आत्मा को कर्म-बंध से मुक्त बनने के लिए संवर और निर्जरा की साधना करें : आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन, 8 नवंबर, 2023
तीर्थंकर के प्रतिनिधि, प्रेम के सागर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आगम वाणी की अमृत वर्षा करते हुए फरमाया कि हमारी इस लोकाकाश की दुनिया में अनेक द्रव्य-तत्त्व हैं और वे अपने ढंग से स्थित हैं। कुल छः द्रव्य बताए गए हैं-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, काल, पुद्गलास्तिकाय और जीवास्तिकाय। यह लोक षड्-द्रव्यात्मक है। आकाश सबसे बड़ा द्रव्य होता है, इसका कोई आर-पार नहीं है। आकाश अनंत होता है। शास्त्रों में इच्छाओं को आकाश के समान अनंत बताया गया है। आकाशास्तिकाय के सामने अन्य द्रव्य तो क्षेत्र की दृष्टि से बहुत छोटे होते हैं। छः द्रव्यों में पाँच अस्तिकाय हैं। काल अस्तिकाय नहीं है। पाँच अस्तिकायों में चार अमूर्त है, केवल पुद्गलास्तिकाय मूर्त होता है।
पाँच अस्तिकायों में जीव चैतन्यमय बाकी चार अचेतन्यमय है। इन पाँच अस्तिकायों को पंचास्तिकाय कहते हैं, जो लोक में व्याप्त हैं। आकाशास्तिकाय तो लोक-अलोक दोनों में है। यहाँ प्रश्न किया गया है कि धर्मास्तिकाय के मध्य प्रदेश कितने होते हैं? यों तो धर्मास्तिकाय असंख्य प्रदेशों का पिंड है। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और एक जीव इन चारों के प्रदेश तुल्य-समान होते हैं और असंख्य होते हैं। धर्मास्तिकाय के मध्य प्रदेश आठ होते हैं। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और एक जीव के भी मध्य प्रदेश आठ-आठ ही होते हैं। एक प्रांत मध्य प्रदेश नाम आगम में भी आया है। ये आठ प्रदेश मध्य प्रदेश कहलाते हैं, जो हर आत्मा में होते हैं। सारे असंख्य प्रदेश अमूर्त होते हैं। कर्मों से आत्मा से बध होते हैं।
आत्मा कर्म-बंध से मुक्त बने इसके लिए संवर और निर्जरा की साधना करें। जिससे हम आत्मा को निर्मल बना सकते हैं। ध्यान की साधना भी इस जीवास्तिकाय को निर्मलबनाने का साधन बन सकता है।
आज प्रेक्षा इंटरनेशनल शिविर का समापन समारोह है। रशियन सिंगर तांतियाना ने ‘तेरापंथ प्रणेता’ गीत की प्रस्तुति दी। फ्लोरा निशांते-मेक्सिको, प्रेक्षा इंटरनेशनल के मंत्री गौरव कोठारी, प्रेक्षाध्यान के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कुमार श्रमणजी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। व्यवस्था समिति सदस्यों द्वारा गीत की प्रस्तुति हुई। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।