ज्ञानवृद्धिकारक अनुष्ठान का आयोजन

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ज्ञानवृद्धिकारक अनुष्ठान का आयोजन

सिकंदराबाद।
साध्वी डाॅ0 मंगलप्रज्ञा जी के सान्निध्य में तेयुप के तत्त्वावधान में ज्ञानवृद्धिकारक अनुष्ठान का आयोजन हुआ। इस अवसर पर साध्वीश्री जी ने कहा कि जब अन्तेवासी शिष्य गौतम ने प्रभु महावीर से जिज्ञासा कीµप्रभो! स्वाध्याय से जीव क्या प्राप्त करता है? महावीर ने जिज्ञासा को समाहित करते हुए कहा कि स्वाध्याय से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है। आगम साहित्य में स्वाध्याय के पाँच प्रकार बताए गए हैं। ज्ञान विकास, बुद्धि विकास और स्मृति विकास का संबंध ज्ञानावरणीय कर्म के साथ है। साध्वीश्री जी द्वारा विविध प्रभावशाली श्रुत मंत्रों के साथ अनुष्ठानकर्ताओं को साधना करवाई गई। साध्वीश्री जी ने कहा कि अध्ययन के लिए पूर्व या उत्तर दिशा अभिमुख बैठना चाहिए। ईशान दिशा भी अध्ययन के लिए उत्तम मानी जाती है। ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रबल संकल्प का विशेष महत्त्व होता है। संकल्प शक्ति के साथ एकाग्रता भी अत्यावश्यक है। महाप्राण ध्वनि की साधना से मस्तिष्क की कोशिकाएँ सक्रिय होती हैं, जिससे ज्ञान ग्रहण शीघ्रता से हो पाता है।
उपस्थित परिषद के प्रथम बार हुए अनुष्ठान के लिए साध्वीश्री जी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। तेयुप के अध्यक्ष एवं सभी सदस्यों ने एकनिष्ठ होकर इस अनुष्ठान को सफलता प्रदान करने में श्रम समय का नियोजन किया। किशोर मंडल का सराहनीय श्रम रहा। तेयुप के अध्यक्ष निर्मल दुगड़ ने संपूर्ण परिषद का स्वागत किया। साध्वी सुदर्शनप्रभा जी ने विचार व्यक्त किए। साध्वीवृंद ने गीत का सामुहिक संगान किया। साध्वी डाॅ0 चैतन्यप्रभा जी ने कार्यक्रम का संचालन किया। साध्वी डाॅ0 मंगलप्रज्ञा जी ने संपूर्ण श्रावक समाज को जप, तप, स्वाध्याय आदि के द्वारा पर्युषण पर्व मनाने की विशेष प्रेरणा दी।