर वक्तव्य व गीत के माध्यम से प्रेरणा प्रदान करवायी। साध्वी संगीतप्रभाजी आदि साध्वीवृंद ने ध्यान दिवस के संदर्भ में गीत का संगान किया। पूज्यवर ने वनिता बाफना कोे 80 दिन की तपस्या का प्रत्याख्यान एवं अन्य तपस्वियों को उनकी धारणा के अनुसार तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमारजी ने किया।