अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का आयोजन

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अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का आयोजन

छापर।
शासनश्री मुनि विजय कुमार जी के सान्निध्य में अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह मनाया गया। प्रथम दिवस सांप्रदायिक सौहार्द दिवस के रूप में मनया गया। मुनिश्री ने कहा कि भारत में अनगिन संप्रदाय हैं, वे सब लोककल्याण व जीवन उत्थान की शिक्षा देते हैं। कोई भी संप्रदाय आपस में लड़ने की बात नहीं कहता। अणुव्रत मानवीय एकता में विश्वास करता है। भेद में अभेद, अनेकता में एकता की बता को महत्त्व देता है। अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत के प्रवर्तन करने के साथ ही लंबी-लंबी यात्राएँ कीं, अनेक धर्माचार्यों से उनका मिलना हुआ। उन्होंने सर्वत्र सौहार्द और मैत्री का अनुभव किया। उनकी व्यापक विचारधारा के कारण ही विभिन्न धर्म-संप्रदायों के लोग उनके पास श्रद्धाभाव से आते थे।
दूसरा दिन अहिंसा दिवस’ के रूप में मनया गया। शासनश्री मुनि विजय कुमार जी ने कहा कि समस्त प्राणधारियों का जीवन अहिंसा पर टिका हुआ है। गृहस्थ व्यक्ति को बहुत सारे आरंभ के काम करने पड़ते हैं, जैसेµखेती करना, भोजन बनाना, व्यापार आदि। कोई झगड़ा करता है, वहाँ व्यक्ति हिंसा में प्रवृत्त हो जाता है, वहाँ वह क्षमाशील नहीं रह सकता। इन प्रथम दोनों प्रकार की हिंसा को अनिवार्य हिंसा की कोटि में लिया जा सकता है। संकल्पपूर्वक किसी की हत्या करना यह अणुव्रत को स्वीकार्य नीं है। इस संकल्पजा हिंसा से हर व्यक्ति को बचना चाहिए।
सप्ताह का तीसरा दिन ‘अणुव्रत प्रेरणा दिवस’ के रूप में मनाया गया। मुनिश्री ने कहा कि अणुव्रत की प्रेरणा व्यक्ति के भीतर उतर जाए तो इंसान स्वस्थ इंसान बन सकता है। अणुव्रत व्यक्ति सुधार की बात पर बल देता है। व्यक्ति के साथ ही समाज सुधार और उससे राष्ट्र सुधार की बात जुड़ी हुई है। अणुव्रत सभी वर्ग और जाति के लोगों के लिए उपयोगी है। अणुव्रत का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। इस अभियान की प्रासंगिकता सदा बनी रहेगी। छतरसिंह नाहटा के इक्कीस दिनों की तपस्या की अनुमोदना का कार्यक्रम भी रहा।
चैथा दिन ‘पर्यावरण दिवस’ के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर मुनिश्री ने कहा कि पर्यावरण प्रदूषण आज के युग की विकट समस्या है। यह अनेक-अनेक समस्याओं की जनक है। व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए वृक्षों को काट देता है, पानी का दुरुपयोग करता है, धरती का दोहन करता है, गाड़ियों के अत्यधिक इस्तेमाल करके वायुमंडल को दूषित कर देता है, कई-कारखाने भी दिन-रात धुआँ छोड़कर आकाश को कालिमा से भर देते हैं, इसके अलावा भी पर्यावरण प्रदूषण के अनेक रूप हैं। अणुव्रत ने इस समस्या के निवारण के लिए नियम बना दियाµ‘पर्यावरण की समस्या के प्रति मैं जागरूक रहूँगा, हरे-भरे वृक्ष नहीं काटूँगा, पानी, बिजली आदि का अपव्यय नहीं करूँगा।’ व्यक्ति अपने व्यवहार में संयम करना शुरू करे तो पर्यावरण की समस्या का समाधान स्वतः ही हो सकता है।
पाँचवाँ दिन ‘नशामुक्ति दिवस’ के रूप में मनाया गया। शासनश्री मुनि विजय कुमार जी ने कहा कि नशा जीवन का सर्वनाश करने वाला है। व्यक्ति कुसंगत में पड़कर या दूसरों की देखा-देखी नशे की लत में पड़ जाता है, फिर वह लत उसे पकड़ लेती है, सदा के लिए वह उस लत का गुलाम बन जाता है। फिर व्यक्ति को अपने हित-अहित का भान नहीं रहता, विवेक का सूर्य वहाँ अस्त हो जाता है। अनेक दुष्कर्मों की जननी है शराब। अन्य नशे भी छोड़ने योग्य हैं, व्यक्ति को अपनी स्वस्थता के लिए नशेमात्र से दूर रहना चाहिए।
छठा दिन ‘अनुशासन दिवस’ के रूप में मनाया गया। शासनश्री मुनिश्री ने कहा कि जीवन के निर्माण में कई तत्त्व उपयोगी हैं, उनमें एक है अनुशासन। बच्चा जब तक समझदार नहीं हो जाता, तब तक एक माँ को उसका पूरा ध्यान रखना पड़ता है। जो बच्चा माँ के अनुशासन की अवहेलना करता है, उसके निर्माण में कुछ कमी रह जाती है। इसी रित शिष्य पर गुरु का अनुशासन जरूरी होता है। अनुशासन में विधि-निषेध दोनों का समावेश होता है। अनुशासन व्यक्ति के हित के लिए होता है। अनुशासन के क्षेत्र में तेरापंथ का नाम गौरव से लिया जा सकता है। सैकड़ों साधु-साध्वियाँ और लाखों श्रावक- श्राविकाओं पर यहाँ एक गुरु का अनुशासन चलता है। गुरु जैसा आदेश निर्देश करते हैं, उनके लिए वही आर्षवाणी बन जाती है। उस ओर कदम बढ़ जाते हैं। अपेक्षा हैµपारिवारिक-सामाजिक-राष्ट्रीय जीवन में भी अनुशासन को प्रतिष्ठा मिले।
सातवाँ एवं अंतिम दिन ‘जीवन विज्ञान दिवस’ के रूप मे मनाया गया। मुनिश्री ने कहा कि जीवन विज्ञान शिक्षा जगत से जुड़ा हुआ आचार्य तुलसी का अवदान है। उन्होंने अनुभव किया शिक्षा जो कि विद्यार्थियों के जीवन निर्माण का मुख्य घटक तत्त्व है, वह भी कहीं-कहीं समस्या बन रहा है। यही कारण है कि विद्यार्थी अच्छी डिग्री हासिल करके भी व्यसन, भ्रष्टाचार और आतंकवाद जैसी हरकतों में लिप्त हो जाते हैं। शिक्षा की निष्पत्ति है, अच्छे मानव का निर्माण। इसी लक्ष्य को लेकर उन्होंने जीवन विज्ञान का उपक्रम प्रारंभ किया। शिक्षा शास्त्रियों ने इसकी उपयोगिता को स्वीकार किया। पूज्यप्रवर ने इसमें अणुव्रत और प्रेक्षाध्यान दोनों का समावेश कर दिया। संकल्प और प्रयोग से जुड़ी हुई यह पद्धति है। लाखों विद्यार्थियों ने जीवन विज्ञान का प्रशिक्षण प्राप्त करके अपनी क्षमताओं को विकसित किया।
इस साप्ताहिक कार्यक्रम में प्रतिदिन शासनश्री मुनिश्री का विषय अनुरूप गीत हुआ। अणुव्रत महिला टीम का मंगल गीत प्रारंभ में होता। कार्यक्रम में यथावकाश मुनि आत्माराज जी, अणुव्रत समिति के निवर्तमान अध्यक्ष प्रदीप सुराना, वर्तमान अध्यक्ष विनोद नाहटा, संरक्षक रेखा राम गोदारा, श्रद्धानिष्ठ श्रावक सूरजमल नाहटा, नरेंद्र दुधोड़िया, तेरापंथ सभा के मंत्री चमन दुधोड़िया, महिला मंडल अध्यक्षा मंजु दुधोड़िया सहित अनेक गणमान्यजनों ने गीत, मुक्त, कविता, भाषण के द्वारा अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। प्रदीप सुराना ने उनकी सेवाओं के लिए अणुव्रत समिति के सदस्यों के द्वारा सम्मानित किया गया। सातों दिन के कार्यक्रम का संचालन अध्यक्ष विनोद नाहटा ने किया।