शाश्वत सुख की प्राप्ति के लिए करें अध्यात्म की साधना: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

शाश्वत सुख की प्राप्ति के लिए करें अध्यात्म की साधना: आचार्यश्री महाश्रमण

पाली हिल्स, 12 दिसंबर, 2023
अणुव्रत यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी चार दिवसीय सांताक्रुज का प्रवास पूर्ण कर पाली हिल्स-खार क्षेत्र में पधारे। परम पूज्य आचार्यप्रवर ने फरमाया कि हम लोग जो धर्म से जुड़े हुए हैं, यदा-कदा धर्म की चर्चा करते रहते हैं। प्रवचन-व्याख्यान व बातचीत में भी धर्म-अध्यात्म की चर्चा कर लेते हैं। प्रश्न हो सकता है कि धर्म क्यों करना चाहिए? धर्म से क्या मिलेगा। आदमी कोई कार्य करने से पहले सोचे कि मैं ये कार्य क्यों करूँ, मुझे क्या लाभ मिलेगा? एक सैद्धांतिक बात है कि मैं कौन हूँ? शरीर के अलावा भी कोई चीज है, जिससे शरीर सक्रिय रहता है। यहाँ समाधान दिया गया है-वो चीज आत्मा है। यह धर्म और अध्यात्म का सिद्धांत है कि शरीर और आत्मा अलग-अलग चीज हैं।
आत्मा के कारण ही शरीर क्रिया करता है। दोनों का योग-मिश्रण ही जीवन होता है। शरीर नश्वर है, आत्मा को अमर-शाश्वत कहा गया है। वर्तमान शरीर की मृत्यु के बाद आत्मा का पुनर्जन्म होता है। मैं आगे पर भी ध्यान दूँ कि आगे मेरी आत्मा किस रूप में रह सकेगी। पुनर्जन्म में आत्मा सुखी रहे, इसके लिए धर्म और अध्यात्म की साधना करनी चाहिए। सर्वदुःख मुक्ति का उपाय धर्म-अध्यात्म है। सुख दो प्रकार का होता है-भौतिक सुख और आध्यात्मिक सुख। भौतिक सुख थोड़ी देर का है। आध्यात्मिक सुख शाश्वत है। धर्म के तीन प्रकार-अहिंसा, संयम और तप हैं। अहिंसा महान धर्म है। हमारा वाणी, मन और शरीर पर संयम रहे। शुभ योग अपने आप में तप है। संवर-निर्जरा की आराधना करें। शाश्वत सुख की प्राप्ति के लिए धर्म-अध्यात्म की साधना करनी चाहिए।
जैसे मुझे सुख प्रिय व दुःख अप्रिय है, वैसे ही सब जीवों को सुख प्रिय व दुःख अप्रिय है। मैं कभी दूसरों की सुख प्राप्ति में बाधक न बनूँ। क्रोध न करें, झूठ न बोलें। जीवन में तप का भी आराधन हो। यह सब शाश्वत सुख प्राप्ति का साधन बन जाता है।
हमारा वर्तमान जीवन अच्छा रहे। सभी व्यक्ति साधु नहीं बन सकते हैं, पर सद्गृहस्थ तो बन ही सकते हैं। इससे जीवन में शांति रह सकती है। भौतिकता का उपयोग हो, पर मुख्य आध्यात्मिकता रहे। जीवन में धर्म की साधना कर परम सुख पाने का प्रयास करें। बृहत्तर मुंबई का भ्रमण चल रहा है। यह चोरड़िया परिवार का परिसर है। सब में धार्मिक संस्कार पुष्ट रहें। पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी भी यहाँ पधारे थे। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि जब हम 1983 में विदेश यात्रा पर समणी रूप में गए थे तो सारी व्यवस्था चोरड़िया परिवार की थी। समुद्र में गहराई है पर ऊँचाई नहीं है। पर्वत में ऊँचाई है, पर गहराई नहीं है। पर महापुरुष वे होते हैं, जिनमें ऊँचाई भी होती है और गहराई भी होती है। परमपूज्य आचार्यप्रवर के जीवन में ऊँचाई भी है और गांभीर्य भी है। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में मंजु लोढ़ा, मोहनी देवी चोरड़िया, विजय चोरड़िया, मफतराज मणोत ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।