भगवान महावीर निर्वाण दिवस का आयोजन

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भगवान महावीर निर्वाण दिवस का आयोजन

चंडीगढ़
भगवान महावीर ने धर्म का मर्म अनेकांत और अहिंसा बताया। उन्होंने कहा कि धर्म का हृदय अनेकांत है और अनेकांत का हृदय है समता। समता का अर्थ है परस्पर सहयोग, समन्वय, सद्भावना, सहानुभूति एवं सहजता। उन्होंने कहा कि सबकी बात शांतिपूर्वक सुनी जानी चाहिए। यदि ऐसा होगा तो घृणा, द्वेष, ईष्र्या का स्वयं ही नाश हो जाएगा। उन्होंने साधन और साध्य दोनों की पवित्रता और शुद्धि पर बल दिया। धर्म की नींव विश्वास पर टिकी होती है, तर्क पर नहीं। धर्म संबंधी बातों में तर्क नहीं करना चाहिए। यह शब्द मनीषी संत मुनि विनय कुमार जी ‘आलोक’ ने अणुव्रत भवन, तुलसी सभागार में त्रिदिवसीय महवीर ज्ञान कथा के तीसरे दिन सभा को संबोधित करते हुए कहे।
मुनिश्री ने आगे कहा कि अहिंसा और अपरिग्रह की वह साक्षात मूर्ति थे। वह सबको समान मानते थे और किसी को भी कोई दुःख देना नहीं चाहते थे। अपनी इसी सोच पर आधारित एक नूतन विज्ञान भगवान महावीर ने विश्व को दिया। मुनिश्री ने कहा कि महावीर के परिनिर्माण के समय 30 राजा उपस्थित थे। भगवान महावीर स्वामी का जीवन एक खुली किताब की तरह है। उनका जीवन ही सत्य, अहिंसा और मानवता का संदेश है। उनका संपूर्ण जीवन तप और ध्यान की पराकाष्ठा है, इसलिए वह स्वतः प्रेरणादायी है। भगवान के उपदेश जीवनस्पर्शी हैं जिनमें जीवन की समस्याओं का समाधान निहित है। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हमें भगवान महावीर के उपदेशों पर चलना चाहिए। जैन धर्म में धन, संपत्ति, यश तथा वैभव लक्ष्मी के बजाय वैराग्य लक्ष्मी प्राप्ति पर बल दिया गया है। अतः हमें श्री मोक्ष प्राप्ति की ओर अधिक ध्यान देना चाहिए।