बाह्य सौंदर्य की अपेक्षा आंतरिक सुंदरता का महत्त्व अधिक: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

बाह्य सौंदर्य की अपेक्षा आंतरिक सुंदरता का महत्त्व अधिक: आचार्यश्री महाश्रमण

अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के 57वें राष्ट्रीय अधिवेशन ‘नवोदय’ का भव्य आयोजन

नंदनवन, 29 अक्टूबर, 2023
चित्त समाधि प्रदाता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी के जीवन में सुंदरता के प्रति आकर्षण रह सकता है कि सौंदर्य रहे। सौंदर्य अनेक संदर्भों में हो सकता है। आदमी कई बार सुंदर रहने का भी प्रयास कर सकता है। दुनिया में अनेक आभूषणों का प्रयोग लोग करते हैं। आभूषणों के द्वारा दिखने में सुंदरता आ सकती है। साधु का आभूषण साधुपन होता है। बाह्य आभूषणों के प्रति आकर्षण हो सकता है, पर हम आंतरिक सौंदर्य पर ध्यान दें कि भीतर का सौंदर्य कैसे बढ़े। चेहरा कितना सुंदर है, इसका थोड़ा महत्त्व तो दुनिया में हो सकता है। चेहरा कैसा भी हो, है तो चमड़ी की चमड़ी। जवानी में जो सौंदर्य रहता है, वह वार्धक्य में नहीं रहता। हमारी चेतना सुंदर होनी चाहिए।
हाथ की सुंदरता है-दान दो। दूसरों का दुःख दूर करने का प्रयास हो। दान को हाथ की शोभा बताया गया है। मैं भी भूखा न रहूँ, साधु भी भूखा न जाए। संयमी शुद्ध साधु को दान देना, साधु की साधना में सहयोगी हो सकता है। वह तो आध्यात्मिक दान है। दुनिया में अनेक दान चलते हैं। ज्ञान दान, अभयदान भी बड़े दान हैं। सिर का आभूषण बताया गया अपने धर्म गुरु के चरणों में प्रणाम करना। सिर हमारा उत्तम अंग है, यह हर किसी के सामने नहीं झुकता है। स्वाभिमानी कहलाने वाला आदमी, राजा उसका मस्तक भी साधु के समान झुक जाता है। धर्म में जो रमण करने वाला व्यक्ति है, उसको मनुष्य तो क्या देवता भी उसके सामने प्रणत हो जाते हैं।
मूहँ का आभूषण है-सत्य वाणी। झूठ से विरत रहना बहुत बड़ी तपस्या है। इस बार मुंबई में तो तपस्या की झड़ी सी लग गई थी। सत्य बोलने वाले का सम्मान बढ़ता है। कानों की शोभा है-श्रुत-ज्ञान की बातों को सुनो। कुंडल तो छोटी शोभा है। गुरु की वाणी को शास्त्रों की वाणियों को ज्ञानवान-कल्याणी वाणियों को सुनना यह कान की शोभा है। हमारा जो श्रद्धेय, उनकी वाणी को सुनना वो कान की आंतरिक शोभा है। हृदय की शोभा है स्वच्छ विचार-स्वच्छ वृत्ति वो हृदय की आध्यात्मिक शोभा है। दिल में दया का भाव रहे। भुजाओं की शोभा है-हमारे में ताकत कितनी है। पौरुष हो जो किसी की सेवा कर सके।
गृहस्थों में बाह्य भौतिक आभूषण चलते हैं, पर गृहस्थ आभूषणों को अधिक महत्त्व न दें। हमारे संतों का शरीर सबल रहे ताकि सेवा कर सकें। साधु तो बिना बाह्य आभूषण के भी सुंदर लगता है। गुरुदेव तुलसी के बारे में तो कहा गया है-कानों की छटा---किसने सौंदर्य सजाया रे। महाप्राण गुरुदेव। गुरुदेव तुलसी की तो पुण्याई विशेष थी। उनके शरीर की भी सुंदरता थी। दीपता चेहरा था। उससे बड़ी चीज उनका आचार्यत्व-साधुत्व था। 
आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का ज्ञान बहुत निर्मल था। राष्ट्रपति अब्दुल कलामजी अनेक बार उनके पास आए थे। साधुता विशेष आकर्षण होता है। सद्गुण संपन्नता हमारे जीवन में अच्छी रहे। सद्गुणों से विभूषित हमारा जीवन रहे। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि आगमों में चार समाधि का उल्लेख आया है-श्रुत, स्वास्थ्य आदि। ज्ञान, तप, विनय और श्रुत के द्वारा हम समाधि को प्राप्त कर सकते हैं। समाधि वह अवस्था है, जिससे व्यक्ति को अपने स्वरूप का आभाष होता है। वह राग और द्वेष से ऊपर उठकर समता में प्रतिष्ठित हो जाता है। वह समाधि का अनुभव करता है।
अभातेयुप के 57वें राष्ट्रीय सम्मेलन ‘नवोदय’ का तीसरा दिन। सूरत परिषद को श्रेष्ठ परिषद के रूप में नवाजा गया। आचार्य महाप्रज्ञ प्रतिभा पुरस्कार यूएसए के अजय भूतोड़िया को प्रदान किया गया। प्रशस्ति पत्र का वाचन पंकज डागा ने किया। अजय भूतोड़िया ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि कर्मवाद के आलोक में हम जीवन की व्याख्या कर सकते हैं। प्रतिभा संपन्नता में ज्ञानावरणीय कर्म का विलय होता है। कर्मवाद को समझने के बाद आदमी अपना विकास कर सकता है।
अभातेयुप नवनिर्वाचित अध्यक्ष रमेश डागा, चेन्नई को पूर्व अध्यक्ष पंकज डागा ने शपथ ग्रहण करवाई। पूज्यप्रवर ने दोनों को मंगलपाठ सुनाया। रमेश डागा व पंकज डागा ने पूज्यप्रवर से कुछ संकल्प स्वीकार किए। नवनिर्वाचित अध्यक्ष रमेश डागा ने अपने भावों की अभिव्यक्ति देते हुए भावी आयामों को बताया। रमेश डागा ने अपने पदाधिकारियों व कार्यकारिणी की घोषणा करते हुए उन्हें शपथ दिलाई। पूज्यप्रवर ने नवीन कार्यसमिति को मंगलपाठ सुनाया। रमेश डागा ने अपनी नवगठित कार्यकारिणी को शपथ दिलाई।