अपने कर्तव्य के प्रति रहें जागरूक : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अपने कर्तव्य के प्रति रहें जागरूक : आचार्यश्री महाश्रमण

कालबादेवी, 21 दिसंबर, 2023
महाप्रज्ञ पब्लिक स्कूल के पंच दिवसीय प्रवास में विशिष्ट कृपा करते हुए पूज्यप्रवर ने स्कूल के प्रथम तल पर पधारकर आचार्य तुलसी सभागृह को पावन किया। तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि साधु कैसा होता है? संयत, विरत, प्रतिहत होता है। आज जितनी भारत की जनसंख्या है, उससे ज्यादा पूरी सृष्टि में संख्या साधु समुदाय की है। चारित्रात्माओं की संख्या हमेशा कम से कम 2000 करोड़ से कुछ अधिक रहेगी और ज्यादा से ज्यादा संख्या 9000 करोड़ से कुछ अधिक रहेगी।
वैसे 15 कर्मभूमियों में साधु होते हैं। केवली समुद्घात की अपेक्षा से पूरे लोक में उनकी आत्मा फैल जाती है। नमस्कार महामंत्र में भी बताया गया हैµणमो लोए सव्व साहूणं। लोक के सब साधुओं को नमस्कार। हमारे जीवन में कर्तव्य-बोध का बड़ा महत्त्व होता है। जिसका जो कर्तव्य है, उसके प्रति जागरूक रहना एक अच्छी बात हो जाती है। कर्तव्य के प्रति जो प्रमादी-आलसी है, उसमें कुछ कमी है। साधु का अपना कर्तव्य होता है। साधु का पहला कर्तव्य है अपनी साधुता की सुरक्षा करना। उसके बाद प्रवचन, धर्म की प्रेरणा, यात्रा कर जनोद्धार करने का प्रयास करना।
महाप्रज्ञ स्कूल में आचार्य तुलसी सभागृह है। गुरुदेव तुलसी फरमाया करते थे कि महाप्रज्ञ में तुलसी को देखो। तुलसी में महाप्रज्ञ को देखो। दोनों में अभिन्नता थी। तेरापंथ के आचार्यों में गुरुदेव तुलसी पहले आचार्य थे जो मुंबई व दक्षिण यात्रा में पधारे थे। बहुत धर्म प्रचार किया था। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी भी पधारे थे। यह भी एक कर्तव्य है। संभाल होती रहे। यात्रा करने से उन्मेष आ सकता है।
जब तक शरीर की अनुकूलता है, तब तक धर्म की आराधना कर लेनी चाहिए, बाद का पता नहीं है। भगवान ऋषभ ने लोगों को लौकिक प्रशिक्षण दिया था। यह जानते हुए कि यह सावद्य कार्य है, पर कर्तव्य को निभाने, लौकिक अनुकंपा की थी। लौकोत्तर कर्तव्य भी होता है। हम अपने जीवन में कर्तव्य बोध रखें, कर्तव्य के प्रति जागरूक रहें। कर्तव्य के प्रति प्रमाद न हो, यह काम्य है। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।