अपनी आत्मा को अपना मित्र बनाएँ : आचार्यश्री महाश्रमण
दादर, 15 दिसंबर, 2023
जिन शासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने दादर प्रवास के दूसरे दिन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में मित्र होते हैं, मित्र बनाए भी जाते हैं। शास्त्र में कहा गया है कि पुरुष! तुम ही तुम्हारे मित्र हो। फिर बाहर के मित्र को क्यों खोज रहे हो। निश्चय नय की बात है कि आत्मा स्वयं हमारी मित्र है। आत्मा मित्र भी बन सकती है, तो आत्मा शत्रु भी बन सकती है। जो आत्मा सत्-प्रवृत्ति में संलग्न है, सुप्रतिष्ठित और शुभ भावों में है, सदाचार में है, मानो वह आत्मा हमारी मित्र है। जो आत्मा दुष्प्रवृत्ति में संलग्न है वह आत्मा खुद ही शत्रु बन जाती है। दुरात्मा शत्रु है, सदात्मा मित्र बन सकती है। हम अपनी आत्मा को अपना मित्र बनाएँ।
बाहर के मित्र भी बनते हैं, तो वहाँ भी आध्यात्मिक लाभ का प्रयास हो तो अच्छी बात हो सकती है। हम यह ध्यान दें कि कहीं मेरी आत्मा शत्रु तो नहीं बन रही है। हम धर्म, सदाचार और सन्मार्ग पर चलें। हम जैन धर्म, जैन शासन से जुड़े हुए हैं। चौबीस तीर्थंकरों को हमारा नमस्कार है। जैन शासन में अनेक आचार्य और साधु हुए हैं, वर्तमान में भी हैं। श्रावक-श्राविकाएँ भी हैं। भगवान महावीर का 2550वाँ निर्वाण वर्ष चल रहा है।
भगवान महावीर की 25वीं निर्वाण शताब्दी भी दिल्ली में मनाई गई थी। एक जैन प्रतीक, एक जैन ध्वज और एक जैन ग्रंथ उस समय सामने आया था। जन्मना जैन होना एक बात है, कर्मणा जैन होना विशेष बात है। जैन जयतु शासनम्µजैन धर्म की जय हो। जैन धर्म के अनुयायियों के संस्कार अच्छे हों। उनका भोजन शुद्ध हो, वे नशामुक्त हों। जैन शासन के अनुयायी अच्छी साधना स्वयं करें एवं दूसरों को भी समझाएँ। गुरुदेव तुलसी के समय समण श्रेणी शुरू हुई थी, जो विदेशों में जाकर जैन धर्म की, अध्यात्म-योग का प्रचार-प्रसार करती है। सबमें अहिंसा, संयम, ईमानदारी, नशामुक्ति व राग-द्वेष मुक्ति एवं कषाय मुक्ति की भावना रहे। यही मुक्ति का मार्ग है।
दिगंबर आचार्यश्री प्रमाणसागर जी ने कहा कि जैनम जयति शासनम् हृदय को छूने वाला विषय है। जो माँ बच्चे को णमोकार महामंत्र कानों में सुना देती है, वो बच्चा जैन हो जाता है। णमोकार मंत्र सुनने वाला भगवान बने या न बने पर भाग्यवान अवश्य बन जाता है। जो सता कर प्राप्त की जाए वो सत्ता होती है पर जो आत्मा को तपाकर प्राप्त किया जाता है, वो सत्य होता है। महात्मा गांधी ने श्रीमद् राजचंद्र से भगवान महावीर के अहिंसा सिद्धांत को अपनाकर हमारे देश को आजाद कराया था। संत के पीछे-पीछे चलने वाला व्यक्ति स्वयं एक दिन संत बन जाया करता है।
मंदिर तो बहुत हैं पर दर्शन करने वालों की संख्या कम है। अब हमें पत्थर को भगवान नहीं बनाना है, हर इंसान को भगवान बनाना है। अनुशासन ही हमें आत्मा से परमात्मा बना सकता है। थोड़ा-सा राग भी निर्वाण में बाधक बन जाया करता है। भले हम किसी पंथ में विश्वास करें पर मूल में तो हम जैन हैं। हम जिनशासन की प्रभावना करते रहें। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में तेयुप, ज्ञानशाला एवं कन्या मंडल ने प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।