अच्छे साहित्य का लेखन है सारस्वत साधना के समान : आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन, 16 नवंबर, 2023
धर्मसंघ के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र की विवेचना करते हुए फरमाया कि जैन शास्त्रों में अनेक प्रकार के विषय वर्णित हुए हैं। तप का भी एक विषय है-तपस्या। तपस्या के बाह्य तप के प्रकारों में छठा प्रकार है-प्रतिसंलीनता। अष्टांग योग में एक है-प्रत्याहार। इंद्रियों का प्रतिसंहरण कर लेना योग साधना में प्रत्याहार हो जाता है। भगवती सूत्र में प्रतिसंलीनता के चार प्रकार हैं, उनमें पहला प्रकार है-इंद्रिय-प्रतिसंलीनता। प्रत्याहार और इंद्रिय प्रतिसंलीनता में कुछ समानता दृष्टिगोचर हो रही है। संयम की दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण है। हमारे पास ज्ञानेन्द्रियाँ भी हैं और कर्मेन्द्रियाँ भी हैं। श्रोत, चक्षु, घ्राण, रसन और स्पर्शन ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं, तो वाणी, हाथ, कान, नाक आदि ये पाँच कर्मेन्द्रियाँ भी हैं। यहाँ प्रतिसंलीनता ज्ञानेन्द्रियों के संदर्भ में है।
इंद्रिय-संयम की साधना इंद्रिय प्रतिसंलीनता का एक भाग है। बोलना बंद किया तो वाणी का संयम किया, मौन हो गया। श्रोत्रेन्द्रिय प्रतिसंलीनता में सुनने का संयम करना। उसके लिए एकांत स्थान में बैठ जाओ। दूसरा उपाय है, सुनने का प्रयास न करना। तीसरा तरीका है-कान में कुछ रुई या कपड़े का डाट लगा दें। होठ बंद कर लिया तो मौन हो गया पर साथ में हाथों से इशारा भी नहीं करना और ऊँची बात है। श्रोत्रेन्द्रिय संयम का दूसरा उपाय है कि कान में शब्द भले पड़े पर उनके प्रति राग-द्वेष का भाव न आए। चक्षु-इंद्रिय संयम में आँखें बंद करके बैठ जाओ, आँखों पर पट्टी लगा लो, आँखें बंद कर ऊपर हाथ लगा लें। देख भी लिया तो उसमें राग-द्वेष का भाव न आए।
घ्राणेन्द्रिय संयम में नाक से सुगंधित पदार्थ नहीं सूँघना। सहज में सुगंध-दुर्गन्ध आ गई तो उसके प्रति राग-द्वेष का भाव नहीं लाना। रसनेन्द्रिय प्रतिसंलीनता में स्वाद ही नहीं लेना या खाना-पीना नहीं। स्वाद लेकर भी न खाएँ। खाने के प्रति राग-द्वेष न आए। पदार्थों को छोड़ना भी रसनेन्द्रिय संयम का विकास है। स्पर्श का भी संयम या ठंडी या गर्मी पड़े तो भी उसके लिए हीटर या एसी का उपयोग न करना या उसमें राग-द्वेष का भाव ना लाना स्पर्शनेन्द्रिय संयम हो जाता है। हम जितना हो सके इंद्रिय-संयम रखने का प्रयास करें, यह कल्याणकारी बात हो सकती है।
अणुविभा सोसायटी के तत्त्वावधान एवं पूज्यप्रवर की पावन सन्निधि में अणुव्रत लेखक सम्मेलन आयोजित हो रहा है। गांधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली के अध्यक्ष कुमार प्रशांत, कैप्टन सुंदरचंद संपादक, नवभारत टाइम्स ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। अविनाश नाहर ने पूज्यप्रवर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए आगंतुक मेहमानों का स्वागत किया।
पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि अणुव्रत के छोटे-छोटे संकल्प जीवन को बढ़िया बना सकते हैं। आदर्श तक पहुँचना मुश्किल है वह महाव्रत है। मंच तक आना अणुव्रत है। अच्छे साहित्य का लेखन भी सारस्वत साधना है। गुरुदेव तुलसी एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का विशाल साहित्य हमारे सामने है। साहित्य लेखन भी एक अच्छी उपलब्धि है। परोपकार का कार्य है।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।