ज्ञान के दीप जलाकर निर्वाण की दिशा में आगे बढ़ें : आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन, 12 नवंबर, 2023
कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी, दीपावली का पावन पर्व पर जन-जन में अज्ञानरूपी अंधकार दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाले आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती सूत्र की व्याख्या करते हुए फरमाया कि तप दो प्रकार का प्रज्ञप्त है-बाह्य और आभ्यंतर। तपस्या साधना के क्षेत्र का एक अव्यव है, साधना रूपी शरीर का एक अंग है-तप। तपस्या करने वाला तेजस्वी बन सकता है, प्रभावशाली भी बन सकता है। प्रभावना क्या होती है, यह एक विश्लेषणीय विषय है। सबसे बढ़िया प्रभावना तो यह है कि चेतना तप और संयम से भावित हो जाए। निष्काम, बिना आडंबर तपस्या कर लेना, निर्जरा की भावना से तपस्या कर लेना बड़ी ऊँची बात हो जाती है। तपस्या में कोई कामना न हो। छोटे उद्देश्य से तपस्या करना छोटी बात है। मोक्ष वाली सिद्धि मिल जाए वह तपस्या ऊँची सिद्धि है। यदि छोटी कामना अगर तपस्या से जुड़ जाए तो मानो उसमें घुण लग गया है।
भगवान महावीर ने तपस्या मोक्ष सिद्धि के लिए की थी, उन्हें शीतोलेश्या जैसी छोटी सिद्धि मिल भी गई पर उनका लक्ष्य एक ही था-मोक्ष। लगभग साढ़े बारह वर्ष तक अनेक तपस्याएँ की थीं। आभ्यंतर तप को पोषण मिलने के लिए बाह्य तप करो। जितनी ऊँची तपस्या होती है, उसका उतना ही महत्त्व होता है। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव को देखकर अपने आपको तपस्या में नियोजित करना चाहिए। अनेक रूपों में निर्जरा की हेतुभूत तपस्या की साधना की जा सकती है। दीपमालिका आती है, मिट्टी के दीप जले तो क्या, न जले तो क्या? हमारे भीतर ज्ञान के दीप जल जाएँ तो विशेष बात हो सकती है।
संसार में दीपावली का महत्त्व होता है, उल्लास का पर्व होता है। आतिशबाजी होती है, सारा हिंसा का ही काम है। हम इसका आध्यात्मिक पक्ष देखें जो भगवान महावीर और भगवान राम से जुड़ा है। जिन पटाखों से कर्म उड़ जाएँ ऐसे पटाखे छोड़ो, तपस्या के पटाखे छोड़ो। हम निर्वाण की दिशा में आगे बढ़ने का, ज्ञान की ज्योति जलाने का प्रयास करें। आचार्य भिक्षु के प्रति कहा गया है-ज्योति का अवतार बाबा ज्योति ले आया।
हम ज्योतिष्मान बनने का प्रयास करें। भीतर की ज्योति और आगे बढ़े और आँखों की ज्योति भी अच्छी रहे। प्रज्ञा-अध्ययन के दीप जलते रहें। हमारे में अंतर्दीप जलें। गुरुदेव तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की कृपा से हमें ये आगम प्राप्त है, हम आगम के दीप जलाने का प्रयास करें। आज चतुर्दशी है, पूज्यप्रवर ने हाजरी का वाचन कराते हुए प्रेरणाएँ प्रदान करवाई। समूह में लेख पत्र का वाचन हुआ। शासनश्री साध्वी चांदकुमारी जी ‘लाडनूं’ की स्मृति सभा शासनश्री साध्वी चांदकुमारी जी ‘लाडनूं’ का प्रयाण बीकानेर में हो गया था। पूज्यप्रवर ने उनके जीवन का परिचय फरमाया। मैंने उनको देखा है, बड़ी भली साध्वीश्री थी। मेरी दीक्षा पर वो सरदारशहर में ही विराज रही थी। कार्तिक कृष्णा एकादशी को मध्याह्न में संथारे में प्रयाण कर गई थी। उनकी आत्मा के प्रति मंगलभावना-श्रद्धांजलि के रूप में चार लोगस्स का ध्यान करवाया। पीछे जो साध्वियाँ हैं, अच्छा विकास करती रहें।
मुख्य मुनि महावीर कुमारजी, साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी, साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने भी उनकी आत्मा के प्रति मंगलभावना अभिव्यक्त की। साध्वी जिनप्रभा जी, साध्वी विशालयशा जी, साध्वी आरोग्यश्री जी ने भी अपनी मंगलभावना अभिव्यक्त की। साध्वियों ने समूह में दीपावली-गीत का सुमधुर संगान किया। मुख्य मुनिश्री द्वारा समुच्चारित रामायण जो कई दिनों से प्रस्तुत की जा रही थी, उसका भी रात्रि में समापन समारोह पूज्यप्रवर की पावन सन्निधि में आयोजित है।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि आचार्य मानतुंग ने भक्तामर में भगवान ऋषभ के लिए अपर शब्द प्रयोग किया है। दीपक दो प्रकार के हो सकते हैं-लौकिक और अलौकिक। भगवान ऋषभ एक ऐसे अलौकिक दीपक हैं, प्रज्ज्वलित हो रहे हैं, किंतु उनके भीतर उस दीपक से किसी प्रकार का धुआँ नहीं निकल रहा है, वह निर्धूम है। अलौकिक दीपक में किसी प्रकार का तेल डालने की आवश्यकता नहीं रहती कि दीपक चाहे जितना झंझावात आ जाए, महावात आ जाए, उसे कोई प्रकंपित नहीं कर सकता। साधुमार्गी संघ से उमरावमल ओस्तवाल ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।