शरीर, वाणी और मन की प्रतिसंलीनता लाभकारी : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

शरीर, वाणी और मन की प्रतिसंलीनता लाभकारी : आचार्यश्री महाश्रमण

नंदनवन, 18 नवंबर, 2023
अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि प्रतिसंलीनता के प्रकारों में एक प्रकार हैµयोग प्रतिसंलीनताµ योगों में संयम। योग शब्द का एक अर्थ हैµआसन-प्राणायाम, ध्यान आदि की साधना। योग मोक्ष का उपाय होता है, वह हैµसम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और सम्यक् चारित्र। मोक्ष को आत्मा से जोड़ने वाला तत्त्व योग है, वह हैµधर्म की प्रवृत्ति का व्यापार। भगवती सूत्र में योग शब्द का मूल अर्थ हमारा तात्त्विक संदर्भ से जुड़ा हुआ है। काया, वाणी और मन की प्रवृत्ति यह योग है। योग प्रतिसंलीनता तीन प्रकार की बताई गई हैµमनोयोग, वावयोग और काययोग प्रतिसंलीनता। प्रतिसंलीनता यानी संयम या अच्छे रूप में स्थापित करना। मनोयोग प्रतिसंलीनता का पहला चरण हैµअकुशलता का निरोध। मन में अकुशल प्रवृत्ति न हो, उसको राकना।
मन का कार्य हैµस्मृति, चिंतन और कल्पना। पर ये अशुभ न हो। द्वेष का भाव न हो। दूसरा आयाम हैµअच्छा स्मृति चिंतन और कल्पना करो। दूसरों का कल्याण हो। मेरे द्वारा किसी को कष्ट न हो जाए। शुभ प्रवृत्ति करने का प्रयास हो। यह कुशल मनोयोग हो गया। तीसरा चरण हैµमन का एकत्री भाव करना, मन को एक जगह केंद्रित कर देना। एकाग्रता कर देना। जैसे प्रेक्षाध्यान में किया जाता है। हम मन को साधने का प्रयास करें। इसी प्रकार वाणी के बारे में कहा गया है। अकुशल वाणी का प्रयोग न करना। कुशल वाणी का उदीरण करना, अच्छी बात बोलना। वचन का एकत्री भावकरण। हम अपनी वाणी को विराम दे दें। मौन करना भी अच्छी साधना है। जप आदि करें।
मितभाषिता, यथार्थभाषिता, मधुरभाषिता और सुविचारित-भाषिता (परिक्षित-भाषित) वाणी के संदर्भ में हो। मुँह के दो कार्य हैंµखाना-पीना और बोलना। दोनों का संयम कर लें तो अच्छी साधना हो सकती है। बोलना हमारे व्यक्तित्व का एक अंग है। ये सब वाक योग है। हमारे में वाक्पटुता हो। वाणी से आदमी की पहचान हो जाती है। आज साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी का 44वाँ जन्म दिवस है। चार-चार बातों का जीवन में विकास होता रहे। मन, वचन, काय और आत्मा तथा स्वाध्याय, ध्यान संयम और सेवा इनका विकास होता रहे। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि आत्मा और शरीर का संयोग जीवन है, वियोग मृत्यु है और दोनों का आत्यन्तिक वियोग मोक्ष है। जहाँ जीवन है, वहाँ आत्मा और शरीर का संयोग है। हम चिंतन करें कि हम 24 घंटे में शरीर के साथ कितने रहते हैं और आत्मा के प्रति कितने रहते हैं। हमं आत्मा का उत्थान करना है। आत्मा की सतत स्मृति करते रहें। स्वाध्याय से हम आत्मा के आसपास रह सकते हैं।
पूज्यप्रवर की सन्निधि में आज अणुविभा सोसायटी द्वारा 74वाँ अणुव्रत अधिवेशन आयोजित हो रहा है। भीखमचंद ने पूरे वर्ष-भर के कार्यक्रमों की जानकारी दी। अणुव्रत के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि मनन कुमार जी ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। विनोद कोठारी ने संयोजकीय वक्तव्य दिया। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन देते हुए शनिवार की सामायिक की प्रेरणा प्रदान करवाई। अणुव्रत गीत से कार्यक्रम का समापन हुआ।