वाणी के संयम के साथ विवेक भी हो : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

वाणी के संयम के साथ विवेक भी हो : आचार्यश्री महाश्रमण

गौरेगाँव, 1 दिसंबर, 2023
अणुव्रत यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः गौरेगाँव सेंट पायस काॅलेज प्रांगण में पधारे। मानवीय मूल्यों की प्रेरणा प्रदान करते हुए महामानव आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि हमारे जीवन में आत्मा तो मुख्य तत्त्व है। आत्मा के साथ तीन चीजें और हैंµशरीर, वाणी और मन। आत्मा को मिलाकर चार चीजें हो गईं, यही हमारा जीवन है।
शरीर से हम अनेक प्रवृत्तियाँ करते हैं। वाणी से हम बोलते हैं। मन से हम सोचते हैं, स्मृति करते हैं। हमारे पास वाणी की शक्ति विशिष्ट है। दुनिया में अनेक भाषाएँ हैं। अनेकार्थक शब्द हैं। हम संयमपूर्वक भाषा का प्रयोग करते हैं, तो हमारी भाषा बहुत गरिमापूर्ण और उपयोगी बन सकती है।
मितभाषिता हो, वाणी के संयम के साथ विवेक भी हो कि कब, कैसे और कहाँ बोलें। मौन भी अच्छा है, पर जहाँ ज्ञान देने की बात है, वहाँ बोलना भी पड़ता है। बोलने से अनेकों को ज्ञान मिल सकता है। प्रवचन से अनेकों को शुभ भाव में रहने का अवसर मिल सकता है। पूज्यप्रवर ने जैन धर्म श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ की प्रारंभिक जानकारी दी। पाँच महाव्रतों का भी विवेचन किया।
बिना पूछे मत बोलो, बोलो तो सत्य बोलो, गुस्से पर नियंत्रण करो, उसे विफल करो। प्रिय-अप्रिय जो भी स्थिति आए उसे सहन करो। हम मुख्यतया तीन बातों का यात्रा में प्रचार कर रहे हैंµसद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति। मानव अच्छा मानव बने।
जैन धर्म के मौलिक सिद्धांत हैंµआत्मवाद, कर्मवाद व पुनर्जन्मवाद। जब तक संसारी रूप में आत्मा भ्रमण करती है, उसका चार गतियों में जन्म-मरण होता रहता है। जैन धर्म का मुख्य मंत्रµनमस्कार महामंत्र है। हमारा मूल लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति हो, इसके लिए धर्म-तप की साधना होती है। हमारे साधु-साध्वियाँ सूर्यास्त बाद सूर्योदय तक खाना-पीना नहीं करते हैं। हमारी प्रायः पैदल यात्रा ही होती है। हम भिक्षा से ही गृहस्थों से भोजन-पानी लेते हैं।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति में गुरु का सर्वोपरी स्थान रहा है। संतों के चरणों में अनेक लोग आते हैं। गुरु समाधायक होता है। आज इस शैक्षणिक संस्थान में अध्यात्म-गुरु का शुभागमन हुआ है। आध्यात्मिक गुरु अपने शिष्यों का आत्मोत्थान करते हैं। वे व्यक्ति सौभाग्यशाली होते हैं, जिन्हें आध्यात्मिक शक्ति से संपन्न गुरु मिलते हैं। गुरुओं की आज्ञा अविचारणीय होती है।
फादर डाॅ0 माइकल रोजेरियो ने कहा कि जैसे स्वयं से प्यार करते हो वैसे ही अपने पड़ोसियों से प्यार करो। आचार्यश्री महाश्रमण जी करुणा की मूर्ति हैं। प्रेम से प्रेम बढ़ता रहे।
सेंट पायस काॅलेज के प्राचार्य फादर एनिसेटो परेरा ने भी संक्षिप्त में अपनी बात रखी। सभाध्यक्ष छतरलाल सिंघवी, भीमराज चिंडालिया, तेयुप अध्यक्ष रमेश सिंघवी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। व्यवस्था समिति द्वारा प्राचार्य का साहित्य से सम्मान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।