आओ करें श्रुत की आराधना
तिरुपुर।
साध्वी डाॅ0 गवेषणाश्री जी के सान्निध्य में श्रुत पंचमी के अवसर पर ‘आओ करें श्रुत की आराधना’ कार्यक्रम का आयोजन हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत साध्वीश्री द्वारा नमस्कार महामंत्र से हुई। साध्वी डाॅ0 गवेषणाश्री जी ने कहा कि आज के दिन कोई ज्ञान पंचमी, कोई लाभ पंचमी और कोई श्रुतपंचमी कहता है। ज्ञान का बड़ा महत्त्व है। नग्न सुई जैसे गुम गई तो पुनः उसका मिलना बड़ा मुश्किल होता है पर धागे में पिरोयी हुई सुई तुरंत मिल जाती है। वैसे ही जिसके पास सम्यक् दर्शन रूपी ज्ञान है वह अन्य पथ पर भटक नहीं सकता। ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय करने से ही ज्ञान का आवरण दूर हो सकता है। जीवन पथ निर्वाह करना है तो धन का संग्रह चाहिए और जीवन का निर्माण करना है तो ज्ञान का संग्रह चाहिए।
साध्वी मयंकप्रभा जी ने कहा कि इहलोक और परलोक दोनों भवों में साथ चलने वाली वस्तु है-ज्ञान। ज्ञान के तीन प्रकार हैं-किताबों से, अनुभव से, अंतरमन से। ज्ञान को विनय और बहुमान से पढ़ें। प्रतिदिन पढ़ने पर भी यदि याद न हो तो निराश हुए बिना पढ़ते जाएँ। साध्वी मेरुप्रभा जी ने सुमधुर गीतिका प्रस्तुत की। साध्वी दक्षप्रभा जी ने जप से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। साध्वीश्री जी ने ज्ञान से संबंधित अनेक मंत्रों का उच्चारण करवाया। कुछ छोटे-छोटे प्रयोग भी साध्वीश्री जी ने बताए। काफी संख्या में भाई-बहनों ने भाग लिया। महासभा सदस्य प्रकाश दुगड़ एवं उपासिका संजू दुगड़ ने विचार व्यक्त करते हुए गीतिका प्रस्तुत की।